आज कुछ बुद्धिजीवियों को नया मसाला मिल गया है। श्री रविशंकर ने अपने एक प्रवचन में कहा है कि आस्ट्रेलिया अस्त्रालय से बना शब्द है। मेरा एक अनुज इसी पद्धति से सोमालिया को सोमालय कह रहा है। वामपंथ की एक सोची समझी रणनीति होती है कि जिस बात की निंदा कर सकते हैं उसे चुनिए और भरपूर निंदनीय बनाइए। वैसे श्री रविशंकर का नाम छोड़कर कुछ भी सनातन का नहीं है। क्योंकि सनातनी सुविधाभोगी प्रजाति होते हैं इसीलिए उन्हें ऐसे संत टाइप के लोग बहुत सुहाते हैं जो किसी प्रकार का कठोर व्रत पालन करने को न कहें। ऐसे लोग थोड़ा वेद थोड़ा उपनिषद थोड़ा कुरान थोड़ा बाइबल थोड़ा अवेस्ता का कॉकटेल पिलाकर भक्त बनाते रहते हैं। पर ज्यादातर उदारण सनातन से ही लेते हैं क्योंकि सनातनेतर धर्म ग्रंथों से मनमर्जी के उद्धरण नहीं लिये जा सकते हैं। उन्होंने अगर कभी किसी की माता के कौमार्य का उदाहरण उठाया या किसी की लगभग दर्जनभर शादियों का उद्धरण दिया तो हमेशा साँस अटकने का डर रहेगा। परंतु सनातन का कोई नामलेवा ना होने के कारण उसके उदाहरणों को मनमर्जी से प्रयोग किया जा सकता है। तो रविशंकर ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया के मध्य भाग में जो मरूभूमि है वह पांडवों के अस्त्रों के वहां पर रखे होने की वजह से है । और इसी के समर्थन ने उन्होंने कह दिया कि ऑस्ट्रेलिया अस्त्रालय का हीं नवीनीकृत रूप है।
वैसे बुद्धिजीवियों को बताना चलूँ की पहली बार रासायनिक तत्वों की आवर्त सारणी का जिक्र किसी पाश्चात्य भाषा के लेखक के उपन्यास में था, मेंडलीफ की कल्पना से भी पहले।
कहा जाता है कि जॉनेथन स्विफ्ट में गुलिवर्स ट्रेवल टू जुपिटर नाम के अपने उपन्यास में जुपिटर ग्रह का एक चित्र बनाया था जो इस अंतराल में अमेरिका के सेटेलाइट द्वारा खींचे गए जुपिटर के चित्र से काफी समान दिख रहा था। और उन्हीं के २०० साल पहले की कल्पना २०० साल बाद मंगल के दो उपग्रहों के रूप में सामने आई।
परंतु बुद्धिजीवियों को यहां समस्या नहीं है। जब किसी व्युत्पत्ति का श्रेय सनातन को या कहे तो भारतीयता को मिलने लगता है बुद्धिजीवियों की खुजली बढ़ जाती है।

जब तक आपकी कल्पना को साक्षी का साथ ना हो आपकी कल्पना विज्ञान ना कहला कर दर्शनशास्त्र कहलाएगी और जैसे ही उसे अपने सबूतों के साथ प्रस्तुत किया वही आपकी कल्पना ( विदेशियों की भाषा में ) माइथोलॉजी , विज्ञान बन जाती है।

आपको शायद पता हो कि हिंदी में लिखे गए शब्द कैसे और कौन का जैसा हम उच्चारण करते हैं यह हमारे हिंदी वर्णमाला के मात्राओं में नहीं आती है। अगर देखा जाए तो चंद्रबिंदु भी हमारी वर्णमाला का हिस्सा नहीं है। अगर भाषा विज्ञान की तरफ से देखें तो कैसी और कौन का उच्चारण हम अरबी भाषा फारसी या उर्दू के आधार पर करते हैं।

गणित के एकमात्र भाग अलजेब्रा की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा से नहीं हुई है बल्कि ये अरबी भाषा के शब्द अल जबर का लैटिन स्वीकरण है। और स्टेप बाय स्टेप समझने की कला को जो अंग्रेजी में हम एल्गोरिदम कहते हैं वह दरअसल अरबी गणितज्ञ अल ख्वारिज्मी के नाम का लैटिन रूपांतरण है।

अगर ध्यान देंगे तो १०० के लिए लैटिन शब्द सेंटम और संस्कृत के शतम में ज्यादा फर्क नहीं दिखाई देगा।

भाषा विज्ञानी यह मानते हैं भाषा विज्ञानी यह मानते हैं की किसी भी भाषा के शब्द का अर्थ उसी भाषा में पूर्णतया नहीं बताया सकता है जैसे आप हिंदी में कभी समझा नहीं सकते कि क्या का मतलब क्या होता है पर जैसे ही आप अंग्रेजी भोजपुरी तमिल तेलुगू आदि भाषाओं में इसके अनुरूप शब्द ढूंढेंगे तो मिल जाएगा। आप बता सकते हैं कि क्या का मतलब अंग्रेजी में व्हाट होता है।

परंतु बुद्धिजीवी विचारकों को तो गंदगी चाहिए । रविशंकर जी का अस्त्रालय से ऑस्ट्रेलिया इतना चुभ रहा है बुद्धिजीवियों को कि वे कुर्सी पर बैठ नहीं पा रहे हैं।

वैसे इतनी चुभन अच्छी है।।

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.