अजीत भारती से आज कौन परिचित नहीं होगा , बातों को ठीक वैसा का वैसा कहने की और बिलकुल मुँह पर कहने की बाग़ी शैली के इस बागी ने जैसे करोड़ों लोगों के मन की बात को , बेबाक ,बेख़ौफ़ ,बेलौस और कहा जाए तो बेहद क्रूर होकर ,अपनी उस पिछली बार कही की गई टिप्पणी (वीडियो) के लिए पहले ही सर्वोच्च स्तर न्यायालय के समक्ष मानहानि का एक मामला पहले ही विचाराधीन है , से और भी कहीं अधिक आगे जाकर -न्यायपालिका के न्यायिक प्रशासन को सीधे सीधे -परीक्षणात्मक और शंधोधनीय -स्थति में पहुँचने को अपनी चुभती शैली में फिर सामने रख दिया है।

अपने वीडियो में , अजीत ने ,इन दिनों -न्यायिक सुनवाइयों के दौरान , माननीय पीठों की ओर से , सरकार और उसके रुखों पर अप्रत्यक्ष टीका , टीपप्णी , चेतावनी भरा लहज़ा आदि को निष्पक्ष नहीं माना है और उसे गैर जरूरी बताते हुए याद दिला दिया कि समाज के सामने बार बार 4 करोड़ लंबित मुकंदमों के बोझ का ज़िक्र करती हुई न्याय व्यवस्था का न्याय प्रशासन किसी भी अन्य पक्ष को उनकी तरफ झाँकने तक का अधिकार सिर्फ तब नहीं देता जब , न्यायिक अधिकारीयों का आचरण संदेह से परे हो और खेद जनक रूप से स्थति चिंताजनक है।

न्याय प्रशासन के किसी भी परिवर्तन के विचार भर को भी बिना विमर्श , मंथन के सिरे से नकारने और बार बार नकारने से न्याय्व्यस्था आखिर किस तरह से फिर नैसर्गिक न्याय के इस सबसे बुनियादी व्यवस्था कि कोई भी अपना ही न्यायाधीश नहीं हो सकता -अजीत भारती ने भारत की न्यायाधीश चयन व्यवस्था -और कई बार संशोधन हेतु पटल पर रखे जाने वाली व्यवस्था भी -कोलेजियम व्यवस्था को सीधे सीधे चुनौती दे दी है।

भारती को अपने इस दुःसाहसी अभिव्यक्ति के लिए भविष्य में इसके क्या विधिक पहलू सामने आएंगे इस पर तो नज़र सबकी रहेगी ही मगर ये तो तय है कि अजीत भारती ने अपनी बेबाकी और तल्खी से -बहुत सी कानों में शीशा पिघला ही दिया है। अजीत भारती -एक कड़क सैल्यूट। जय हिन्द

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