ये है जौनपुर का सुप्रसिद्ध अटला माता मंदिर… क्षमा करें अटाला शाही मस्जिद।
जिसके बारे में लिबरल इतिहासकार यह बताते नहीं थकते कि यह भारत का अपने आप में ऐसा मस्जिद है, जो बिना किसी मीनार के बना है और इसकी बनावट में हिंदू मुस्लिम स्थाप्त्य कला का बेजोड़ नमूना देखने को मिलता है।
जौनपुर के दर्शनीय स्थल के बारे में जब आप गूगल करेगे तो आपको बताया जाएगा कि अटाला मस्जिद को 1408 में यहां के शासक सुल्तान इब्राहिम शर्की ने बनवाया था, जिसकी नीव तुगलक-3 ने 1377 में रखी थी।
आपको यह भी बताया जाएगा कि तुगलक ने जौनपुर शहर को अपने चचेरे भाई सुल्तान जिसका नाम जौना खां भी था, उसकी याद में बसाया था।
लेकिन आपको यह नहीं बताया जाएगा कि जाएगा कि इससे भी पहले यहां एक सुंदर नगर था, जिसे कन्नौज के राजा विजयचंद्र ने बसाया था, उन्होंने ही इस अटला देवी मंदिर का भी निर्माण करवाया था, लेकिन तुगलक-3 के भाई इब्राहिम के बर्बरता के चलते यह मंदिर धराशाही हो गया था।
मंदिर के स्तम्भों पर अनेक तिथियां लिखी हुई है, जो इस बात का साक्ष्य है कि मंदिर को तोड़ कर ही मस्जिद को बनवाया गया था, जिसका सबसे बड़ा सबूत तो यही है कि यह मस्जिद बिना किसी मीनार के है और दूर से देखने पर आपको मंदिर ही नजर आएगा।
मस्जिद के तीनों ओर बनीं महराबदार छतें और उनके बीच में स्थित 174 वर्ग फीट का अहाता मंदिर का ही था. एच.आर. नेविल ने इस सम्बंध में पुरातत्व के विख्यात ज्ञाता जनरल कनिंघम का उदाहरण दिया है।
“मंदिर के स्थान पर बनाई गई एक और मस्जिद है ‘चार अंगुली मस्जिद’. उसके मुख्य द्वार के बाईं ओर एक पत्थर है जो किसी हाथ की चार अंगुलियों में सठीक बैठता है, चाहे अंगुलियां बच्चे की हों या वयस्क की”।
यह माना जाता है कि चरु ऐसा चमत्कारिक मंदिर था जिससे इच्छाओं की पूर्ति हो सकती थी और श्राप भी सच हो जाते थे। वहां मूल पत्थर को निकाल कर उसके स्थान पर दूसरा पत्थर लगाया गया है।
इब्राहीम के अधीन जौनपुर के सूबेदार क्रमश: मुखलिस और खालिस रहे। इस मस्जिद का निर्माण इब्राहीम ने विख्यात संत शिराज के सैयद उस्मान की सुविधा के लिए करवाया था जो तैमूर के आक्रमण के बाद दिल्ली से भाग आया था।
“1908 में जब एच.आर. नेविल ने गजेटियर प्रकाशित किया, उस समय भी उस संत के वंशज उस मस्जिद के पास रहते थे. मस्जिद की छत मंदिर के दस स्तम्भों की कतारों पर ही बनी है”।
नेविल जौनपुर का कलक्टर था और उसने अपने गजेटियर में लिखा है कि “अपेक्षाकृत अधिक उल्लेखनीय भवनों की विशेषता यह थी कि उसका अधिकतर निर्माण पुराने हिन्दू मंदिरों और महलों की सामग्री से किया गया था”।
विध्वंस का काम इतनी पूर्णता से किया गया कि पूर्व काल के अवशेषों का कोई भी चिन्ह देखने को नहीं मिलता, लेकिन यह स्पष्ट है कि जौनपुर, विशेषकर कन्नौज के हिन्दू शासकों के काल में, आकार में एक बड़ा स्थान रहा होगा।
तो कहने का अर्थ है कि साक्ष्य आपके सामने हैं। आपके हज़ारों मंदिरों को बर्बरता से तोड़ा गया है.. आपके देव-देवियों की मूर्तियों को क्षत विक्षत किया गया।
उपर से आपको ही धमकी भी दिया जाता है कि आपके बने बनाए राम मंदिर को उनका शासन आने पर तोड़ दिया जाएगा। फिर चाहे 10 साल लगे या हजार साल लगे।
सच तो ये कि मध्य काल की भारत की हर मस्जिद और उसके नीचे दबा मलबा बहुत कुछ कहता है और आप इस सच्चाई को खुलकर बताएंगे तो बेशर्मनिरपेक्ष तबका आपको साम्प्रदायिक बताएगा।
दीपक पाण्डेय
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
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