आज सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया और सुशांत के परिवार के पक्ष में सुनाया लेकिन इसके पीछे सबसे ज्यादा किसी का हाथ है तो परिवार के अलावा अर्नब गोस्वमी और सुब्रमण्यम स्वामी का है जो रात दिन डटे रहे सुशांत के इंसाफ के लिए।
अर्नब गोस्वामी ने सुशांत केस में जिस तरह से अकेले दम पर एक राज्य की पूरी सरकार को पराजित किया, ऐसा मैंने अपनी जिंदगी में तो कभी नहीं देखा था।,महाराष्ट्र में रह कर और महाराष्ट्र सरकार को ही चैलेंज करना बहुत बड़ी बात थी,एक बात तो तय है ये आदमी न्याय के लिए किसी से भी लड़ सकता है।
सुशांत केस पर रोहित सरदाना ने भी डिबेट किया, अंजना ओम कश्यप ने भी और रुबिका लियाकत, अमीश देवगन ने भी, पर एक दो डिबेट के बाद वो लोग चालू पत्रकारिता के हिसाब से हर दिन एक ऐसे मुद्दे पर आते रहे जिससे trp मिले।
लेकिन आज से तीन हफ्ते पहले ही जब अर्नब ने “पूछता है भारत” में कहा था, “मैं आज शपथ लेता हूँ कि इस केस की सच्चाई बाहर लाकर रहूँगा …”
तभी मुझे लग गया था कि इस आदमी के लिए ये केस सिर्फ पत्रकारिता नहीं बल्कि जीवन मरण की बात हो गयी है।जबकि अर्नब के हाथ निराशा हाथ लग चुकी थी पालघर को लेकर फिर भी वो लड़ाई लड़ते रहे,डटे रहे। मुझे याद है 15 अगस्त को सारे न्यूज़ चैनल रंग बिरंगे कपड़ो में अपने अपने एंकर को उतार के trp बटोरने में लगे थे उस समय भी अर्नब का “पूछता है भारत” चल रहा था।
माफ करिएगा यहा चाटुकारों की बात आ गई तो भाषा थोड़ा तल्ख अपने आप हो जाएगी…
राजदीप सरदेसाई बोलता है कि सुशांत इतना बड़ा स्टार तो नहीं था जितना पुलिस पर दबाब बनाया जा रहा है, राजगदीप सुनले भड़ुऐ क्या इंसाफ सिर्फ बड़े स्टार को ही मिलना चाहिये ? क्या बाहर से आये कलाकारों की जान की कोई कीमत नहीं होती ? ऐंसी बोल बोलने में तेरी गलती नहीं है, जिनके टुकड़ों पर तूँ पलता है उन्हें ही सबसे बड़ा बोलेगा, क्योंकि पालतू कुत्तों की नजर में उनका मालिक ही सबसे बड़ा स्टार होता है, सुशांत ने कभी तेरे जैंसे पालतू कुत्तों और भड़ुओं को टुकड़े नहीं डाले,दूसरी तरफ रविश कुमार इसके बारे में लिखना मतलब हाथ गंदा करना समझता हूं। ये दिल्ली में बैठ के भी चमचागिरी कर रहे थे और कोई महाराष्ट्र में बैठ के वही के सरकार से लोहा ले रहा था।
अर्नब का चैनल मुंबई में है और यही रहते भी है। उसके बाद यहीं के सिस्टम से लड़ जाना अगर किसी को छोटा सा काम लगता है तो उस पर सिर्फ हंसा जा सकता है।
एक आपके इलाके का थाना ही चाह लेता है तो आपको नाच नचा देता है, एसएसपी, डीएम कमिशनर तो आपकी जिंदगी ख़राब कर देने की ताकत रखता है… और यहाँ तो लड़ाई सीधे DGP और मुख्यमंत्री से ठनी हुयी है।लेकिन वो कहते है न की सच को डर कैसा।
अर्नब गोस्वामी पत्रकारिता के किसी कोड ऑफ़ कंडक्ट पर नहीं चलते बल्कि न्याय के लिए अगर स्टूडियो में बैठे किसी को थप्पड़ भी मारना पड़े तो वो मार सकते हैं।
अच्छे अच्छे तुर्रम खान इनके स्टूडियो में आकर बिल्ली की तरह मिमियाता रहता है क्यूंकि ये खुलेआम कुछ भी बोलने से डरता ही नहीं है।
अर्नब ने सुशांत केस में पुरे महाराष्ट्र सरकार और पुलिस व्यवस्था की ही हजामत बना दी।
पुरे देश में आन्दोलन करवा दिया।
बिहार सरकार को पूरी ताकत से लड़ने के लिए मजबूर कर दिया।
आखिरकार केस भी सीबीआई को दिलवा दिया।
खुद अर्नब और उनकी टीम इस केस में किसी गुप्तचर संस्था की तरह इतने सबूत इकठ्ठा कर चुकी है कि अब सीबीआई भी सोचती होगी कि ये पत्रकार है या सीबीआई।
अर्नब गोस्वामी ने इस मुद्दे पर जिस तरह से कार्य किया, उसे देख कर दुसरे चैनल वालों को एक बार सोचना पड़ेगा कि वो क्या कर रहे हैं? न तो वो सुशांत को लेकर इतना एक्टिव रहे न बिहार बाढ़ को लेकर फिर कर क्या रहे थे।
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