जब भी मीडिया , संचार तंत्र , प्रेस की बात होती है तो यही कहा जाता है कि लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण और अनिवार्य स्तंभ के रूप में स्थापित होता है मीडिया। ये बात तर्कसंगत भी प्रतीत होती है कि प्रजातंत्र में आम लोगों और उनके शासक प्रशासक के बीच सूचनाओं के आदान प्रदान के सेतु के रूप में मीडिया ही काम करता है।
लेकिन आज राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस पर ये सवाल क्या खुद मीडिया जगत को भी अपने आप से नहीं पूछना चाहिए कि , क्या सच में ?? आज मीडिया की जो हालत है वो लोकतंत्र का खम्बा नहीं बल्कि बिजली का वो खम्बा बन कर रह गया है जिस पर श्वान लघुशंका करते रहते हैं।
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया या टीवी पत्रकारिता तो जाने कब की अपने पत्तन के चरम पर पहुँच चुकी है और अपने गलीज़ कारनामों के कारण पतित पने के रोज़ नए नए कीर्तिमान बना रही है | सरकार और प्रधानमंत्री से लेकर देश ,सनातन , तक के विरूद्ध सालों साल झूठ और भ्रम के सहारे एजेंडों की दूकान चलाते ये टीआरपी के धंधेबाज आखिर किस तरह से लोकतंत्र के स्तम्भ माने जाएं ,ये विडम्बना है।
इनसे इतर , प्रिंट और लघु मीडिया की हैसियत गली मोहल्ले में बजने वाले एफ एम रेडियो स्टेशन से अधिक नहीं रह गई है , मोबाइल तकनीक के आधुनिक युग में समाचार पत्र और पत्रिकाओं को अकाल मौत का बायस बना दिया है।
और इन सबके बीच , पिछले कुछ वर्षों में अचानक ही अपना कद और ताकत का एहसास कराता हुआ जो तंत्र अब वास्तव में सच्चे पत्रकारिता धर्म और मर्म को निभा रहा है वो है सोशल मीडिया। कंप्यूटर और मोबाइल की आधुनिकता व तीव्र प्रवाह से लैस सोशल मीडिया , लाख कोशिशों के बावजूद भी अनियंत्रित रह जाने के कारण सच को तेज़ाब की तरह लोगों के बीच रख रहा है। जाहिर है कि इसके दुष्प्रभाव भी साथ साथ देखने सुनने को मिल रहे हैं।
मगर इसके बावजूद भी जिस तरह से सोशल मीडिया का प्रसार और ताकत दिनों दिन बढ़ता जा रहा है वो ये साबित करता है कि लोगों द्वारा खुद के लिए खुद ही खड़ा किया हुआ और आगे बढ़ाया जाने वाला सोशल मीडिया आज सबसे अधिक लोकप्रिय , सबसे अधिक विश्वसनीय , सबसे अधिक साहसी , सबसे बेबाक , बेलौस ,बेख़ौफ़ होकर ख़बरों की दुनिया को वो धार और प्रहार दे रहा है जो असल में मुख्य धारा मीडिया का दायित्व था।
भविष्य का मीडिया कहलाने वाला सोशल मीडिया , इसी कारण से मुख्य धारा मीडिया के निशाने पर रहता है मगर बावजूद इसके ,सोशल मीडिया की ताकत और प्रभाव के कारण तमाम मीडिया चैनल हाउस , पत्रकार , पत्रिकाएं सब की सब सोशल मीडिया के महासमुद्र में आकर विलीन होने को आतुर भी हैं और विवश भी।
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.