सऊदी अरब और तुर्की के बीच विवादों की खाई बढ़ने लगी है। यही वजह है कि सऊदी अरब ने अपने नागरिकों से तुर्की का बहिष्कार करने की अपील की है। सऊदी अरब के चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अजलान अल अजलान ने ट्वीट कर तुर्की की हर चीज का बहिष्कार करने का आह्वान किया। यह बहिष्कार वहां की वस्तुओं के आयात, निवेश और पर्यटन को लेकर होगा।
वहीं इजरायल भी इस मामले में कहीं न कहीं तुर्की के खिलाफ सऊदी अरब का साथ देता दिखाई दे रहा है। इजरायल ने कहा है कि नाटो से कहा है कि वह तुर्की की हरकतों पर लगाम लगाए, नहीं तो वह दूसरे विकल्पों पर विचार करने को बाध्य होगा। इस अपील में तुर्की पर सैन्य कार्रवाई करने की छिपी धमकी साफतौर पर समझी जा सकती है।
सऊदी अरब और तुर्की के बीच नफरत की यदि बात करें तो इसका इतिहास काफी पुराना है। आपको याद होगा जुलाई 2020 में इस्तांबुल स्थित जिस हागिया सोफिया को राष्ट्रपति इर्दोन ने मस्जिद करार दिया था। इस मस्जिद से सऊदी अरब की बेहद कड़वी यादें जुड़ी हैं जिसके पीछे तुर्की है। वर्ष 1818 में हागिया सोफिया के ठीक सामने सऊदी अरब के किंग अब्दुल्लाह बिन सऊद का सिर कलम किया गया था।
शाह अब्दुल्लाह बिन सऊद और वहाबी इमाम को उस्मानिया सल्तनत यानी ऑटोमन साम्राज्य के सैनिक जंजीर में बांधकर इस्तांबुल लाए थे। जब अब्दुल्लाह का सिर काटा गया तो हागिया सोफिया के बाहर भीड़ ने जमकर जश्न मनाया था। इतना ही नहीं उनके कटे सिर को तीन दिनों तक लोगों को देखने के लिए रखा गया था। इस दौरान ऑटोमन साम्राज्य के सैनिकों ने पहले सऊदी स्टेट की राजधानी दिरिया और रियाद के बाहरी इलाकों पर हमला कर ध्वस्त कर दिया था। ऑटोमन साम्राज्य ही 1924 में सिमटकर आधुनिक तुर्की बना और आज का तुर्की ऑटोमन को अपना गौरवशाली इतिहास मानता है। इस घटना ने सऊदी अरब को कभी न भूलने वाला दर्द दिया है।
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के 75वें सत्र को पहली बार संबोधित करते हुए सऊदी अरब के शाह सुल्तान ने जहां ईरान को इस पूरे क्षेत्र की स्थिरता को नुकसान पहुंचाने के लिए आड़े हाथों लिया था वहीं तुर्की पर भी कई तरह के आरोप लगाए थे। इतिहास के पन्नों को पलटें तो भी सऊदी अरब और तुर्की के बीच काफी पुरानी दुश्मनी साफतौर पर देखी और समझी जा सकती है। दरअसल, तुर्की काफी समय से इस कोशिश में लगा है कि वो इस्लामिक देशों की अगुआई कर उनका प्रमुख बन सके। लेकिन वर्तमान में इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी में सऊदी अरब का वर्चस्व है।
इस संगठन के 50 से अधिक इस्लामिक देश सदस्य हैं। नवंबर 2019 में मलेशिया ने तुर्की और पाकिस्तान के साथ मिलकर इस्लामिक सहयोग संगठन से इतर एक संगठन बनाने की कवायद को हवा देने का काम किया था। इसके तहत मलेशिया में एक सम्मलेन आयोजित किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मुख्य अतिथि की भूमिका निभाने को कहा था। लेकिन, सऊदी अरब की पाकिस्तान को दी गई सीधी चेतावनी के बाद इमरान खान ने इस सम्मेलन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया था।
इस वर्ष जनवरी में जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी मध्य पूर्व योजना के तहत इजरायल को पश्चिमी तट और जॉर्डन घाटी का नियंत्रण दिया था उस वक्त उनके इस कदम का सऊदी अरब, बहरीन, ओमान और संयुक्त अरब अमीरात ने समर्थन किया था। इस समर्थन पर तुर्की के राष्ट्रपति रैसप तैयप इर्दोगन ने अरब जगत को धोखेबाज तक कह डाला था।
उन्होंने बेहद कड़े शब्दों में ट्रंप की योजना का समर्थन करने वाले देशों की आलोचना की थी। अपने आदेश में ट्रंप ने येरूशलम को इजरायल की राजधानी बताया था। आपको ये भी बता दें कि येरूशलम को इजरायल की राजधानी के तौर पर ट्रंप ने 2017 में मान्यता दी थी। उस वक्त भी तुर्की ने जबरदस्त विरोध किया था। तुकई का ये विरोध हाल ही में इजरायल और यूएइ और बहरीन के साथ हुए एतिहासिक समझौते के बाद भी देखने को मिला था।
इस्तांबुल के सऊदी कंसुलेट में अक्टूबर 2018 में हुई पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या के बाद सऊदी अरब और अबु धाबी के साथ तुर्की के रिश्ते खराब हो गए थे। इस हत्या के बाद तुर्की ने आरोप लगाया था कि खशोगी की हत्या सऊदी नेतृत्व के कहने पर की गई थी। गौरतलब है कि खशोगी वॉशिंगटन पोस्ट के लिए काम करते थे। हालांकि सऊदी अरब ऐसे सभी आरोपों से इनकार करता है।
इतना ही नहीं सऊदी अरब ने खशोगी हत्या आठ लोगों को दोषी करार दिया है। इनमें से 5 को मौत की सजा सुनाई गई। तीन अन्य लोगों को कुल 24 साल जेल की सजा दी गई है। सऊदी सरकार के मुताबिक इस मामले में 11 लोगों पर मामला चलाया गया था। हालांकि, इनके नाम का खुलासा नहीं किया गया था।
लीबिया के मोर्चे पर भी तुर्की और सऊदी अरब आमने-सामने हैं। लीबिया में जारी संकट में तुर्की संयुक्त राष्ट्र की मान्यता वाली सरकार का समर्थन करता है जबकि सऊदी अरब और यूईए इस सरकार के खिलाफ लड़ रहे पूर्वी कमांडर खलीफा हफ्तार का समर्थन करते हैं। लीबिया के तीन चौथाई हिस्से पर हफ्तार का ही नियंत्रण है। इसको लेकर दोनों ही देश एक दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं।
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