आयुषी

सुशांत सिंह राजपूत आत्महत्या मामले में हर दिन एक नयी कड़ी खुल रही है। आत्महत्या की चादर ओढ़े यह घटना एक बहुत बड़े साजिश के तरफ इशारा करती दिखाई पड़ती है। बिहार सरकार की तत्परता और कोशिशों के कारण यह मामला सीबीआई के हाथों में जा चूका है जिससे एक उम्मीद बंधी है की सुशांत सिंह तथा उनके परिवार को जल्द ही इन्साफ मिलेगा। हालाँकि इस मामले को लेकर मुंबई पुलिस का व्यवहार काफी निंदनीय है, उन्होंने बिहार से गए ऑफिसर को क्वारेंटाइन किया तथा शुरू से ही वह जिस तरह से इस मामले को हल्के में ले रहे हैं यह काफी आपत्तिजनक है। वहां की सरकार को चाहिए की अपने प्रशासन को अनुशाषित रखें अन्यथा आम लोगों का पुलिस और न्याय से भरोसा उठ जाएगा।

यह बात बड़ी विचलित करने वाली है की कुछ लोग ऐसे भी हैं जो हर चीज़ में एक गन्दी राजनीति ढूंढ ही लेते हैं। शिवसेना सांसद संजय राउत ने हाल ही में एक बयान दिया था की सुशांत के पिता की दूसरी शादी के कारण बाप-बेटे में सम्बन्ध अच्छे नहीं थे जिस कारण से सुशांत परेशान रहता था। संजय राउत में अगर सच का साथ देने की क्षमता नहीं है तो उन्हें सत्य को भ्रमित भी नहीं करना चाहिए। कुछ और नहीं तो यह बयान देने से पहले उस बूढ़े पिता के बारे में तो सोचते जिन्होंने अपने नौजवान बेटे को खोया है। इनके इस बयान से यह साफतौर पर नजर आ रहा है की वह मुंबई पुलिस की नाकामी तथा असली आरोपी को छिपाने की पुरजोर कोशिश कर रहें हैं।

बिहार में भी यह मामला राजनीति से दूर नहीं रह पाया, तथाकथित नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी जी पहले बड़ा उछल-उछल कर बिहार सरकार पर आरोप मढ़ रहे थे तथा कमिया निकाल रहे थे और जैसे ही बिहार सरकार ने इस मामले में थोड़ी सक्रियता दिखाई, इस केस को सीबीआई के हवाले किया तब से उन्होंने मौन व्रत धारण कर लिया है। जिस बेचैनी से वह बिहार सरकार से सवाल पूछ रहे थे उसी उत्तेजना से वह महाराष्ट्र सरकार तथा अपने प्रिय राहुल गांधी जी से सवाल क्यों नहीं पूछते, शायद उनके सवालों से जनता का थोड़ा भला हो और हमें महाराष्ट्र सरकार की लापरवाही का जवाब मिल जाए। लेकिन अफ़सोस वह ऐसा नहीं करेंगे क्यूंकि चुनाव सर पर है और तेजस्वी जी बुद्धिजीवी हैं।

खैर कुछ राजनीतिक नेताओं से तो उम्मीद करना ही बेकार है लेकिन यह अचंभा में डालने वाली बात है की पत्रकारिता को क्या हुआ, वह अपनी अस्मिता दिन प्रतिदिन क्यों खोते जा रही है। जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है अगर वही पक्षपात पर उतर जाए तो फिर न्याय स्थापना के नाम पर क्या ही बच पाएगा। वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने कहा कि सुशांत सिंह उतने बड़े स्टार नहीं थे की पुलिस पर जांच के लिए दवाब बनाया जाए। यह बात उनकी मानसिकता को भलीभांति दर्शाती है। वह ये बताएं की उनकी नजरों में वह कौन है जो पुलिस जांच के योग्य है या फिर जिसकी मृत्यु पर पुलिस पर दबाव बनाया जा सके। राजदीप जी, यह देश गणतांत्रिक है, यहाँ हर हाथ का एक बराबर मूल्य है चाहे वह हाथ किसी मजदूर का हो या किसी अमीर व्यवसाई का, सबके पास न्याय का बराबर अधिकार है।

दूसरी तरफ एक ‘ज्योति यादव’ नामक पत्रकार ने एक आर्टिकल में लिखा की बिहारी परिवारों की मानसिकता जहरीली होती है वह अपने घर के बेटों पर ‘श्रवण कुमार’ बनने का बोझ थोपते हैं। यह सब पढ़कर कोई भी हैरान हो सकता है की लोगों के मन में किसी क्षेत्रीय लोगों के सम्बन्ध में कितनी खतरनाक बातें छिपी हुई होती हैं। ज्योति यादव जी यह बताएं की वह बिहार तथा बिहारियों के बारे में जानती कितना है, कितनी बार आयी है यहाँ और कितना समय बिताया है। किसी जगह की संस्कृति और वहां के लोगों को समझने में एक उम्र गुज़र जाती है और यह तो फिर भी बिहार है जिसने एक बार नहीं कितनी ही बार पुरे देश को गौरवान्वित किया है। एक छोटे से शहर से इतने बड़े मुकाम तक पहुँचने वालो की पीठ थपथपाई जाती है ना की पीठ पर वार किया जाता है। उस आर्टिकल में यह भी लिखा गया है की बिहारी फॅमिली अपने बेटे की गलफ्रेंड को एक्सेप्ट नहीं कर पाती क्यूंकि उनकी सोच टॉक्सिक है। आप किसी परिवार की सोच बस इसलिए टॉक्सिक बता रही हैं क्यूंकि वह बिहार से सम्बंधित है। किसी परिवार के साथ यह दुर्घटना हुई और आप उनको सांत्वना देने के बजाय उनपर आरोप लगा रही हैं, आपकी खुद की मानसिकता कैसी है क्या वह टॉक्सिक नहीं ? यह सवाल खुद से जरूर पूछिएगा।

भले ही सत्य को कितना ही भ्रमित किया जाए, वह एक दिन सामने जरूर आता है। इस देश की न्याय व्यवस्था पर यहाँ के लोगों को पूरा भरोसा है। बिहार के बेटे को इन्साफ जरूर मिलेगा, जनता उनके तथा उनके परिवार के साथ खड़ी है।

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