हमारा देश भारत आश्चर्यजनक रहस्यों और अचंभित करने वाले तथ्यों से परिपूर्ण है। भारत में सभ्यता का उद्भव तब हुआ जब दूसरे प्रांत में लोग गुफाओं तथा पेड़ों कि छांव में रहा करते थे। जब किसी ने कमरों का ख्याल तब भारत में महलों का निर्माण होता था।

प्राचीन भारतीयों को अन्तरिक्ष की संरचना और ग्रहों की गतियों के विषय में अनुपम ज्ञान था। ये बात मैं बिना प्रमाण के नहीं बोल रहा हूं आप स्वयं देखिए कैसे इस 4000 साल पुराने ऋग्वेद के मंत्र में अन्तरिक्ष और सूर्य का वर्णन मिलता है:

पंचा॑रे च॒क्रे प॑रि॒वर्त॑माने॒ तस्मि॒न्ना त॑स्थु॒र्भुव॑नानि॒ विश्वा॑ ।
तस्य॒ नाक्ष॑स्तप्यते॒ भूरि॑भारः स॒नादे॒व न शी॑र्यते॒ सना॑भिः ॥

(ऋग्वेद 1.164.13)

अर्थात, ये सूर्य अपनी ऑर्बिट यानी कक्षा में घूमता है और बाकी सारे ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। पृथ्वी भी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है। सूर्य ने अपनी शक्ति से समस्त ग्रहों को पकड़ रखा है।

हमारी परम्परा प्राचीनतम तो रही ही है, किन्तु सबसे ज्यादा विकसित भी रही है। विचार कीजिए कि क्या ऐसा 4000 वर्ष पूर्व पता करना संभव था? भारत की इस प्राचीन परंपरा को प्रणाम करता हूं।

आदर्शेयं सुप्राणीनां भूतानां सुगतीप्रदाम्।
तारिणी सर्व पापेभ्यः वन्दे आर्ष परम्पराम्।। (स्वरचित)

नमो नमस्ते!

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