अच्छी शिक्षा किसे नहीं चाहिए? हम सभी अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा देना चाहते हैं जिस से की वो अपना, अपने परिवार का समाज में नाम रोशन कर सके, हम आज की इस प्रतिस्पर्धा की दौड़ में अपने बच्चों को पिछड़ता नहीं देखना चाहते अतः प्रयास करते हैं की बड़े से बड़े स्कूल में उसका प्रवेश सुनिश्चित करें। कान्वेंट शिक्षा प्रणाली की नींव जब अंग्रेज़ों ने भारत में रखी तब उनका उद्देश्य भारत को शिक्षित करना नहीं था क्यूंकि अंग्रेज़ों के आने से पहले सैकड़ों वर्षों तक मुग़लों और अन्य बाहरी आक्रमणकारियों से लड़ते हुए भी भारत ने अपनी मूल शिक्षा व्यवस्था को बचा रखा था, १७७२ रोबर्ट क्लाइव ने ब्रिटेन की संसद में अपने भाषण में बताया था की भारत की शिक्षा व्यवस्था का स्तर उस समय दुनिया में शीर्ष पर था, देश में घुमते हुए क्लाइव के अधिकारी मैकाले को एक भी अशिक्षित व्यक्ति नहीं मिला, भारत में उस समय भौतिकी, रसायन शास्त्र, शिल्पकारी, चिकित्सा और अन्य जटिल विषय अपने चरम पर थे। भारत में राज करने और करते रहने के लिए जो षड्यंत्र क्लाइव और मैकाले ने रचा उसकी नीव थी कान्वेंट स्कूल, सन १८४३ में जब कोलकाता में पहला कान्वेंट खोला गया तो केवल अंग्रेज़ अधिकारीयों के बच्चों को ही उसमे पढ़ाया जाता था, धीरे धीरे अंग्रेज़ों के अधीन काम करने वाले कर्मचारियों के बच्चे भी उसमे पढ़ने लगे और उच्च शिक्षा के लिए उन्हें विदेश भेजा जाने लगा, साथ ही अंग्रेज़ों ने भारत की गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को पूर्णतयः नष्ट कर देने के उद्देश्य से भारत में वो भयानक कोहराम मचाया जिसने हमारी १००% शिक्षित समाज को लगभग शून्य पर ला खड़ा किया।
आज़ादी के बाद भी भारत ने अपनी मूल शिक्षा व्यस्था को नहीं अपनाया वहीँ जापान जब आज़ाद हुआ तो उसने सबसे पहले अंग्रेज़ों के बनाये कान्वेंट स्कूलों को नष्ट कर दिया, भारत का दुर्भाग्य की अंग्रेज़ों के जाने के पश्चात शिक्षा व्यवस्था उनके चाटुकारों के पास ही रही जिसका नतीजा ये हुआ की कान्वेंट शिक्षा प्रणाली न केवल जारी रही बल्कि उसने आज की लगभग पूरी शिक्षा व्यवस्था को अपने कब्ज़े में ले लिया है, आज आप देख सकते हैं, हमारे बच्चों को कृष्ण की जीवनी याद हो न हो ईसा मसीह का इतिहास पता होगा, दिवाली पर राम बनाया जाए या न बनाया जाये २५ दिसंबर को सेंटा नाम का जोकर अवश्य बनाया जाता है, किताबों में यीशु की जीवनी, मदर टेरेसा के समाज पर फर्जी उपकार और यहाँ तक की प्रार्थना में सरस्वती वंदना का स्थान विदेशी प्रार्थना ने ले लिया है, देश के कोने कोने में मैकाले के स्वप्नरूपी कान्वेंट नाम के कुकुरमुत्ते हमें मुँह चिढ़ा रहे हैं, की तुमने आज़ादी तो ले ली पर इस मानसिक गुलामी को कैसे मिटाओगे?
पंजाब जैसे समृद्ध राज्य का उदहारण लीजिये, कनाडा जैसे देशों से कमाई लाने वाले सभी प्रकार से संपन्न परिवारों ने भी अब धर्मान्तरण करना शुरू कर दिया है, इस धर्मान्तरण के मूल में कोई मदर टेरेसा नहीं बल्कि वही सेंटा है जिसे हम प्रायः बच्चों की ख़ुशी के लिए और समाज में अपनी सहिष्णु छवि को बनाये रखने के लिए नज़रअंदाज़ कर देते हैं, शुरुवात इस सेंटा से होती है और धीरे धीरे आपके बच्चे के उत्सुक और कच्चे दिमाग में ईसाइयत का बीज बोया जाता है, उस धर्म को त्यागकर आज सिख समाज ईसाइयत अपना रहा है जिसकी रक्षा के लिए उन्होंने पगड़ी बाँधी थी, जिसके लिए गुरुओं ने शीश कटवाए, वो इतिहास कौन पढ़ायेगा की जब आप क्रिसमस की खुशियां मनाते हुए अपने धर्म को भूल बैठे हो उन्ही सर्द दिनों, उन्ही ठिठुरती रातों में २ छोटे छोटे बच्चे बुर्ज की दीवारों पर भूखे प्यासे आपके धर्म को बचाने में यातनाएं झेल रहे थे, उन्होंने उस छोटी आयु में परमगति को स्वीकार किया किन्तु अपना धर्म और संस्कृति नहीं भूले, उन गुरुओं के तप को ये सेंटा नाम का राक्षस कलंकित कर रहा है और हम अपनी झूठी दिखावे भरी इज्जत और शान बघारने में व्यस्त हैं।
विरोध करने के लिए हम पहले ही देर कर चुके हैं किन्तु जब जागो तभी सवेरा, मुझे मेरी बेटी के विद्यालय से फ़ोन आया जब उसने अपनी अध्यापिका को सेंटा बनकर वीडियो बनाकर भेजने से ये कहकर इंकार कर दिया की हम क्रिसमस नहीं मनाते और न ही मनाएंगे, मेरे लिए वो गर्व का क्षण और विषय था, हम अपने बच्चों को सही गलत का फर्क बताकर विरोध करना नहीं सिखाएंगे तो मैकाले का वो दुःस्वप्न पूरा हो जाएगा, टेरेसा का वो षड्यंत्र फलीभूत हो जाएगा, सेंटा नाम का राक्षस इस सनातन संस्कृति को खा जाएगा, अतः विरोध करें और अपना कल बचाएं।
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