कहते हैं अनाड़ी का खेल राम , खेल का सत्यानाश।  ठीक यही हाल आज देश के तीन प्रमुख राज्यों , दिल्ली महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल का हो गया है।  चाहे कोरोना काल में सामाजिक राजनैतिक और प्रशासनिक दायित्वों के वहां की बात हो या फिर केंद्र राज्य संबंधों में कड़वाहट हो या अन्य कोई भी स्थानीय /राष्ट्रीय मुद्दा।  इन सभी मोर्चों पर ही इन राज्य सरकारों और इनके अगुआ राजनेताओं ने निहायत ही अपरिपक्वता का परिचय देते हुए स्थितियों को और अधिक बदतर ही किया है।

देश की राजनीति और स्वयं देश का केंद्र , राजधानी दिल्ली की सरकार , विशेषकर इनके मुखिया कर पार्टी ने पिछले कुछ समय में दिल्ली की पूरी सूरत-सीरत सब बदतर करके रख दिया है।  अपने पिछले कार्यकाल में राजयपाल से हर प्रशासनिक निर्णय पर विवाद और अब केंद्र सरकार के साथ ऐसा ही गतिरोध। 

कोरोना की वर्तमान आपदा , प्रदुषण , स्वास्थ्य और यहना तक की प्रदेश की साफ़ सफाई , पेयजल आदि जैसी तमाम बुनियादी समस्याओं में से किसी एक पर भी कोई ठोस कार्य , कोई दूरगामी योजना , कोई समाधान आदि कुछ भी नहीं कर सके।  हाँ विभिन्न समाचार माध्यमों में बार बार प्रकट होकर आत्मप्रचार और दूसरों पर दोषारोपण जरूर करते रहे।  दिल्ली को संभालने में पूरी तरह से नाकाम रही आम आदमी पार्टी अब अन्य राज्यों की तरफ रुख करने का भी मन बना रही है।

देश की आर्थिक राजधानी और मायानगरी मुम्बई के प्रदेश महाराष्ट्र में गठबंधन की सरकार चला रही शिवसेना और इनके अगुआ उद्धव ठाकरे तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से भी ज्यादा कठिन दौर में दिखाई देते रहे।  अपने पुत्र का नाम विवादों में आने , साधु संतों पर हमले ह्त्या , फ़िल्मी सितारों की संदिग्ध मृत्यु , साइन जगत में फैला ड्रग्स का कारोबार , कभी अभिनेत्री कंगना राणावत तो कभी समाचार चैनल और उसके सम्पादक से विवाद और इन सबके बीच उच्चा न्यायपालिका से प्रदेश सकरार को लगातार पड़ती लताड़ ही वो कुछ प्रमुख उपलब्धियां हैं जो पिछले दिनों महाराष्ट्र को देश दुनिया में सुर्ख़ियों में रखती रही।

तीसरा और अंतिम राज्य पश्चिम बंगाल जहां की ममता सरकार यूँ तो अब कुछ समय की मेहमान भर रह गई है , मगर इस सरकार का पूरा कार्यकाल , तृणमूल से असहमत रहने वालों , और सनातन समाज के लिए किसी दुःस्वप्न से कम नहीं रहा है।  कोरोना जैसी महामारी के समय में भी राज्य सरकार द्वारा पीड़ितों और मृतकों की संख्या न बताना , केंद्र द्वारा राज्यों को दिए जाने वाले अनुदान और सहायता योजनाओं को लागू न होने देना ,और बात बात पर खुद सरकार की मुखिया द्वारा अभद्र भाषा और व्यवहार का परिचय।  बस यही कुछ देखने को मिला है पश्चिम बंगाल में।  कानून व्यवस्था प्रशासन ,पुलिस आदि विषयों पर तो इनका रिकॉर्ड और अधिक बदतर है।

पश्चिम बंगाल को तो आने वाले चुनावों में निश्चित रुप से एक अकर्मठ और गैर जिम्मेदार सरकार से मुक्ति मिलती दिख रही है हाँ दिल्ली और महाराष्ट्र के नसीब में अभी कुछ समय और ये सब देखने सुनने को मिलता रहेगा।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.