हाँ , ये हो सकता कि जिहाद करके 72 हूरों वाली कालोनी में अपनी दावेदारी ठोंकने वाले मुगलों को खुद ये पढ़ और जान कर भारी झटका (हलाल नहीं ) लगे कि ,इस सुपर फैसिलिटी के लिए वे अकेले ही और सबसे सूटेबल हैवान नहीं हैं बल्कि उनके अलावा भी और बहुत सारे खलीफा मुगलिये इसके लिए तैयार खड़े हैं (या कब्र में लेटे हैं ) .
इससे पहले कि सारी बात तफ्सील से बताई जाए देखिये कैसा माजरा होता है जब कोई जेहादी ,सैनिकों और पुलिस के हाथों अपने तशरीफ़ पर पैलेट के मुहर लगवाकर अपने अब्बा मियाँ से रुखसत लेकर बड्डे वाले झब्बा मियाँ तक पहुंचता है तो कितनी और कैसे कैसे मंज़र देखने पड़ते हैं।
मुगलों के इस पाइथोगोरस थ्योरम ( हालाँकि इतना भारी भरकम उनके पल्ले नहीं पड़ना ) को समझने के लिए इस तस्वीर को भी देख सकते हैं :
अब ये कौन सा बवाल है रे , मुगलों के ठेकेदार उनके ऊँचे पाजामे और ढीले नाड़े वाले लोलाना जी लोग पूरी बात उन्हें इसलिए नहीं बताते क्यूंकि एक तो उन्हें अभी ठीक ठीक खुद ही पता नहीं है तफ्सील से और फिर पता हो भी जाए तो आगे उन नालायक हैवान जेहादियों को कौन समझाए , और क्या ही उनके पल्ले पड़े। लाहौर बिन कुवैत ये तो या लिल्लाह वाली बात हो गई जी !
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छोटे भाई का पजामा और बड़े भाई की कमीज देखकर हूर भी घूर कर देखेगी कि बिना तमीज़ के कनीज़ से मिलने आया है फकीर