केरल के कमाल के पीछे बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग प्रमुख मुद्दा मानी जा रही है जिस तरह से भगवा पार्टी ने सुदूर दक्षिण के राज्य केरल में मुस्लिम और ईसाई उम्मीदवारों को तरजीह दी वह अपने आप में बताता है कि बीजेपी के बढ़ते कदम अब हिंदुत्व की राजनीति से आगे निकलकर सर्व धर्म में अपने पैर पसार रहे हैं ।बीजेपी ने केरल चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग को अपनाया और चुनाव में वामपंथ के गढ़ में अपनी दस्तक दी है। इस बार बीजेपी ने चुनाव में कई मुस्लिम और ईसाई उम्मीदवारों को भी टिकट दिये हैं। भाजपा को उम्मीद थी कि कई मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक के कानून के लिए उसे वोट देंगी। इसके अलावा मुस्लिम महिलाओं की शादी की उम्र 18 से 21 वर्ष करने की योजना का भी कई मुस्लिम लड़कियों ने स्वागत किया था।  उत्तर प्रदेश, गुजरात जैसे राज्यों में, जहां बड़ी संख्या में मुस्लिम रहते हैं, विधानसभा चुनावों में भाजपा ने किसी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया और स्थानीय निकाय के चुनावों में भी वह उन्हें ज्यादा महत्व नहीं देती लेकिन केरल के स्थानीय निकायों के चुनावों से उसने 112 मुस्लिम नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा है। साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले केरल राज्य में 27 फीसदी मुसलमान हैं और 19 फीसदी ईसाई हैं। भाजपा ने 500 ईसाइयों को भी टिकट दिया है। राज्य में ईसाई और मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या को देखते हुए पार्टी को ये रणनीतिक कदम उठाना पड़ा है।

इससे साफ है कि भाजपा की नजर स्थानीय निकाय नहीं विधानसभा चुनाव पर है। यह उसका प्रयोग है। इसमें अगर वह सफल होती है तो विधानसभा चुनाव में भी इसे आजमाएगी। एलडीएफ और यूडीएफ की कड़ी टक्कर में भाजपा किंगमेकर के तौर पर उभर सकती है। भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग के अलावा दिलचस्प पहलु यह है कि सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया, जो पापुलर फ्रंट आफ इंडिया की राजनीतिक शाखा है, ने एक दर्जन सीटों पर हिंदू महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा पीएफआई पर इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन होने का आरोप लगाती है।  

विधानसभा चुनावों के लिए ही भाजपा ने सबरीमाला के मुद्दे पर स्थानीय भावनाओं का सम​र्थन करते हुए पूरा जोर लगाया था। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर भी विरोध दर्ज कराया था। इसका नतीजा पिछले वर्ष राज्य की कोन्नी सीट पर हुए उपचुनाव में भी देखने को मिला था। इस सीट पर पहले कांग्रेस का कब्जा था लेकिन उपचुनाव में एलडीएफ के उम्मीदवार को जीत मिली थी और कांग्रेस का वोट शेयर करीब 20 फीसदी घट गया था। इस चुनाव में कांग्रेस का वोट शेयर भाजपा के खाते में जाता दिखा। भाजपा को इस सीट से 17 फीसदी वोट शेयर का फायदा मिला था। पिछले चुनाव में उसका वोट शेयर 11.70 फीसदी था जबकि उपचुनाव में बढ़कर 28.68 फीसदी हो गया था।

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