आमिर खान की टर्की के राष्ट्रपति एर्डोगन की पत्नी से भेंट की तस्वीरें सबने देख ही ली हैं।
लोग क्रोधित हैं कि यह भारत के मित्र इजरायल के प्रधानमंत्री से नहीं मिला लेकिन भारत विरोधी एर्डॉगन से मिलने चला गया।
इसके दो कारण है पहला एक मुस्लिम की केवल और केवल अपने मजहब के प्रति वफादारी तथा दुसरा आमिर को इससे होने वाले कई प्रकार के लाभ।
मैं हमेशा से आमिर को बाकी खानों से ज्यादा कट्टर तथा शातिर मानता हूँ।
लेकिन इन सब में एर्डॉगन को क्या मिल रहा है?
एर्डॉगन को मिल रही है दुनियाँ की दुसरी सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश में पकड़।
समय समय पर मुसलमान अपने लिये एक मसीहा ढुंढते रहते हैं।
कभी उन्हें यह मसीहा सऊदी में मिलते थे।
कुछ समय के लिये इजिप्त के नासेर साहेब ने वह जगह ली।
लेकिन कौम के हीरो नासेर को इजरायल ने “SIX DAY WAR” में ऐसा पटका की हीरो के परखच्चे उड़ गये।
फिलहाल एर्डॉगन वह जगह लेना चाहते हैं।
एर्डॉगन ने चर्च से मस्जिद और फिर मस्जिद से म्युझियम बने “हागिया सोफिया” को वापस कोर्ट द्वारा मस्जिद बनवा दिया है।
टर्की का धारावाहीक एर्तागुल मुस्लिमों में खुब पसंद किया जा रहा है।
फिलिस्तीन से लेकर कश्मीर तक हर मुद्दे पर एर्डॉगन सबसे आगे खड़े पाये जाते हैं।
वहीं सऊदी इन सब पर खामोश है।
इसलिये इस्लामिक जगत में एक नये खलीफा की जरूरत है और एर्डॉगन अपना दावा पेश कर रहे हैं।
चीन चाहता है कि इस्लामिक वर्ल्ड में उसकी वैसी ही धाक हो जैसे अमेरिका की है।
अमेरिका की धाक इसलिये है कारण सबसे ताकतवर इस्लामिक मुल्क सऊदी उसके इशारों पर नाचता है।
OIC जो कि मुसलमानों का सबसे बड़ा संगठन है, वहाँ के सारे पावरफूल इस्लामिक मुल्क अमेरिका से दबते हैं।
केवल टर्की, कतर और इरान को छोड़कर।
अन्य सारे देश अमेरिका के रहमों करम पर हैं। अतः चीन OIC में अपना दबदबा चाहता है, लेकिन वह तब तक मुमकिन नहीं है जब तक वहाँ सऊदी अरब है।
इसलिये चीन की कोशिश है कि OIC टुट जाये। इस काम पर उसने लगाया है अपने पालतू पाकिस्तान को।
अब OIC को यह कारण बताकर तो नहीं तोड़ा जा सकता ना कि भैया चीन को अपना दबदबा बढाने में दिक्कत हो रही है? इसलिये अन्य मुद्दे तलाशे जा रहे हैं।
जैसे इजरायल का फिलिस्तीन पर बढता कब्जा, भारत का कश्मीर से धारा 370 हटाना। इन सब कारणों का हवाला देकर जल्द ही आपको देखने मिलेगा की OIC टुट जायेगा और एक नया इस्लामिक संगठन देखने को मिले।
जिसमें आपको टर्की, पाकिस्तान, कतर, इरान तथा साऊथ अफ्रीका के वह इस्लामिक मुल्क जो चीन से कर्जा खा कर दबे पड़े हैं वह देखने को मिलेंगे।
टर्की और पाकिस्तान ने अपनी कोशिशों को तेज भी कर दिया है। वैसे इसका खामियाजा पाकिस्तान ने भुगत भी लिया। उसे सऊदी को चीन से लेकर 1 बिलियन डॉलर लौटाने पड़े।
