कल किसान नेतावो और केंद्र सरकार के बिच कृषि कानुन समझौते पर छटे स्तर की बातचीत पुरी हुई। पिछली पाच बैठको की तरह ये बातचीत भी बेनतिजा साबित हुई। किसान नेता वो द्वारा रखी माँगो को ध्यान में रखते हुए सरकार MSP पर लिखित आश्वासन देने को भी तयार हो गयी लेकिन किसान नेता बिल वापस लेने कि बात पर अडे रहे। कृषि कानुन के खिलाफ जारी प्रदर्शन के शुरवाती दौर पर नजर डाले तो, किसान नेता केवल केंद्र सरकार से लिखीत आश्वासन की माँग कर रहे थे लेकिन जैसे जैसे प्रदर्शन बढता गया वैसे ही माँगे बढती गयी। सरकार लिखित आश्वासन पर तयार हो गयी तो किसान नेता बिल वापस लेने की माँग पर अड गये। मतलब साफ है, किसी भी हालत में आंदोलन को बंद नही करना है। तो वही कृषि कानुन वापस लेने कि मांग पर सरकार ने अपना रूक साफ करते हुए काहा कि कानुन किसानो के हित में है और वो बिल वापस नही लेंगे।

प्रदर्शन खास तौर पर पंजाब के किसान कर रहे है ओर उनके समर्थन में विपक्ष खडी हो गयी है। कल राहुल गांधी, शरद पवार समेत लेफ्ट पार्टी के कही नेता राष्ट्रपति से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंचे। काॅग्रेस किसानो के सामने सहानुभूति प्रकट करना चाहती है, किसानो के 2 पैसो पर अपनी सत्ता पाना चाहती है। देश के विकास हेतु लिए गये हर फैसलो के विरूद्ध खडे होने कि आदत से ही काॅग्रेस आज अस्तित्व से बाहर जाती दिखाई दे रही है। मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष का खडा होना कोई नयी बात नही है। 2014 के बाद मोदी सरकार द्वारा लाये गये हर एक बिल के खिलाफ प्रदर्शन करना विपक्ष खास तौर पर काॅग्रेस का पेशावरी धंदा बन गया है। सभी राज्यो में काॅग्रेस को भाजपा से कडी हार का सामना करना पडा है। याहा तक कि जिल्हा परिषद के चुनावो से लेकर लोकसभा चुनावो तक काॅग्रेस कि हुई फजिती से पार्टी पुरी तरह से बौखला गयी है। इसीलिए अपनी सत्ता वापस पाने के लिए पार्टी पूरे जोर से कोशिश कर रही है, उसके लिए वो किसी भी हद तक गुजरना पसंद करती है। काॅग्रेस को लगता है कि वो किसानो को भडकाकर मोदी सरकार के विरूध्द सडको पर उतारेगी तो ये काॅग्रेस पार्टी की बहुत बडी भुल है। 8 तारीख को किसानो की तरफ से बुलाए गये भारत बंद को देखकर कांग्रेस को समझ जाना चाहिए की देश की जनता चाहे वो किसान ही क्यु ना हो उनकी बातो में नही आयेंगे। अक्सर आदमी दुसरो के लिए गंडा खोदता है लेकिन खुद ही उसमें जाकर गिरता है। बिलकुल इसी तरह से काॅग्रेस अपने बिछाए जाल में फसती जा रही है। जितनी बार काॅग्रेस मोदी सरकार को निचा दिखाने के लिए सडको पर उतरती है, देश की जनता के सामने वो खुद ही निचे गिरती जाती है। इसिलिए अगर काॅग्रेस को लगता है कि किसानो को भैलाबुझाकर सडको पर ले आयेंगी ओर उसपर वो अपनी राजनैतिक रोटीया सेकेंगी तो ऐसा नही होने वाला। जनता ने काॅग्रेस को अपनी औकात दिखा दी है समय रहते राहुल गांधी समज जाये तो बेहतर होगा। पंजाब के किसानो को समजना होगा कि, काॅग्रेस का मुल मंत्र किसानो की तरक्की नही बल्कि मोदी विरोध है। कॉग्रेस भी जानती है की किसानो के निवाले पर दलाल अपनी भुक मिटा रहे है, जब 2014, 2019 के चुनावी घोषनापत्रो में राहुल गांधी इसी बिल को लाने के झुठे वाधो पर वोट बँक की राजनीति करते है तो वो बिल किसानो के हित में होता है। लेकिन जैसे ही मोदी सरकार इस बिल को लाती है, तो वो किसानो के विरूद्ध हो जाता है। काॅग्रेसी नेता हरियाणा के पुर्व मुख्यमंत्री भुपेंद्र सिंह हुड्डा कहते है की ‘कृषि में सुधार की जरूरत है लेकिन कृषि कानुन सरकार को वापस लेना चाहिए है।’ ऐसे कैसे हो सकता है। सुधार भी जरूरी है लेकिन वो मोदी सरकार नही कर सकती। उन्हके मुताबीत मोदी सरकार भी हमारे जैसी बैठी रहे। कल राष्ट्रपति से मिलने गये शरद पवार को एक बार खुदके आत्मकथा को भी पढ लेना चाहिए। कृषि मंत्री पद पर होते हुए शरद पवार कृषि की समस्या पर अपना रूक साफ करते हुए कहते है की ‘जब में बारामती से मुंबई अपनी फसल बैचने जाता हु तो दलाल,वाहतुक, कमिशन इन सब चिजो में ही फसल के कुल किंमत से 17 प्रतिशत का नुकसान हो जाता है। किसानो को अपनी फसल मंडी समीतीयो में बैचने के लिए मजबुर किया जाता है,उन्हे मंडि समीतीयो के बाहर स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।’ लेकिन दुर्भाग्य की बात है की, काॅग्रेस जिस तरह से अपने चुनावी घोषनापत्र दुसरो से लिखकर लेती है बिलकुल वैसे ही शरद पवार ने शायद अपनी आत्मकथा अपने गैरहजरी में लिखी होगी।

