जाने क्या और कैसी है हिन्दू धर्म की संस्कृति… सनातन धर्म से पवित्र कुछ भी नहीं…!!
सभी धर्म प्रेमी सज्जनों को जय सियाराम
सनातन हिन्दू धर्म को मानने वाले संगठित इसलिए नहीं हो पा रहे हैं और कमजोर भी इसलिए हुए हैं एवं हो रहे हैं इसका एक मात्र कारण है कि हिन्दुओं ने अपने हिन्दू होने की प्रणाली को भुला दिया एवं अन्य नकारात्मक प्रणाली को अपना लिया ।
धर्म की प्रणाली होती है उसको समझने से आप स्वयं समझ सकते हैं कि जो हिन्दू प्रणाली 2700 वर्ष पूर्व पूरे विश्व में शतप्रतिशत थी वो आज भारत में भी एक प्रतिशत भी नहीं बची है हिन्दुओं ने नकारात्मक प्रणाली को अपना लिया इस कारण से सनातन हिन्दू को मानने वाले कमजोर पड़गये ।
अब मै उस प्रणाली के विषय में आपके माध्यम से सभी से निवेदन करता हूं इसको ध्यान से समझलें तो सनातन हिन्दू कैसे शक्तिशाली हो सकते हैं उसको आसानी से समझ सकते हैं वैसे मै इस विषय में पहले भी कई बार निवेदन कर चुका हूं ।
सनातन हिन्दू धर्म चार स्तंभो पर है । एक स्तंभ गाय का माना है, एक स्तंभ पृथ्वी का माना है, एक स्तंभ द्वीजों ( ब्राह्मण, संत, भक्त आदि ) का माना है और एक स्तंभ देवता का माना है रामचरितमानस में भी इसका उल्लेख है गो द्विज धेनु देव हितकारी, कृपासिंधु मानुष तन धारी । यह चार स्तंभ सनातन हिन्दू धर्म की प्रणाली के आधार हैं इन पर सनातन हिन्दू धर्म टिका हुआ है इन चारों में मुख्य देवी देवताओं का स्तंभ है इसका भी शास्त्रों में उल्लेख है ।
देवाधीनं जगतसर्वं यानि सारा संसार देव शक्तियों के आधीन है यहां कोई भी स्वतंत्र नहीं है और देव शक्तियां मंत्रों के आधीन हैं, मंत्राधीनाश्च देवता: और उन देवताओं एवं मंत्रों की प्रणाली की जानकारी ब्राह्मण वर्ग को तपस्या और त्याग के माध्यम से रहती थी, क्षत्रिय, वैश्य और सुद्र वर्गों को ब्राह्मण मार्गदर्शन करके उस प्रणाली का पालन कराते थे पृथ्वी पापाचार से मुक्त रहती थी गो माता की सेवा सभी वर्गों के लिए अनिवार्य थी यह सनातन हिन्दू धर्म की प्रणाली है ।
अब जो मुख्य स्तंभ देव शक्ति का है उसको समझना जरुरी है देव शक्तियां मुख्यत: तीन प्रकार की हैं एक को देवी देवता कहते हैं , जिसको विज्ञान सकारात्मक कहता है परमाणु विज्ञान प्रोटोन कहता है विद्दुत विज्ञान पोजेटिव कहता है, गणित में धन एवं अंग्रेजी में प्लस कहते हैं, दूसरी शक्ति को असुर, राक्षस कहते हैं विज्ञान में न्यूट्रॉन, नेगेटिव आदि कहते हैं गणित में त्रृण एवं अंग्रेजी मे माइनस कहते हैं, तीसरी शक्ति को सनातन हिन्दू धर्म में पितरीय (पित्तर) शक्ति कहते हैं उसको विज्ञान में इलेक्ट्रान, अर्थ आदि कहते हैं, यह तीन प्रकार की उर्जा यानि शक्तियाँ हैं जिनसे पूरे ब्रह्मांड का संचालन ( उत्पत्ति, पालन, संहार ) हो रहा है जिसको प्रकृति कहते हैं इसके आठ तत्व हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, अहंकार । भूमिरापोनलो वायु: खं मनो बुद्धि रेव च, अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा, (गीता) इन आठों त्तवों को सनातन हिन्दू धर्म को मानने वाले देवी देवता के रुप में मानते हैं पितृ देवता, कुलदेवी देवता, स्थान देवता (वास्तु), ग्राम देवता, इष्ट देवता, विष्णु लक्ष्मी, ब्रह्मा सरस्वती, शिव काली (पार्वती), ये सब मंत्रों के स्तुति, पाठों के आधीन हैं ।
ईन सब देवी देवताओं की स्थापना द्विज (ब्राह्मण) कराते हैं ब्राह्मणों की भूल के कारण वर्तमान में अधिकांश अगर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो 95% से भी ज्यादा देवी देवताओं के नकारात्मक, नेगेटिव स्वरुपों, मूर्तियों की स्थापना है तथा मंत्रों में जैसे गायत्रीमंत्र, देवी का नवान्हमंत्र शतप्रतिशत अशुद्ध, गलत जपे जारहे हैं रामरक्षास्तोत्र सुन्दरकाण्ड, हनुमान चालीसा के पाठ भी सही नहीं होरहे हैं इस कारण से नकारात्मक उर्जा शक्ति (जो तोड़ने का कार्य करती है) बढ़ने के कारण है सनातन हिन्दू धर्म कमजोर हुआ है, संगठित नहीं हो रहा है, अगर हिन्दुओं को संगठित एवं शक्तिशाली होना है तो अपने देवी देवताओं को सकारात्मक स्थापित करें मंत्र स्तुतियों, पाठों को सही करें तो हिन्दू कुछ ही समय में सर्वाधिक शक्तिशाली हो सकते हैं अन्य किसी प्रकार से संभव नहीं है क्योंकि सनातनहिन्दू धर्म की यही प्रणाली है
यह सभी से निवेदन है आगे हरि इच्छा बलवान है सबसे सादर जय सियाराम
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