पिछले कुछ दिनों से हरियाणा और पंजाब के किसान नए कृषि कानूनों के विरोध मे दिल्ली मे इकट्ठा हुए हैं|
हालांकि इनमे कितने लोग किसान है और कितने शाहीन बाग के आंदोलनकारी, खलिस्तान समर्थक, जेएनयू के वांपथी छात्र,और कितने राजनीतिक दल है जो किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे है, यह स्पष्ट नहीं है|
अब सवाल उठता है कि किसान इन बिलों का विरोध क्यों कर रहे है तो इसके पीछे किसानों का तर्क है की इन बिलों से MSP खत्म हो जाएगा और किसानों के जमीन को कोरपोरेट घराने हथिया लेंगे|
जबकि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कह चुके है कि इन बिलों का MSP से कोई संबंध नहीं है, बल्कि मोदी सरकार मे फसलों का MSP डेढ़ गुना तक बढा है|
मोदी सरकार मे 5 साल मे गेंहू की MSP 42% बढ़ी है, मसूर की MSP 73% तक बढ़ी है|
अब विपक्ष के नेता राहुल गांधी अपने राजनीतिक लाभ के लिए इन बिलों को और केंद्र सरकार को किसान विरोधी बता रहे हैं लेकिन निम्न सदन लोकसभा मे बिलों पर चर्चा होती है राहुल जी छुट्टी मनाने विदेश चले जाते है|
काँग्रेस खुद को किसान हितैषी कहती है लेकिन काँग्रेस शासित राजस्थान सरकार बाजरे की फसल को 1300 रुपए प्रति क्विंटल मे खरीदती है जबकि केंद्र सरकार ने बाजरे का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2150 रुपए प्रति क्विंटल तय कर रखा है |
किसान, बिलों मे वर्णित कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग का विरोध कर रहे है लेकिन काँग्रेस शासित राज्य पंजाब मे कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग का फार्मूला पहले से चलता आ रहा है|
कान्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग के पीछे किसानों का तर्क है की इससे निजी कंपनियां मनमाने दाम पर उनकी फसल खरीदेंगे जबकि वास्तव मे इन बिलों मे यही कानून है की कोई भी निजी कंपनी किसानों की फसल को MSP से काम दाम पर नहीं खरीद सकती है|
आंदोलन मे शामिल सर्वाधिक किसान पंजाब से है जबकि अपनी फसल को MSP पर बेचने वाले किसानों मे 90% किसान पंजाब से है| फसल खरीदने वाली कंपनी को किसानों को फसलों की आधी राशि तीन दिनों मे और शेष राशि लगभग पंद्रह दिनों मे किसानों को देनी होंगी|
यदि कोई कंपनी फसल की खराब गुणवत्ता बताकर किसानों की फसल को नहीं खरीदती है तो इस संबंध मे एक कमेटी गठित की जाएगी जो 3 दिन मे अपनी रिपोर्ट देकर फसल की गुणवत्ता तय करेगी|
सार यही है की ये कृषि कानून किसानों को अपनी फसल सरकारी मंडी के साथ निजी कंपनियों को भी बेचने का एक अन्य माध्यम प्रदान करता है| किसान अपनी फसल चाहे तो सरकारी मंडी मे बेचे या फिर निजी कंपनियों को, वो भी MSP के दाम पर|
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