दरअसल पाकिस्तान के विदेश मंत्री अपनी औकात भुलकर सऊदी को धमकाने लगे की अगर कश्मीर के मुद्दे पर नहीं बोला तो OIC एकलौता परमाणु हथियार संपन्न इस्लामिक मुल्क खो देगा।
सऊदी ने तुरंत पाकिस्तान को सबक सीखाने के लिये उसे दी जाने वाली 6 बिलियन कर्ज (जिसमें 3 बिलियन का कच्चा तेल और 3 बिलियन की नकद) रोकने की घोषणा कर दी। और 1 बिलियन लौटाने को कहा।
जो पाकिस्तान ने चीन से कर्जा लेकर चुकाया।
टर्की और इरान को मिलाने की कोशिश भी चीन जरूर करेगा। कारण शिया सुन्नी दोनों को अपने हाथ में जो रखना है।
लेकिन इस नयी इस्लामीक ताकत को उभारने के लिये मुसलमानों में इसकी स्वीकार्यता होनी जरूरी है। बस उसी दिशा में भारत के एक प्रसिद्ध मुस्लिम पात्र को चुना गया है।
खेल तो बहुत बड़ा है, आमिर तो प्यादा भी नहीं, प्यादे का बाल है।
इजरायल के साथ अमेरिका द्वारा युएई के राजनैतिक संबंध स्थापित करवाकर सारे मुसलमान दुखी हैं।
एर्डॉगन अपना गुस्से से तमतमाया हुआ लाल चेहरा सारे मुसलमानों को दिखाकर बता रहे हैं कि अब सिर्फ मैं ही हूँ जो तुम्हारा सहारा है।
देखो सऊदी और UAE को, सबने तुम्हें धोका दिया।
अब मैं ही हूँ जो तुम्हारी आवाज बन सकता हूँ।
पाकिस्तान के मुसलमान अब एर्डॉगन का नाम जप रहे हैं, कल तक यह इमरान खान द्वारा सऊदी के प्रिंस की कार ड्रायवर की तरह चला लेने पर लहालोट हो रहे थे।
भारत के मुसलमान भी एर्तागुल देखकर, एर्डॉगन को हीरो मान रहे हैं।
सऊदी और UAE को लानतें भेज रहे हैं।
जबकि इन मुर्खों को यह नहीं पता की इजरायल और टर्की में 6 बिलियन डॉॉलर का व्यापार होता है।
इजरायल के साथ “SIX DAY WAR” लड़ने वाले प्रमुख देश इजिप्त और जॉर्डन भी इजरायल को मान्यता देते हैं।
लेकिन यह भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश की मुसलमानों का समझदारी से क्या लेना देना? खुद की पहचान खोकर खाड़ी देशों में मसीहा खोजते रहते हैं।
अमेरिकी चुनाव, चीन की महत्वकांक्षाओं तथा एर्डोगन के खलीफा बनने के सपने में सारा खेल छिपा है।
अंतराष्ट्रीय स्तर पर जो भी राजनीती चल रही है वह आपको भारतीय न्युज चैनल देखकर समझ नहीं आयेगा।
यहाँ तो हर दो दिन बाद किसी न किसी देश को अमेरिका द्वारा खत्म कर देने की खबरें आती रहती है।
कोई न कोई देश में परमाणु युद्ध ही दिखाते रहेंगे।
और इन न्युज चैनलों की वजह से आम भारतीय की अंतर्राष्ट्रीय राजनीती में ना दिलचस्पी पैदा होती है ना समझ बढती है।
और फिर इन सब से अंजान भारतीय मोदी के विदेश यात्राओं को वह केवल मोदी का सैर सपाटा समझता है और उसपर तंज कसता रहता है।
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