जिन्होंने भी कभी रेडियो पर समाचारों के दौर को जिया सूना देखा है , वैश्विक समाचार एजेंसियों में निसंदेह उन्होंने बीबीसी को न सिर्फ सुना , खूब सुना और भरोसा भी किया , और भारत सहित विश्व के बहुत सारे देशों के श्रोता अपनी स्थानीय समाचार एजेंसी से अधिक भरोसे मंद या किसी खबर को पुख्ता तब मानते थे जब बीबीसी उसकी पुष्टि कर दे। खोजी पत्रकारिता से लेकर सच्ची पत्रकारिता के हर मानक को जिया करती थी बीबीसी समाचार एजेंसी।
लेकिन बदलते समय ने बीबीसी जैसी समाचार संस्था को भी इतना लचर इतना नीचे स्तर पर ला दिया इसका प्रमाण तो बीबीसी के श्रोताओं और बाद में बीबीसी साइट के दर्शकों और बाकी दुनिया ने भी बीबीसी हिंदी सेवा की साइट पर हर खबर के बीच जबरन परोसे जा रहे अश्लील विज्ञापनों की भरमार देखी। यही नहीं मामला बीबीसी हिंदी सेवा के संज्ञान में भी लाया और बाकयादा मेल भेज कर इसकी शिकायत भी की गई।
लेकिन बाजार के बीच बैठ कर बाजारू हो चुकी बीबीसी पत्रकारिता के सारे मानदंड और मापदण्डों को कबका ताक पर रख चुकी थी। मोदी सरकार के आने के बाद से से तो रवीश कुमार की मौसी बनी बीबीसी हर उस खबर को प्रमुखता से दिखाती बताती रही जिसमें भारत , सरकार , और इस देश समाज की बुराई , आलोचना , हतोत्साहित करने वाली बात घटना हुई हो।
वामियों कांगियों के भोंपू बने ये संस्थान धीरे धीरे जब खुद ही हाशिए पर चले गए और भारत जैसे करोड़ों दर्शकों श्रोताओं वाला देश अपने समाचार माध्यमों , टेलीविजन चैनलों पर भरोसा करने लगा तो फिरसे लाए हैं नई पीपनी बजाने के लिए। और सबसे सरल है आजकल किसी पर कीचड़ उछालना , किसी को बदनाम करना।
सरकार ने कर अदायगी का प्रमाण कर दस्तावेज़ मिलान के बाद जब इनको स्पष्टिकरण के लिए एक दो नहीं बल्कि दर्जन भर से अधिक नोटिस थमाए तब ये बीबीसी बने घुमते रहे और अब जब दफ्तर में आयकर वाले आ गए हैं तो इनका मानवाधिकार , रेडियोधिकार सब हनन हो गया। बीबीसी क्या कहीं इससे ज्यादा। …..छी छी छी
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