आखिर आई.एन.डी.आई.ए. नामक विपक्षी गठबंधन का एजेंडा क्या है? भले ही कई विषयों (संयोजक और प्रतीक-चिन्ह सहित) पर इसके घटक दलों में आम सहमति बनना शेष हो, परंतु जो एक एजेंडा उन्हें आपस में बांधे हुए है, वह अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कैसे भी सत्ता से हटाना है। इसके लिए वे जिस एक बात को अपनी सबसे बड़ी शक्ति मानकर बैठे है, वह उनका बिखरा मतप्रतिशत है, जिसे एकजुट करने का प्रयास किया जा रहा है।

वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेले 37 प्रतिशत से अधिक, तो राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सहयोगियों के साथ लगभग 45 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। इसी पर मोदी-विरोधी पार्टियों का तर्क है कि चूंकि भाजपा को 37 प्रतिशत मत मिले थे, इसलिए सभी विपक्षी दल साथ मिलकर लड़े, तो 2024 के आम चुनाव में भाजपा को आसानी से परास्त किया जा सकता है। क्या लोकतंत्र में इस प्रकार के अंक गणित के भरोसे, जनता का विश्वास और चुनाव जीता जा सकता है?

मोदी विरोध से जनित विपक्षी दलों के इस ‘कु’तर्क पर मुझे एक प्रचलित कहानी का स्मरण होता है। उसके अनुसार, गणित के एक शिक्षक अपने परिवार के साथ एक छोटी नदी को पार कर रहे थे। नदी के पास पहुंचकर उन्होंने फीता निकाला और नदी की गहराई नापी, जो चार फीट निकली। फिर उन्होंने स्वयं की, अपनी धर्मपत्नी और बच्चों की लंबाई नापी, जिसका औसत साढ़े चार फुट निकाला। इसपर उस शिक्षक का निष्कर्ष था कि वे सभी नदी को पार कर लेंगे। जैसे ही परिवार नदी पार करने लगा, तो पत्नी और बच्चे डूबने लगे। किनारे बैठे लोगों ने उन्हें बचाया। अभी गणित के उस शिक्षक जैसी स्थिति मोदी विरोधियों की दिखती है, जो मतप्रतिशत को अपनी विजय का मापदंड मान रहा है।

आई.एन.डी.आई.ए. में 28 पार्टियां है, जिनकी वर्तमान लोकसभा में कुल 142 सदस्य हैं। इसमें 11 दलों का एक भी लोकसभा सांसद नहीं हैं। सबसे महत्वपूर्ण, इस गठजोड़ में शामिल कई बड़े राजनीतिक दल एक-दूसरे के धुर-विरोधी हैं। इसमें सबसे बड़ा राष्ट्रीय घटक दल— कांग्रेस है। पिछले आम चुनाव में उसने देश की 421 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से वह 52 पर विजयी रही। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा आदि राज्यों में उसका सीधा भाजपा से मुकाबला है। परंतु ऐसे कई राज्य भी है, जहां अन्य दलों (क्षत्रप सहित), जोकि आई.एन.डी.आई.ए. का हिस्सा भी है— उन्होंने कांग्रेस के जनाधार में सेंध लगाकर ही अपना उभार किया है। ऐसा ही एक दल— आम आदमी पार्टी (‘आप’) है, जिसने दिल्ली, पंजाब और गुजरात में कांग्रेस को भारी क्षति पहुंचाई है। यही कारण है कि दिल्ली और पंजाब में ‘आप’ से गठबंधन को लेकर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व और प्रादेशिक ईकाइयों में भारी टकराव है।

‘आप’ को गुजरात के गत विधानसभा चुनाव में 13 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे, तो लगभग उतने मत-प्रतिशत का नुकसान कांग्रेस को हुआ था। इस पृष्ठभूमि में दिलचस्प तथ्य यह है कि जिन बड़े चुनावों में ‘आप’ का सीधा मुकाबला सत्तारुढ़ भाजपा से है, वहां उसकी दाल नहीं गल पाती। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, गोवा और हिमाचल के विधानसभा चुनाव में उसका अधिकांश सीटों पर ‘जमानत जब्त प्रदर्शन’— इसका प्रमाण है।