हमे समजना होगा, हमारा देश कृषि प्रधान देश है, तो समान्य बात है कि कृषि का देश की अर्थव्यवस्था पर सबसे ज्यादा असर पडता हो। कृषि बिल आने से देश का किसान समृद्ध बनता जायेगा, देश की जीडिपी में कृषि का योगदान बढेगा, साधारण बात है देश की अर्थव्यवस्था उच्च स्थान पर पहुंचेगी। बाद में जब अगले चुनाव होंगे तो मुद्दा बनाने के लिए काँग्रेस के पास कुछ नही बचेगा। हमारे किसान भाईयो को समजना होगा कि ये राजनीति उनके लिए नही है, उनके इन प्रदर्शन का सहारा लेकर देश को जलाने की ताकते सक्रीय हो रही है। आज की ही बात है, प्रदर्शन में उमर खालिद, शरजील इमाम के फोटो लगे पोस्टर दिखे, खालिस्तानी आतंकी भिंडरावाले की तस्वीर वाले भी पोस्टर दिखे। अब हमे समजना होगा की क्या कभी उमर खालिद, शरजील इमाम जैसे लोगो ने खेती की है? इन लोगो ने तो खेत देखा भी नही होगा। सवाल है की किसानो के प्रदर्शन में इनके पोस्टर क्या कर रहे है? किसान भाई यो को याद रखना होगा कि काॅग्रेस को नाही आपसे ना देश से किसी से भी सहानुभूति नही है। फरवरी के महीने में भी काॅग्रेस के वजहसे हि टुकड़े टुकड़े गँग को प्रोत्साहन मिला था ओर बाद में दंगे हो गये। आज वही काॅग्रेस किसानो को निशाना बनाकर फिर से शाहिनबाग वाली साजिश रच रही है।

