आम तौर पर जब भी किसी राज्य के चुनाव होते हैं, तो चुनाव के पहले और चुनाव के बाद, अक्सर ये बात उठती है कि क्या चुनावों के नतीजों पर राज्य के स्थानीय मुद्दों ने असर डाला? कभी कभी इसी बात के इर्द गिर्द ही राष्ट्रीय स्तर के दलों के सामने क्षेत्रीय दलों का राज्य के चुनाव में मुक़ाबला कराया जाता है।
एक स्वस्थ लोकतंत्र की बात करें तो ये बहुत ही बढ़िया बात लगती है। क्यूँकि केंद्रीय सरकार और राज्य सरकारों के बीच अधिकार क्षेत्र को लेकर स्थिति बहुत हैड तक साफ़ है और अगर कोई मुद्दा फँसता भी है तो राज्य आपस में या फिर न्यायालय के हस्तक्षेप से मामला सुलटा लेटे हैं।
पर क्या बात सिर्फ़ इतनी ही होकर रह जाती है? क्या राज्यों के चुनाव वाक़ई में देश की नीतियों पर कोई असर नहीं डालते हैं? इसके लिए सबसे पहले समझते हैं “indirect election” या “अप्रत्यक्ष चुनाव” को।
अप्रत्यक्ष चुनाव
भारत की संसदीय व्यवस्था में जो सबसे प्रमुख पद हैं : राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य : इसमें से किसी का भी जनता सीधा चुनाव नहीं करती है। जनता जिन जनप्रतिनिधियों का चुनाव करती है, वो अप्रत्यक्ष रूप से इन पदों पर आसीन होने वाले लोगों का चुनाव करते हैं। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तो लोकसभा और विधानसभा के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं, जबकि राष्ट्रपति को पूरे देश की विधानसभाओं, लोकसभा आदि के सदस्य अप्रत्यक्ष रूप से चुनते हैं। मतलब देश की नीतियों पर मोहर लगाने वाला और देश की तीनों सेनाओं का सर्वेसर्वा व्यक्ति , आपके लोकसभा और विधानसभा : दोनों में दिए गए वोट से चुना जाता है।
राज्य सभा
राज्य सभा , केंद्रीय संसद का उच्च सदन है । इसके सदस्य राज्यों की विधानसभाओं से भी चुनकर आते हैं। केंद्र सरकार कोई भी बिल बिना राज्यसभा की मंज़ूरी के पास नहीं कर सकती । जिसका सीधा मतलब है, राज्य की विधानसभाओं के चुने प्रतिनिधि कहीं का कहीं देश के निर्णयों में अपना असर डालते हैं।
जैसा पहले कहा, वैसे तो ये स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है पर कभी कभी क्षेत्रीय दलों की ज़मीनी पकड़ या तो बहुत सीमित होती है जो मुद्दों को बहुत स्थानीय बना देती है । इसके चलते अक्सर देश के मुद्दे गौड़ हो जाते हैं। मसलन उत्तर प्रदेश या बिहार के चुनाव में धारा ३७० का मुद्दा , कई क्षेत्रीय दलों को मुद्दा ना लगे पर उनके चुने राज्य सभा के सदस्य उस बिल के पास होने के पक्ष और विपक्ष में अपने वोट ज़रूर डाले होंगे। मतलब कहीं न कहीं, जिन लोगों को आपने देश और प्रदेश के स्तर पर लोगों को चुना था, उन्होंने देश के इस बड़े निर्णय में अपना पक्ष ज़रूर रखा होगा । यहाँ मुद्दा ये हो जाता है कि क्या उनका सदन में लिया पक्ष , आपके अपने पक्ष से मेल खाता है? अगर जवाब नहीं है, तो बात बहुत साफ़ हो जाती है कि आपके प्रतिनिधि स्थानीय मुद्दे भले सम्भाल लें, राष्ट्र के मुद्दे नहीं सम्भाल सकते।
क्या स्थानीय मुद्दे, राष्ट्रीय मुद्दों के आगे स्थान नहीं रखते?
बिलकुल रखते हैं। वास्तव में एक स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी ही यही है की स्थानीय मुद्दे और राष्ट्रीय मुद्दे एक दूसरे का रास्ता कभी भी ना काटें। पर कभी विभिन्न कारणों के चलते स्थितियाँ बन जाती हैं कि किसी एक को वरीयता देनी पड़ती है। और अगर ये वरीयता ठीक से ना निर्धारित हो तो हो सकता है की वो देश के किसी और हिस्से को प्रभावित करे, पर कभी ना कभी उसका असर सबपर पड़ता है।
कोरोना के समय लगे लाक्डाउन में मज़दूरों के पलायन का मुद्दा भी लगभग वैसा ही है। कितने लोगों को रातोंरात अन्य प्रदेशों की सीमाओं पर लाकर डाल दिया गया था । कोई भी राष्ट्रीय सोच रखने वाला दल ऐसा कभी करेगा क्या ?
तो क्या राष्ट्रीय दलों को राज्य के चुनावों में वरीयता मिलनी चाहिए?
नहीं, बिलकुल नहीं। ऐसे कितने उदाहरण हैं जिसमें, एक राज्य का अपराधी दूसरे राज्य में शरण पता है और दोनों राज्यों में पूर्ण बहुमत की राष्ट्रीय दलों की सरकारें हैं। राष्ट्रीय दल की नीतियाँ अगर देशहित में नहीं है तो वो भी अच्छा संकेत नहीं है और उनके जीतने से देश पर उल्टा असर ही पड़ना है । किसी भी राष्ट्रीय दल को प्रदेश के चुनावों में तब तक वरीयता नहीं मिलनी चाहिए, जब तक वो देश के लिए सकारात्मक सोच ना रखते हों।
फिर किस तरह क्षेत्रीय दल, राष्ट्रीय दल बनेंगे?
ये सवाल उठना बड़ा लाज़मी है की क्षेत्रीय दल फिर कैसे उन्नति करेंगे। बिलकुल सही बात है। और उतना ही आसान सा जवाब है। दल कितना भी बड़ा और छोटा हो, देश के हर मुद्दे पर उसकी सोच बड़ी स्पष्ट होनी चाहिए । फिर अगर वो जनता की सोच से मेल खाती है तो उसे आगे बढ़ने से कौन रोक सकता है। ऐसे दलों के आगे बढ़ने से लोकतंत्र और मज़बूत ही होता है।
अपने वोट की अहमियत पहचानिए!!!
कुल जमा कहने का मतलब ये की आप जिस भी स्तर के प्रतिनिधि चुनने के लिए वोट करने जाएँ, तो केवल उस प्रतिनिधि को या अपने स्थानीय मुद्दों को केवल मत देखिए, एक बड़ी पिक्चर साथ रखिए। आपके वोट के हर उम्मीदवार से स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय मुद्दे पर उसके और उसके दल के विचार जानिए और फिर फ़ैसला कीजिए की वोट किसे देना है। वोट आपका अमूल्य है और इसे बेवजह किसी को भी मत दे दीजिए ।
बाबा भोलेनाथ, भगवान राम और प्रभु श्री कृष्ण आपको अपने प्रतिनिधि चुनने में मदद करें!!!!
( ऊपर लगायी फ़ोटो उड़ीसा के प्रसिद्ध सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक की बनायी एक कृति है)
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.