– अंकित सुमन

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19 भारत के नागरिकों को यह अधिकार देता है कि उनके मन में यदि कोई विचार है, किसी परिस्थिति पर वह कुछ व्यक्त करना चाहते हैं तो उन्हें विभिन्न माध्यमों से उन्हें अपने विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता है। बोलकर, लिखकर, चित्र बनाकर, फ़िल्म बनाकर इत्यादि माध्यमों से लोग अपने विचार व्यक्त कर सकते हैं। यह अधिकार केवल भारत के नागरिकों को ही नहीं बल्कि विदेशी नागरिकों को भी मिले हैं।

यूँ तो ये अधिकार प्रत्येक नागरिक को हैं, मगर इन अधिकारों का हनन पिछले 70 वर्षों में होता रहा है। मज़े की बात यह है कि इन अधिकारों का हनन करने में सरकार स्वयं आगे है। पिछले कुछ सालों में कई फ़िल्मों, पुस्तकों, नाटकों पर सरकारों द्वारा प्रतिबंध लगते रहे हैं। कई बार यह जनता की शिकायत पर किया जाता है, तो कई बार सरकारें वोट बैंक और अपनी सत्ता बचाने की राजनीति के कारण ऐसा करती रहती है।

ताज़ा मामला सामने आया है महाराष्ट्र से। महाराष्ट्र के गृह मंत्री श्री अनिल देशमुख ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखकर मांग की है कि वह एक फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाए। फ़िल्म का नाम है – “मुहम्मद: द मैसेंजर ऑफ गॉड”। रज़ा अकादमी ने फ़िल्म पर आपत्ति जारी करते हुए महाराष्ट्र सरकार से मांग की कि वह इस फ़िल्म पर प्रतिबंध लगाए। केंद्रीय गृह मंत्रालय को लिखे पत्र में शिवसेना सरकार के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने बताया कि अकादमी का यह मानना है कि फ़िल्म धार्मिक भावनाओं को आहत करेगी और एक विशेष समुदाय द्वारा इसे ईश निंदा भी समझा जाएगा। इस फ़िल्म से धार्मिक तनाव बढ़ सकता है व कानून बिगड़ने की समस्या पैदा हो सकती है।

केंद्रीय गृह मंत्रालय से मांग करते हुए अनिल देशमुख ने कहा कि इस फ़िल्म की संभावित रिलीज़ डेट 21 जुलाई से पूर्व ही इस पर प्रतिबंध लगाया जाए और किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर इसको उपलब्ध न कराया जाए। इससे पहले रज़ा अकादमी ने ट्वीट करके इस फ़िल्म के विरुद्ध आपत्ति जताई थी।

मालूम हो कि इस फ़िल्म के निर्देशक ईरान के माजिद मजीदी हैं। यह फ़िल्म एक ईरानी फ़िल्म है और इसमें भारतीय संगीतकार और ऑस्कर अवार्ड विजेता ए आर रहमान का पार्श्व संगीत है। यह फ़िल्म करीब 5 वर्षों पूर्व ही कई जगहों पर रिलीज हो चुकी है और एक ग्लोबल फ़िल्म के नाते जानी जाती है। इसकी रिलीज़ के समय रज़ा अकादमी ने ए आर रहमान के ख़िलाफ़ फतवा भी जारी किया था।

हालाँकि रज़ा अकादमी के संदेहों में कितनी सच्चाई है यह तो फ़िल्म के प्रीमियर के बाद ही पता लग सकेगा। मगर यह ज़रूर कहा जा सकता है कि जो लोग इस विषय पर जानकारी पाना चाहते हैं व फ़िल्म को देखना चाहते हैं, उनके लिए समस्या आने वाली है। इसी प्रकार का विरोध जब PK, oh my God जैसी फिल्मों के दौरान किया गया था तब उसे artistic creativity कहा जा रहा था, मगर जबकि अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि फ़िल्म में विरोध है भी या नहीं, इसे ईश निंदा बताया जाने लगा है। यह रज़ा अकादमी का इतिहास निर्देशक माजिद मजीदी और उनकी पूरी टीम के काम के साथ भी अन्याय होगा अगर उनकी फ़िल्म को भारत में रिलीज़ होने से रोका गया तो। ध्यान रहे कि रज़ा अकादमी के इतिहास हिंसक है। ख़ुद को सूफी मतावलंबी बताने वाले इन लोगों ने मुम्बई के आज़ाद मैदान में अमर जवान ज्योति को तहस नहस करके भारतीय सैनिक व पुलिसवालों के बलिदान का अपमान किया था।

यहाँ देखें फ़िल्म का ट्रेलर – https://youtu.be/X86S-VCWCqQ

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.