अगर यही सब चलता रहा हर कानून के नाम पर हिंदुस्तान को जलाना हिंदुस्तान की सड़कों को जाम करना हिंदुस्तान में अशांति फैलाना अगर यही सब चलता रहा तो फिर क्या जरूरत है संसद की क्या जरूरत है विधानसभा की क्या जरूरत है राज्यसभा की और क्या जरूरत है विधान परिषद की और अगर इन सब की जरूरत नहीं है तो फिर किसी सांसद विधायक या लोकतंत्र या संविधान की भी जरूरत नहीं है देश को क्योंकि बहुमत से जीतकर सत्ता में आने वाली सरकार अगर किसी प्रकार का कानून बनाती है और हर उस कानून को राजनीतिक दृष्टि से देखकर उसका समर्थन करना या विरोध करना यह कहां तक जायज है समर्थन तक तो ठीक है लेकिन विरोध के नाम पर देश में आगजनी फैलाना प्रदेश के संसाधनों को जो जनता के टैक्स की कमाई से बना है उन संसाधनों को नुकसान पहुंचाना लोकतंत्र के किस कानून में यह बात लिखी है तो गर्म लोकतंत्र को ही नहीं मानते हैं तो फिर क्या जरूरत है इन सब चीजों की लोकतंत्र को आजकल के इन आंदोलनकारियों ने मजाक बनाकर रख दिया है पूरे विश्व में हिंदुस्तान में आंदोलन करने की प्रणाली पर लोग हंस रहे हैं मजाक उड़ा रहे हैं एक दौर था जब आंदोलन को क्रांति के रूप में देखा जाता था परंतु आजकल क्रांति की बजाय देश में पनप रही नकारात्मक व्यवस्थाओं को खड़ा करने तथा सत्ता में बैठी सरकार का विरोध करने के लिए विपक्ष का रूप लेकर आंदोलनकारी आंदोलन करने का कार्य करते हैं जो कि बिल्कुल अनुचित है लोकतंत्र के खिलाफ है

वो संगीन सवाल जो आज देश के सीने में सुलग रहे हैं…
इस देश में लोकसभा विधानसभा के चुनाव क्या खिलवाड़ करने के लिए होते हैं.?

भारत और पूरी दुनिया के देशों के संविधान निर्माताओं ने अपने अपने देश में चुनाव की व्यवस्था क्या मनोरंजन मात्र के लिए की थी.?

चुनाव में हम क्या भाड़ झोंकने के लिए वोट डालते हैं.?

सभी राजनीतिक दल और राजनेता क्या भाड़ झोंकने के लिए चुनाव लड़ते हैं.?

भारत में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाएं क्या भाड़ झोंकने के लिए बनी है.?

दोनों सदनों के सांसद क्या सजावटी खिलौने मात्र हैं.?

आज उपरोक्त सभी सवाल इसलिए क्योंकि…
मई 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद से इस देश में गुंडों लफंगों लुटेरों लम्पटों के राजनीतिक गिरोह और माओवादी नक्सली हत्यारों के एनजीओ गैंग्स ने एक नया तमाशा शुरू किया है. देश की संसद में देशहित में पारित होने वाले हर बिल के खिलाफ़, देशहित में बनने वाले हर कानून के खिलाफ़ ये गिरोह और गैंग यह कहते हुए पूरे देश में दंगा फसाद बवाल शुरू कर देते हैं कि फलाना कानून बनाने से पहले, फलाना बिल पास करने से पहले, हमसे बात क्यों नहीं की गयी.? लोगों से बात क्यों नहीं की गयी, सबसे बात क्यों नहीं की गयी.?
पिछले छह वर्षो के दौरान संसद द्वारा धारा 370, CAA, नोटबंदी, और वर्तमान कृषि बिल तथा अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण कानून जब बनाये गए, प्रस्ताव पास किए गए हैं. तब तब इस गिरोह और गैंग ने पूरे देश में हिंसक बवाल, दंगा फसाद करने की कोशिश की है. देश को बंधक बनाने की कोशिश की है.
क्या ये सभी गिरोह और गैंग्स देश को ज़वाब देंगे कि

5 साल तक कामकाज परखने के बाद पहले से ज्यादा मत और सीट देकर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर किसने बैठाया है.?

उन्हें इस कुर्सी पर बैठाने वाले लोग कौन हैं.?

क्या वो लोग इस देश के नागरिक नहीं हैं.?

नरेन्द्र मोदी इस देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर क्या जबर्दस्ती बैठ गए हैं.?

इस देश के लोगों ने अपने वोटों के जरिए नरेन्द्र मोदी को पहले से भी ज्यादा अपना विश्वास देकर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर दोबारा क्यों और किसलिए बैठाया है.?

देश की संसद में बैठे सांसद कौन हैं.?

क्या वो देश की संसद में जबर्दस्ती घुस गए हैं.?

देश की संसद में उन्हें किसने भेजा है और किसलिए भेजा है.?

देश के संविधान ने देश के लिए कानून बनाने का अधिकार क्या देश के प्रधानमंत्री और सांसदों के अलावा किसी और को दिया है.?

आज उपरोक्त सभी सवाल देश के सीने में सुलग रहे हैं.
इनदिनों दिल्ली में हुड़दंग हंगामा बवाल कर रहे. खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे, देश के प्रधानमंत्री की छाती में गोली ठोंक देने की चेतावनी दे रहे, हिन्दूओं की मां बहनों को गाली दे रहे देशद्रोही गुंडों और हत्यारों के राजनीतिक गिरोह और गैंग का जो तांडव हो रहा है, उस तांडव को देश बहुत ध्यान से देख सुन रहा है और उसके सीने में सुलग रही आग की लपटें और ज्यादा तेज और ऊंची होती जा रही है.

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