हमारे इतिहास में ऐसे कई योद्धा हुए जिन्होंने अपनी वीरता से मुगलों और अंग्रेजों के दांत खट्टे कर लिया लेकिन दुख की बात यह रही कि इतिहासकारों ने उन्हें भुला दिया और और ऐसे योद्धाओं की कहानी देश की आम जनता तक नहीं पहुंच सका ऐसे ही योद्धाओं में शुमार किया जाता है वीर लाचित बोरफुकान का ये असम के अहोम राजवंश के सेनापति थे जिस राजवंश ने असम पर करीब 600 साल तक शासन किया था।अहोम राजवंश हिंदू धर्म को मानते थे। ये वीर योद्धा लचित बोरफुकान ही थे जिसके कारण मुगलों का साम्राज्य बंगाल से आगे नहीं बढ़ सका। हालांकि इतिहासकारों का मानना है कि सन् 1662 मे गुवाहाटी पर मुगलों का शासन हो गया था लेकिन इनके विरुद्ध अहोम राजा लगातार युद्ध करते आए थे।ऐसे में 5 साल गुवाहाटी मुगलों के अधीन रहे और बिरला जीत के कुशल नेतृत्व में ही अहम सेना ने मुगलों को गुवाहाटी से बाहर खदेड़ दिया था। असम पर पुनः विजय प्राप्त करने के लिए औरंगजेब ने मुगल सेना को राजा राम सिंह के नेतृत्व में भेजा । जहां मुगल सेना का नेतृत्व रामसिंह कर रहे थे वही अहम सेना का नेतृत्व वीर लाचित के कंधों पर था संख्या में मुगलों की सेना अहोम सेना से कई गुना ज्यादा थी और अत्याधुनिक हथियारों से लेस थी।
1671 में सराय घाट का युद्ध ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे हुआ जो एक निर्णायक युद्ध था इस युद्ध में बिरला जी प्रभु करने अदम्य साहस और अद्भुत सैन्य नेतृत्व का परिचय दिया और उनके नेतृत्व में हम सेना ने मुगल सेना को परास्त कर दिया। सराय घाट का युद्ध इतिहास के प्रमुख युद्ध में से एक है क्योंकि इस लड़ाई में पानी में लड़ने की तकनीक को नए आयाम दिए गए थे मुगल सेना बड़े-बड़े जहाजों पर सवार होकर असम में घुसने की कोशिश कर रहे थे लेकिन लचित बोरफुकान के अदम्य साहस और कुशल सेंड नेतृत्व के बल पर अहोम सेना ने सराय घाट की लड़ाई में करीब 4000 मुगल सैनिकों को मार गिराया और उनके अनगिनत जहाजों को नष्ट कर दिया सराय घाट की लड़ाई में करारी हार के बाद मुगल सेना पीछे हट गई और फिर कभी भी असम पर आक्रमण करने के लिए नहीं लौटी।
आपको बता दे कि NDA में जो बेस्ट कैडेट होता है, उसको एक स्वर्ण पदक “लचित बोरफुकन” पुरस्कार प्रदान किया जाता है।
लचित बोरफुकान का जीवन दर्शन हमें उनकी अद्भुत सैन्य कुशलता और राष्ट्रप्रेम की प्रेरणा देता रहेगा।
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