सीटों के संदर्भ में उत्तरप्रदेश, देश का सबसे बड़ा राज्य (80 सीटें) है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ प्रदेश की दो धुर-विरोधी दल— समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जो भाजपा के समक्ष न केवल ध्वस्त हो गया, अपितु नतीजे के बाद टूट भी गया। इस पृष्ठभूमि में सपा, जोकि आई.एन.डी.आई.ए. का हिस्सा भी है— क्या वह पिछले विधानसभा चुनाव में अपने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन के बाद कांग्रेस के लिए अपनी राजनीतिक जमीन खाली करेगी?

पश्चिम बंगाल में भी विपक्षी दलों के बीच सिर-फुटव्वल है। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी अक्सर तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्षा और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ बोलते रहते हैं। मार्क्सवादी नेता सीताराम येचुरी, तृणमूल के साथ चुनावी गठबंधन से इनकार कर चुके है। अभी 5 सितंबर को धुपगुड़ी विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में प्रचार करते हुए अधीर और वामपंथी नेता मोहम्मद सलीम ने ममता बनर्जी पर जमकर हमला बोला था। वही महाराष्ट्र में ‘महाविकास आघाड़ी गठबंधन’ का स्वास्थ्य, शिवसेना के बाद राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) में बिखराव के बाद और बिगड़ गया है। बीते दिनों जब शरद पवार और अजीत पवार के बीच पुणे में बैठक हुई, तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले के साथ उद्धव ठाकरे ने अपनी भौंहे चढ़ा ली थी। भले ही मनमुटाव को दूर करने का लाख दावा किया जा रहा हो, परंतु आई.एन.डी.आई.ए. सदस्यों में एक-दूसरे के प्रति संशय और द्वंद समाप्त नहीं हो रहा है।

स्पष्ट है कि विपक्षी गठबंधन को लोकसभा चुनाव से पहले कई बाधाओं को पार करना है। इसमें सबसे प्रमुख आपसी सहमति से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का नाम तय करना है। परंतु आई.एन.डी.आई.ए. के भावी ‘घोषणापत्र’ के बिंदु एक-एक करके सामने आने लगे है। पहला— उन्हें भ्रष्टाचार से कोई आपत्ति नहीं। अधिकतर सहयोगी दलों का दामन, कदाचारों के आरोपों से दागदार है। उनके प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में दोषी और जमानत पर बाहर है।

दूसरा— आई.एन.डी.आई.ए. का ‘घोषित’ हिंदू विरोधी एजेंडा। इस गठबंधन के एक प्रमुख सहयोगी द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के शीर्ष नेता, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के पुत्र और राज्य सरकार में मंत्री उदयनिधि ने भारत से उसके मूल ‘सनातन धर्म को समाप्त’ करने का संकल्प लिया है। जहां कांग्रेस के कई नेताओं ने इसका खुलकर समर्थन किया है, वही स्वामी प्रसाद मौर्य (सपा) और प्रोफेसर चंद्रशेखर (राजद) अपने विषवमनों से करोड़ों हिंदुओं की भावना को आहत कर रहे है।

तीसरा— जी20 सम्मेलन के दौरान राष्ट्रपति भवन में आयोजित होने वाले आधिकारिक रात्रिभोज के अंग्रेजी निमंत्रण और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इंडोनेशिया दौरे हेतु तैयार अंग्रेजी पत्रक में ‘भारत’ लिखे जाने का मुखर विरोध आई.एन.डी.आई.ए. की विभाजनकारी औपनिवेशिक मानसिकता को पुन: उजागर करती है।

लेखक वरिष्ठ स्तंभकार, पूर्व राज्यसभा सांसद और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय-उपाध्यक्ष हैं।
संपर्क:- punjbalbir@gmail.com

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