पंजाब के किसानो को समजना होगा की, केवल पंजाब में ही किसानी नही की जाती ओर भी राज्य है जहा किसान फसल उगाते है, हल चलाते है, और उन्ह किसानो ने इस कानुन का समर्थक किया है। पंजाब के मुकाबले बहुत कम उत्पादन देने के बावजुद आज तमिलनाडु जैसे राज्य ज्यादा मुनाफा कमाते है क्युकी पंजाब के मुकाबले तमिलनाडु में मंडिसमीतीयो की संख्या बहुत कम है। आज पंजाब के कुछ किसान सडको पर है। हमारे लोकतांत्रीक देश में उन्हे पुरा अधिकार है की वो अपनी समस्याये शासन के सामने रखे, लेकिन लोकतंत्र का मतलब देश के विकास में बाधा बनना नही होता। हम लोकतंत्र का इस्तेमाल करके दुसरो के लोकतांत्रिक अधिकार नही छिन सकते। चार किसान सडको पर आकर बील को गलत ठेहरा कर करोडो किसानो का नेतृत्व नही कर सकते। हमे उन्ह किसानो की बात भी जाननी होंगी जो अपने खेतो में फसल उगाने में व्यस्त है।

हमने सिर्फ दिल्ली की सडको पर उतरे कुछ किसानो कि, किसान नेता वो कि और विपक्ष के नेतावो की बयानबाजी सुनी है ओर कुछ लोग यही बाते सुनकर बिल को गलत मान रहे है। में उनसे कहना चाहती हू, जिनकी बाते आपने सुनी है वो किसान ही है इसके क्या सबुत है। रही बात काॅग्रेस की तो हर बात का विरोध करना पार्टी की पेहचान है। देश में राफेल आए तो काॅग्रेस विरोध करती है, Army Infrastructure डेवलप हो रहा है वहा विरोध करती है, जवानो के लिए हत्यार आते हैं उसमें भी विरोध करती है, 370 हटाने पर भी विरोध, CAA पर विरोध, जिएसटी लाने पर विरोध, नोटबंदी पर विरोध, तीन तलाक हटाने पर विरोध, देश मे कही कोई ब्रिज बन जाए उसमे विरोध, मंदिर बने कही इमारत बने वहा विरोध, किसी गली में सडक भी बन जाए उस पर विरोध कुल मिलाके देश के विकास में मोदी सरकार द्वारा किये गये हर काम पर केवल विरोध करना काॅग्रेस की मानसिकता है। तो इस पार्टी की बाते सुनकर अगर आप किसी बात का विरोध करते है तो आप देश के विरोधी अपने आप बन जायेंगे। खुद सोचिए क्या उपरी केंद्र सरकार द्वारा लिए गये फैसले देश विरोध में थे। उस फैसले से देश को क्या मूनाफा हुवा है,देश कितना मजबुत हुवा है इस सब पर आपको विचार करना होगा। इसीलिए कृषि बिल पर अगर काॅग्रेस विरोध करती है तो उसमें कोई समस्या नही है। समस्या उनसे है जो कृषि बिल का विरोध कर रहे है। आप अपने प्रधानसेवक पर नही लेकिन हमारे आर्मी चीफ को गुंडा कहने वाली काॅग्रेस पार्टी पर भरोसा कर रहे है। अब बचे किसान नेता, वर्तमान में केंद्र सरकार और किसान नेता वो के बिच समझौता हो रहा है। किसान नेता समझौते के लिए तयार नही। जिन्ह किसान नेतावो को किसानो के हित के बारे नही पता वो किसान नेता कैसे हो सकते है। उन्हे समजना होगा कि, वो खुदकी नही समस्त किसानो की बात रख रहे है। किसानो के समर्थन में दो चार बाते बोलने से कोई किसान नेता नही बन जाता। लेकिन जिस तरह से आज वो प्रदर्शन कर रहे है उससे स्पष्ट होता है कि वो किसानो के कम दलालो के नेता ज्यादा है। पुरे देश के किसानो की बात रखने का अधिकार किसान नेता वो का कैसे हो सकता है। इस बात का कोही प्रमाण नही है की, किसान नेता केवल किसानो के बारे में सोचते है। किसान नेता होने का मतलब ये नही होता कि वो खेत में किसानी करते हो हल चलाते हो, फसल उगाते हो। किसान नेता होकर कोई किसानो की तकलीफ नही जान सकता, उनकी गरीबी नही समज सकता। कोही प्रमाण नही है कि, किसान नेतावो को किसानो के परिस्थिति के बारे में पता हो। अगर किसान नेता सच में किसानो के हितमें काम करते है, उनकी आवाज उठाते है तो ये आवाज, ये प्रदर्शन तब काहा जाता है जब किसान आत्महत्या कर लेता है, ये प्रदर्शन तब काहा गया था जब इंदिरा गांधी ने सिंलिग में किसानो की जमीने हडप लि थीं।
केवल किसान नेता होने का दावा करते है। ना इन्हे किसानो से सहानुभूति है ना उनके तकलीफ से। ये नेता केवल किसानों के निवाले पर अपनी दुकाने चलाते है ओर ऐ.सी. लगाकर बडे से बंगले में रहते है।

