पहले पलामू से पलायन और अब महा शिवरात्रि पर मस्जिद से पथराव व डंडे..आखिर कब तक हिन्दू समाज़ के धैर्य की परीक्षा ली जाती रहेगी..?
झारखंड के जनजातीय क्षेत्र में लगातार बढ़ते हमले राज्य की आस्था, विश्वास व संस्कृति पर चोट कर रहे हैं। क्या हिन्दूओं को रोड़ पर तोरण द्वार लगाने का भी अधिकार नहीं..? शिवरात्रि के पर्व की सजावट के तौर पर तोरण द्वार यानी एक टेंट का दरवाजा बनाया जा रहा था जिसे लेकर दूसरे समुदाय के लोगों ने आपत्ति की और बदले में विरोध करने पर हिंदुओं पर लाठी व डंडे व पेट्रोल बम से हमला कर दिया।
उनकी थोड़ी सी जनसंख्या बढ़ते ही हिंदुओं का वहां से निकलना भी मुस्किल हो जाता है। क्या कभी सोचा है कि यदि आपका यही व्यवहार हिन्दूओं ने अपना लिया तो क्या होगा..!!
कश्मीर करौली खरगौन पलामू… आख़िर मस्जिदों में इतने पत्थर आते कैसे हैं? मस्जिदों में सीसीटीवी क्यों नहीं लगते…?? जहां भी दंगा होता है वहां पर आखिर मस्जिद की भूमिका कैसे निकल कर सामने आती है?
हिंदू समाज का संकल्प है कि जनजातियों के झारखंड को कट्टरपंथी लोगों की जन्नत नहीं बनने देंगे…षड्यंत्र पूर्वक किए जा रहे हमले नहीं थमे तो हिन्दू को सड़क पर उतरना होगा।
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