विरले लोगों का व्यक्तित्व ही इतना विशेष होता है कि उनके वचन ,व्यवहार और उपस्थति मात्र से ही साधारण सी बात , घटना भी असाधारण हो जाती है। ऐसे ही सरल मगर अनोखे , तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी थे बाबू राजेंद्र प्रसाद।
बाल्यकाल में सर पर किताबों की पोटली बाँध कर उफनती हुई गंगा में तैर कर दूसरी पार कर रोज़ अपने स्कूल पढ़ने जाने वाले राजेंद्र बाबू इतने अधिक मेधावी हुए कि स्कूल से लेकर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय तक में इनसे जुड़ी घटनांए मिसाल बनती गईं। एक बार किसी ने राजेंद्र बाबू से उनका नाम पूछा उन्होंने कहा – I is Randendra Prasad अब बारी चौंकने की उस अंग्रेज अधिकारी की थी क्यूंकि उसे पता था कि सिर्फ शेक्सपीयर ही अपने परिचय में कई बार ये बात कह चुके थे।
ऐसी ही एक उल्लेखनीय घटना उनकी विश्वविद्यालय की परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिका में दर्ज़ हुई जब पुस्तिका जाँचने वाले ने दस में किन्हीं पांच प्रश्नों के उत्तर लिखने की जगह पाया कि , राजेंद्र बाबू ने दस में से दस के उत्तर दे दिए थे -पुस्तिका पर लिखा था -परीक्षार्थी परीक्षक से कहीं अधिक मेधावी है।
लेकिन एक घटना जिसका जिक्र और जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं वो ये थी। जगद्गुरु शंकाराचार्य जी के एक भाषण से नाराज़ होकर अंग्रेज सरकार ने उन्हें जेल में डाल दिया। चूँकि जगद्गुरु को बाहर लाने ले जाने से जनता आवेशित होकर विद्रोह पर उतारू हो जाती इसलिए एक अंग्रेज न्यायाधीश को जेल में जाकर ही अदालत लगा कर मुकदमा सुनने का आदेश हुआ।
अंग्रेज न्यायाधीश , ने जेल में इसके लिए तीन बजे का वक्त तय कर दिया। जब न्यायाधीश जेल में पहुँचा तो जगद्गुरु ने ध्यान में लीन होने की बात कह कर अभी उपस्थित होने से इंकार कर दिया और कल का समय देने की प्रार्थना की। गुस्से से अंग्रेज न्यायाधीश अगले इन नियत समय पर कैदी को पेश किए जाने की ताकीद करके चला गया।
अगले दिन न्यायाधीश जो पहले से ही किसी बात से नाराज़ था गुस्से में आग बबूला होकर अपने नियत समय पर पहुंचा तो देखा जगद्गुरू को फिर उपस्थित नहीं किया गया था। उसका पारा सातवें आसमान पर था ; जगद्गुरु का मुकदमा और कार्रवाई देखने विशेष रूप बाबू राजेंद्र प्रसाद उस दिन जेल में उपस्थित थे।
अंग्रेज न्यायाधीश का रौद्र रूप देख कर राजेंद्र बाबू के मन में किंचित ये संदेह उत्पन्न हो गया कि कहीं ये अंग्रेज , क्रोध में जगद्गुरु और सनातन का अपमान न कर बैठे। उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय किया। जैसे ही जेल कर्मियों द्वारा जगद्गुरु को अदालत में लाया गया। राजेंद्र बाबू , लपक कर आगे आते हुए जगद्गुरु के सम्मुख आकर , सीधा साष्टांग दंडवत होकर लेट गए।
राजेंद्र बाबू जैसे व्यक्ति को ऐसा करता देख पूरी अदालत और स्वयं अंग्रेज न्यायाधीश भी अपनी कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए और उनका सारा क्रोध कपूर बन कर उड़ गया। अपनी विलक्षण बुद्धि और प्रखर चतुरता के कारण उस दिन राजेंद्र बाबू ने न सिर्फ जगद्गुरु बल्कि पूरे सनातन समाज को अपमानित होने से बचा लिया। ऐसे थे सरल और अनोखे राजेंद्र बाबू
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