एक बार सोचिएगा का कि, ऐसा कोई राज्य नही जिस राज्य में किसानो के नाम पर पार्टी ना बनी हो। ये पार्टीया खुदको किसानो की पार्टीया बताती है ओर बडे बडे पदो पर बैठ जाती है। वास्तविक देखा जाए तो इन पार्टीयो ने किसानो के लिए कुछ नही किया। केवल किसानो के जरूरतो पर राजनीति की। इन्ह पार्टीयो ने किसानो के जिवन का कूछ नही बदला। आज भी किसान वही है जब ये पार्टीया बनी थी, लेकिन वर्तमान में इन्ह पार्टीयो के नेतावो ने बहुत तरक्की कर ली। महाराष्ट्र की राष्ट्रवादी काॅग्रेस पार्टी शुरवात से खुदको किसानो की पार्टी बताती है लेकिन ये पार्टि किसानो के हित में काम करती तो आज महाराष्ट्र किसानो कि आत्महत्या वो में पहले स्थान पर नही होता और इसमे पंजाब की स्थिती भी कोई बेहतर नही है।

केंद्र सरकार किसी भी हालत में बिल वापस नही लेंगी। किसान नेता विरोध कर रहे है तो कही राज्य के किसान है जो इस बिल का समर्थन करते है। असली किसान किसान नेता नही बल्कि खेती करने वाला किसान होता है। हमे समज ना होगा की, ये केवल एक बिल नही राहा। ये बिल दोनो सदनो से पारित होकर माननीय राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से कानुन बन गया है। देश में हो रहे अराजकता को रोकने के लिए बिल वापस लेना ही एकमेव रास्ता नही है। बिल वापस लेने पर भविष्य के कही विकासो के कामो पर पाबंदी लग सकती है।इसके बाद विपक्ष को भरोसा मिल जायेगा कि, सडको पर उतरने से, विरोध प्रदर्शन करने से राष्ट्रपति के हस्ताक्षर वाले कानुन को भी आसानी से वापस लिया जा सकता है। फिर देश में किसी भी बिल पर प्रदर्शन करना आम बात हो जायेगी जिसके वजहसे देश का विकास पुरी तरह से रूक जायेगा।

एक बार ध्यानसे सोचिये। किसान नेतावो के कहने पर मत जाइए। ये नेता खुदके दुकान बचाने में जुटे है। आप ने केवल दिल्ली की सडको पर बैठे लोग देखे हैं, उन्ह लोगो में खेत में हल चलाकर फसल उगाने वाले किसानो की तादात कितनी है ये कोई नही जानता। असली किसान आज भी अपने खेतो में है, फसल उगा रहे है। युट्युब पर कृषि बिल को लेकर क्या दिखा रहे है, किसान नेता क्या बोल रहे है, विपक्ष क्या बोल रही है, दिल्ली की सडको पर बैठे किसान क्या बोल रहे है, जरूरी नही है कि वो सच हो। वो सब लोग अपने काम कर रहे है। मै अपने किसान भाईयो से केहना चाहती हु की अपने प्रधानसेवक पर विश्वास रखिए। वो केवल आपके लिए काम कर रहे है। आज तक उन्होने कोई गलत काम नही किया। ईसिलिए अफवावो पर ध्यान मत दिजीए खुद भरोसेमंद बनिए। आप जागरूक रखे आसपास के किसानों को जागरूक किजीए।

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