बड़ा बेसुरा शीर्षक है। कहाँ मैं और कहाँ नेहरू पर एक बात मुझे जवाहर लाल नेहरू से जोड़ती है और वह है सेण्ट्रल इन्स्टीट्यूट ऑफ़ एजुकेशन या आजकल डिपार्टमेण्ट ऑफ़ एजुकेशन दिल्ली विश्वविद्यालय और यह संस्थान जोड़ता है मेरे जैसे और मुझ से भी ज्यादा होनहार और विद्वान मेरे पूर्ववर्ती और आने वाले छात्रों को नेहरू से। शायद १९४८ में बनने वाला यह भारत का पहला शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्र था जिसके उद्घाटन में पं० नेहरू और पहले शिक्षामन्त्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद उपस्थित थे और यहाँ के छात्रवृत्ति योग्य छात्रों को समकालीन भारतीय प्रशाशनिक अधिकारी के वेतन से ज्यादा से मासिक छात्र वृत्ति मिलती थी पूरे डेढ़ सौ जबकि नये अधिकारियों का वेतन १०० रुपये के करीब या आस पास होता था। ये बात बताई थी श्री जगन्नाथ आज़ाद ने जो मुख्य अतिथि बन कर आये थे शायद सी०आइ०ई० के फ़ाउण्डेशन डे पर या ए० एन० वसु मेमोरियल लेक्चर में। वे शायद पहले योजना आयोग के सदस्य भी थे। मजे की बात ये है कि ये डेढ़ सौ रुपये कायम थे सत्र २००२ -२००३ तक, अब की बात राम जाने। उन्होंने ये भी जिक्र किया कि कई अधिकारी एजुकेशन लीव लेकर यहाँ छात्रवृत्ति की रकम के लिये भी इसकी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर लिया करते थे क्योंकि ये रकम उनके मासिक आय से कहीं ज़्यादा हुआ करती थी। खैर ये तो थी भाषण की बात पर ध्यान दें कि भारत में आइ आइ टी , आइ आइ एम , एम्स आदि की शुरुआत करने का श्रेय लेने से पहले नेहरू ने शिक्षक निर्माण की ओर कदम उठाया था और इस विधा के लिये आकर्षण पैदा करने की खातिर एक मोटी रकम छात्रवॄत्ति के लिये मुकर्रर की थी । शायद नेहरू एक ऐसे सार्वभौमिक नेता थे जिन्होंने शिक्षण संस्थान से पहले शिक्षक बनाने की पहल की। आप विदेशों से तुलना ना करें क्योंकि आज़ादी के बाद तुरन्त CIE की स्थापना मेरे विचार से नेहरू की अनोखी अदा थी।जब आजकल हर मुद्दे पर नेहरू की टाँग खींची जा रही है , क्या यह उचित नहीं कि नेहरू को इस काम के लिये कोटिशः धन्यवाद दिया जाये जिन्होंने पढ़ने के दौरान हीं शिक्षक के लिये आइ सी एस के वेतन से ज्यादा छात्रवॄत्ति उपलब्ध करवाने की सोची। और उस कालेज की बात क्या करूँ …

एक कहावत है कि जिस ने प्रसव पीड़ा नहीं सही या जो ल्हासा नहीं गया वह इन्सान सुख या दुःख को नहीं जान पाया उसी तर्ज़ पर मेरा मानना है कि अगर आपने सी०आइ०ई० में पढ़ाई नहीं की तो आपने कालेज नहीं देखा बस स्कूली शिक्षा के हकदार रहे आप। आजकल तो दो साल का हो गया है पर जब बी०एड० नौ महीने का होता था तो यह कहा जा सकता था कि यह कालेज और माँ का गर्भ एक समान है जिसमें से नौ महीने रहकर जब आप निकलते हैं तो एक नया व्यक्तित्व बन जाते हैं।

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