दुनिया में एक चीज जो नहीं बदल सकती, वो है हमारे देश के वामपंथी पत्रकारों की घटिया और देश विरोधी मानसिकता। हम बात कर रहे हैं द वायर, क्विंट और कारवाँ जैसे पत्रिका और पोर्टलस की जिनका काम ही है देश को बांटना. कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर ये अपना एजेंडा चलाते हैं और देश में रहने वाले वाले हिंदुओं के विरोध में खबरे परोसते हैं.
इसी कड़ी में एक बार फिर कारवाँ ने अपनी घटिया और देश विरोधी पत्रकारिता का नमूना पेश किया है. दरअसल पत्रिका ‘कारवाँ’ ने इसी महीने की 13 तारीख को मेवात की नूँह हिंसा पर एक ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ पब्लिश की। यह रिपोर्ट ‘कारवाँ’ के पत्रकार प्रभजीत सिंह द्वारा तैयार की गई है, जिसका शीर्षक ‘नूँह के गाँवों में रात को छापेमारी और मुस्लिम युवाओं की सामूहिक गिरफ्तारियों के बाद डर का माहौल’ दिया गया है। रिपोर्ट में 31 जुलाई सोमवार को हुई जलाभिषेक यात्रा के दौरान नूँह और आसपास भड़की हिंसा की वजह बताने की कोशिश की गई है।
वैसे कारवां पत्रिका किस तरह की पत्रकारिता करती है ये बताने की जरुरत नहीं है. वामपंथियों के मुखपत्र ‘कारवाँ’ ने अपनी इसी विचारधारा को बढ़ाते हुए इस पत्रिका ने नूँह हिंसा का भी दोष हिंदुओं पर मढ़ दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रभजीत सिंह नूँह हिंसा के बाद के हालातों को समझने के लिए ग्राउंड पर गए थे। अपनी रिपोर्ट में उन्होंने मुस्लिम समुदाय को पीड़ित दिखाने की पूरी कोशिश की। प्रभजीत के मुताबिक, हिंसा के बाद पुलिस ने सिर्फ मुस्लिमों पर FIR दर्ज किए हैं जिसकी वजह से नूँह गांव में मुस्लिम युवक ना के बराबर बचे हैं। इतना ही नहीं प्रभजीत सिंह ने अपनी रिपोर्ट में जनहस्तक्षेप समूह के कार्यकर्ताओं का हवाला भी दिया जिसमें पुलिस की तरफ से मुस्लिमों पर एकतरफा अत्याचार करने का आरोप लगाया गया है।
इतना ही नहीं इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि कैसे पुलिस मुस्लिमों को बिना वजह बताए उनके घरों से उठा रही है जबकि हिन्दुओं की तरफ से सिर्फ एक गिरफ्तारी हुई है। आगे 57 FIR का जिक्र करते हुए उसमें 220 गिरफ्तार लोगों में से ज्यादातर को मुस्लिम बताया गया है। कारवां के पत्रकार ने हिन्दुओं पर हुए इस हमले को साम्प्रदायिक संघर्ष के तौर पर दिखाने का प्रयास किया। इन सबसे इतना तो साफ है कि वे अपनी रिपोर्ट से हिन्दुओं को दोषी और मुस्लिमों को पीड़ित के तौर पर चित्रित करना चाहते थे। लेकिन अपनी इस रिपोर्ट में ‘कारवाँ’ के पत्रकार ने ये जानने की कोशिश नहीं की क्या हिंसा के पीछे हिंदू थे? बजरंग दर के कार्यकर्ता अभिषेक की मौत क्यों हुई? नूँह हिंसा में मरने वालों में कोई मुस्लिम क्यों नहीं था? ऐसे कई सवाल थे जिसका जवाब ढुंढने की कोशिश ही नहीं की गई.
वैसे ‘कारवाँ’ की ये ओछी पत्रकारिता कोई नई बात नहीं है। आपको याद होगा कि 2019 में पुलवामा में शहीद हुए जवानों को कारवाँ पत्रिका ने जाति के आधार पर न सिर्फ बांटा बल्कि देश की एकजुटता पर भी हमला करने की कोशिश की थी। ठीक उसी तरह लेफ्ट-लिबरल के मुखपत्र ने अपनी इस गंदी पत्रकारिता से एक बार फिर से साबित किया कि वो देश को बांटने के लिए किसी भी हद तक गिर सकती है.
दरअसल लेफट-लिबरल्स का हमेशा से मकसद देश को बांटना है वो देश को एकजुट देखकर बौखला जाते हैं। इनकी हमेशा यही कोशिश होती है कि देश के लोग एकजुट न रहे, धर्म, जाति और भाषा के नाम पर लड़ते रहे बस यही चाहते हैं। लेकिन अब समय बदल गया है ये लोग कितना भी देश विरोधी एजेंडा चला लें इनकी हर चाल इन पर ही भारी पड़ेगी.
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