आज कल जब भी आपको बुद्धिजीवी होने का शौक चर्राए तो बस किसान आंदोलन पर शुरू हो जाइए । किसान जो बैलों को लेकर सुबह सुबह खेत पर जाता है , इतना परोपकारी है कि खुद गरीबी में रहके देश के नागरिकों का पेट भरता है और समाज के लिए अनाज उगाता है । और ऐसे निस्वार्थी और परोपकारी निष्काम संत को केंद्रीय सत्ता ने ठंड में ठिठुरने के लिए छोड़ दिया है । आपका ये भाषण ज्योंहीं खत्म होगा यकीन मानिए सारी बुद्धिजीवी चक्षु सजल हो जाएंगे और कुछ भावुक आंखें तो बुक्का फाड़कर रोने लगेंगी।और आपको लगेगा कि केंद्रीय सत्ता ने तो कसाईखाना खोला है जिसमें किसानों की बलि ले रही है।अगर इस बात को राजनीति से परे देखा जाए तो यह बात बिल्कुल माकूल दिखती है पर जैसे ही राजनीति के उस धूसर क्षेत्र में आप प्रवेश करते हैं जहां ना सच का उजाला है झूठ का अंधेरा उस क्षेत्र में आपको यह सारा आंदोलन , आंदोलन के समर्थक, विपक्षी राजनेतागणों का असली रंग दिखने लगेगा और यहाँ तक कि सारी राजनैतिक विचारधारायें भी नंगी हीं दिखाई देगी।

मैं मानता हूं कि किसी भी गलत अधिनियम को उसके प्रारंभिक स्थिति निर्माण के अरुणोदयकाल में ही विनष्ट कर देना चाहिए क्योंकि अगर वह विधेयक अधिनियम बन जाए तो फिर उसे समाप्त करना संविधान की अवमानना होगी। इस बात के आलोक में मेरा मानना है कि इस किसान आंदोलन को जो भी पार्टियां समर्थन दे रही है या उन राज्य सरकारों को भी दोषी मानता हूं अगर उनके दल ने संसद में इस अधिनियम को समर्थन दिया है। अगर किसी ने संसद में इसका बायकाट किया है तब तो कुछ ठीक भी है।इस स्थिति में उन दलों के प्रतिनिधियों के दिल्ली बॉर्डर पर किसानों के समर्थन में खड़े होने की प्रक्रिया को संसद और संविधान की अवमानना मानकर उन सब पर राष्ट्रद्रोह का आरोप लगाया जाए और उन राजनैतिक दलों की संचित पार्टी निधि से उन सारे दिहाड़ी मजदूरों , रेहड़ी पटरी वालों या उन कर्मचारियों जिनका कार्यालय जाना वाधित हो रहा हो, उन सबको सैलरी या मेंटीनेन्स की रकम दी जाए जिनका ऑफिस जाना और रोजमर्रा का काम इस रास्ता रोको अभियान की वजह से रुका हुआ है ।

क्योंकि अगर ये राजनीतिक दल चाहते तो संसद में ही यह बिल पास नहीं होता । अगर यह बिल पास हो गया तो होना यह चाहिए था कि ये सारे नेता और राजनैतिक पार्टियों के प्रतिनिधि दिल्ली का गला घॊंटने के बदले संसद का गेट जाम कर के संसद की धमनियों का रक्त प्रवाह रोक देते। सरकार भी चेतती और इस प्रयास को दूरदर्शन को भी पूरा कवरेज़ देना पड़ता। १० या २० प्रतिशत सच्चे लोग नहीं हैं ये तो मैं नहीं कह रहा परन्तु बाकी वही भीड़ हैं जो राजनेताओं के चुनावी रैलियों को लाख-लाख लोगों की चुनावी सभा बनाने में योगदान देत्ती हैं , यह वही लोग हैं जो दंगे में भी आगे आते हैं और गैस सिलिण्डर के दाम बढ़ने पर भी प्रदर्शन करते हैं। यह वही लोग हैं जो पल्स पोलियो अभियान को भी सफल बनाते हैं और फ़्री नेट वाले जियो सिम की लाइन भी लम्बी करते हैं। सारे के सारे धरना कर्मी यहीं जमा हो गये हैं इस लिये जिन राज्यों के किसान विरोध नहीं भी कर रहे हैं वहाँ सरकार की नीतियों के समर्थन में शान्ति पूर्ण प्रदर्शन करने लायक दर्जन भर निठल्ले भी उपल्ब्ध नहीं हो रहे हैं। कारण सब के सब तो दिल्ली में हीं जमे हैं और एक शख्स का दो मनरेगा कार्ड तो बनने से रहा॥ये दरअसल बेकार लोग हैं जिनके पास कोई नौकरी नहीं है और अपना खाना खाकर बॉर्डर पर धरना देने वाले अगर बीस प्रतिशत भी असली किसान हो तो मैं एक नागरिक के तौर पर कह रहा हूं कि फेसबुक पर लिखना छोड़ दूंगा । ये तो सब के सब दिहाड़ी मज़दूर हैं। यकीनन दैनिक अस्थायी मनरेगा के लोभ में बैठे हैं। अगर सरकार उस आक्सीजन प्रदाता को पकड़ ले तो दो मिनट भी कोई टिकने वाला नहीं।यहां पर सरकार भी इस आग को जलाए रखना चाहती है वह चाहती है इससे आटे की रोटी न सिंक सके तो दाल उबाल ली जाए या चावल का पका लिया जाए।

कभी मुनव्वर राणा ने लिखा था कि
कोई भी शहर जलता है
तो दिल्ली मुस्कुराती है ॥
और यह बात सच है कोई भी मुद्दों का हल नहीं चाहता बस मुद्दों को मुद्दा बनाए रखना चाहता है। किसान के रूप में इससे पहले काका छीछी के रूप में विपक्ष को एक मुद्दा मिला था और सरकार की या कि सरकार में बैठे नेतृत्व की अदूरदर्शिता की वजह से आज सिंघु बॉर्डर या दिल्ली के कई अन्य बॉर्डर, शाहीनबाग पार्ट 2 बनकर रह गए हैं । पहले शाहीन बाग से तो सरकार को कोरोना ने बचा लिया था अब तो कोरोना खुद को नहीं बच पा रहा है, सरकार को क्या बचाएगा ?

अभी के लिए मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट लोकसभा और राज्यसभा के फुटेज देखे और जिन जिन नेताओं ने इन विधेयकों का या इन नियमों का समर्थन किया है और अब पाला बदलकर छद्म किसानों के हाथ में खिलौना बने हुए हैं उन सब पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाए ।कोर्ट की कार्यवाही चल रही है कमेटियां बन रही है उनके रिपोर्ट का इंतजार किया जाए तब तक किसानों पर कोई भी बल प्रयोग ना हो लेकिन जिन जिन सांसदों ने कभी भी इस प्रकार के किसी बिल का समर्थन किया हो उन राजनीतिक दलों के अध्यक्षों, उसके सचिवों ,कोषाध्यक्षों और जिला अध्यक्षों को तुरंत कार्यवाही करके राष्ट्रद्रोह के आरोप में कारागार या हवालात में बैठा दिया क्योंकि “हमी से मोहब्बत हमी से लड़ाई ” नहीं चल सकती हैबल्कि उन्हें कहना पड़े कि ” अरे मार डाला दुहाई दुहाई”

DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.