प्रियंका ने मंगल सूत्र पहना और फोटो सेशन भी किया। पर बुद्धिजीवी तबका उबल रहा है। बात सामान्य है पर बुद्धिजीवी धड़ा मानता है कि रंगकर्मी और फ़िल्मी अभिनेता अभिनेत्री समाज पोर्क खाकर गनपति बाप्पा मोरिया कहकर भी सनातन विरोधी हीं है। अभिनय के लिये मंगल सूत्र और सिन्दूर सज्जित चेहरे निजी ज़िन्दगी में इसे पुरुषवादी सनातन समाज की गुलामी का प्रतीक मानें । घूँघट की वज़ह से चेहरे पर आई पसीने बूँदों को नारीवादी विवशता का अश्रुपात मानें पर हिज़ाब को सदैव पवित्र और नारीमुक्ति का परचम चाहे माने ना माने पर घूँघट से एक दरज़ा ऊपर तो ज़रूर मानें। फिल्म के परदे पर सनातन के प्रतिमानों का धारण करना उन्हें व्यावसायिक मज़बूरी या अनिवार्यता समझ आती है पर इन्ही प्रतिमानों को धारण करके सेल्फ़ी या इन्डेपेन्डेन्ट फोटो शूट इन बुद्धिजीवियों की कायर निष्ठा को धराशायी बना देता है। ये मानसिकता कुढ़न के साथ किंकर्तव्यविमूढ़ हो उठती है कि कहीं ये बकरा भी तो बाड़े से निकल तो नहीं गया।
और यही हुआ। ट्विटर पर प्रियंका के इस इण्डोर्समेण्ट के विरुद्ध बुद्धिजीवी आखें रक्तिम हो उठीं, प्रगतिशील कलम की स्याही सुर्ख हो गई और कीबोर्ड से उकेरे जा रहे फ़ॉण्ट लाल हो गये।


नारीवादियों को प्रियंका के गले में पितृसत्तात्मक समाज का पट्टा दिखने लगा, दक्षिणपन्थी सत्ता के कल्पित अवसान के बाद आने वाली प्रगति की आँधियों में उड़ जाने का डर प्रियंका को दिखाया जाने लगा और ऐसे इण्डोर्समेण्ट को चन्द रुपयों के लिये नारीवादी आंदोलन की राह में काँटे बोने का काम बताया गया।
दरअसल ये नचनियों का तबका राम का नाम लेकर रोटी कमाता है पर इन्शाअल्लाह कह कर उसे पचाता है। इसी बात का एक सबूत है कि एक सुपर स्टार फ़िल्मों में पण्डित बनता है , भजन गाता है और तिलक भी करता है पर युद्ध काल में भी पड़ोसी मुल्क का दिया तमगा अपने सीने से अलग नहीं कर पाता है जबकि उसी तबके के साथ अपना एका दिखाने की कोशिश में भारतीय बुद्धिजीवी अपने मुल्क से मिले अवार्ड की वापसी सरे आम करता है वगैर उस के साथ मिली हुई रकम लौटाये।


तो आखिर प्रियंका से ख़फ़ा होने की वज़ह क्या है?
पत्रिका वोग के भारतीय संस्करण के मुखपृष्ठ पर मंगलसूत्र पहने प्रियंका की फ़ोटो बुद्धिजीवियों की खरगोश मानसिकता कछुए की चाल से बढ़ते सनातन के प्रतीकों के प्रति बाज़ार के आकर्षण से खिन्न है। प्रियंका तो मुफ़्त में गुस्से का केन्द्र बन गई है। निक जोनास से विवाह के बाद धर्मसंकर प्रियंका अपनी व्यावसायिक प्रतिबद्धताओं के कारण चाहे मंगल सूत्र धारण करे या रुद्राक्ष, सनातन की अनादि अनन्त परम्परा को कोई फ़ायदा नहीं मिलने वाला पर ये सांकेतिक सूक्ष्म आघात यदि बुद्धिजीवियों को लगते रहें तो इस दब्बू सनातन मानसिकता तो मज़ा तो आता हीं है।


वैसे पुरुष से विवाह करके नारीवादियों की प्रगतिवादिता पर कुठाराघात करने वाली ये अभिनेत्री यदि विषमलिंगी कायिक भोग को धता बताते हुए किसी नारी या किन्नर को अपना शरीके हयात बनाती तो नारीवाद को पुरुषसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था को लतियाने और अपना परचम फ़हराने का बेजोड़ मौका मिलता।
खैर दोस्ताना में नारीवाद का परचम उठाये सुनहरे स्विम सूट में इन्होंने जो जौहर दिखाये थे उन्हें इस स्वर्ण निर्मित मंगलसूत्र ने कहीं का नहीं छोड़ा।


गोवा-बीच पर बिकनी सूट करती सनातन वालाये जब हिन्दुत्व का एक रोयां भी भग्न नहीं कर पा रही हैं तो व्यावसायिक फोटोशूट में पहना गया मंगलसूत्र कौन सा फ़ायदा पहुँचायेगा परन्तु मरणोपरान्त बहत्तर हूरों की कमनीयता और मादकता के सहारे धर्मयुद्ध छेड़ने वाली शान्तिप्रियता के चमचों को अगर मिर्ची लग रही है तो कहना पड़ेगा कि
जलन अच्छी है॥

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