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ये पांचों सर्वश्रेष्ठ दिग्गज उच्च पद पर है पर भाषण हमेशा मातृभाषा में देते है । पर हम लोग सामान्य है कोई उच्च पद नही फिर भी अंग्रेजी में बधाईयां , अंग्रेजी में बाते , अंग्रेजी में गुड़ मॉर्निंग गुड़ नाईट हैप्पी बर्थडे , हैप्पी दीवाली , हैप्पी न्यू यर , यहाँ तक कि अंग्रेजी की गुलामी की इतनी आदत होगयी है हम लोगो को की स्वतंत्रता दिवस पर भी बधाईयां मातृभाषा में देने की बजाय उन अंग्रेज की भाषा मे कहेंगे HAPPY INDIPENDENCE DAY।

जिन्होंने हँमारे देश को सालो गुलाम बनाके रखा था वही अंग्रेज लोग ये चाहते है की आप उनके गुलाम बने रहो शिक्षण से भाषा से सोच से मानसिक तरीके से पर हम ये समजना ही नही चाहते।
हम लोगो को हँमारे देश की मातृभाषा के लिये कोई स्वाभिमान है ही नही । सोच बदलो देश बदलो 370 हट सकती है 500 साल बाद राम मंदिर बन सकता है तो अंग्रेजी के बदले हर छोटी से छोटी आदतों में मातृभाषा का उपयोग भी हो सकता है । बस जैसे 370 राम मंदीर में लोगो की एकता थी वैसी एकता मातृभाषा के लिये होनी चाहिये ।

कुछ हजार अंग्रेजी की टोली हमारे देश की मातृभाषा बदल सकती है तो हम तो 100 करोड़ है हम अपनी मातृभाषा को हर जगह आचरण में क्यो नही ला सकते ?

हैप्पी न्यू यर हैपी बर्थडे हैप्पी दिवाली की जगह उसकी नए वर्ष की शुभकामनाएं क्यो नही कह सकते जन्म दिवस की बधाई या शुभकामनाएं क्यो नही कह सकते? मातृभाषा में शर्म कैसी ? यहाँ तक कि लोग आजादी के दिवस पर भी उन्ही अंग्रेजो की भाषा मे happy indipendence day बोलते है ये मानसिक गुलामी नही तो क्या है भाई ?

छोटी छोटी आदतों में ही गुलामी भरी है ये क्यो निकाल नही सकते ? शर्म क्यो आती है लोगो को क्योकी लार्ड मैकोले जैसे अंग्रेजो ने ऐसा देश विरोधी माहौल बना के रखा था सोच पे वार किया था उसका असर हे ।

वो अंग्रेज यही चाहते है भारत के लोग अपनी मातृभाषा पर शर्म महसूस करे अंग्रेजी को महान समजे और बोलते रहे । ” अंग्रेजो ने हँमारे मंदिर नही तोड़े पर अंग्रेजो ने हमारी सोच को तोड़ा है विचारधारा को तोड़ा है ” |

हम मातृभाषा को अपना कर उन विदेशी माहौल को तोडने का कार्य क्यो नही कर सकते ?
सीमा पर जवान अपनी जान दे सकता है तो हम एक छोटा सा कार्य ध्यान में क्यो नही रख सकते ?
सब लोग ये कहेंगे के ये इस जमाने मे अब संभव नही तो यही सब मिलके साथ मे संभव करने में लग जाये तो सबकुछ हो सकता है । हम लोगो को जो शर्म आती है हिंदी बोलने लिखने में वो चली जायेगी अगर स्वाभिमान होगा अपनी मातृभाषा पर । भाषा सब सीखो पर आचरण में हमेशा मातृभाषा को रखो ।

गौर करो जब किसी समाज या देश को तोड़ना है तो उसकी संस्कृति और विचारधारा को तोडाजाता है
अंग्रेजो ने संस्कृति और विचारधारा तोड़ी , कम्युनिस्ट वामपंथियों ने भी यही किया विचारधारा और संस्कृति को तोड़ा |

जबतक आप अपने मूल्यों विचारधारा और संस्कृति पर गर्व करते रहोगे आचरण में रखोगे तब तक तुम्हे कोई नही तोड़ पायेगा ।

इंग्लिश सीखना गलत नही पर देश के लोगो से और देश मे पढ़ाई में मातृभाषा का उपयोग करना जरूरी है अंग्रेजी भाषा की वजह से भारत के हजारो लोगो का प्रतिभा-कौशल आगे नही आ पा रहा | उस कारण से भारत को असली प्रतिभा-कौशल(टैलेंट) नही मिल रहे है जिस से देश का विकास धीमा होजाता है ।
इजराइल जब आजाद हुवा तब 1 ही साल में उन्होंने अपनी मातृभाषा हिब्रू को देश के शिक्षण में सरकार में हर जगह लागू करदिया जिस से उनका विकास तेजी से बढ गया और उनके युवा भी हिब्रू मातृभाषा को सम्मान से देखने लगे । अगर उन्होंने अंग्रेजी को ज्यादा महत्व दिया होता तो आज वो भी गुलामी में जी रहा होता ।
ऐसा ही एक देश जापान है वो अपनी मातृभाषा को अपने शिक्षण में उपयोग करता है सरकार में उपयोग करता है वहाँ अंग्रेजी की कोई जरुर्रत नही पड़ती वहा अंग्रेजी एक विषय मात्र है ।

मातृभाषा देश का गर्व होती है साथ साथ मातृभाषा से जब सबकुछ सिखाया जाता है तो देश के लोग दुगनी चौगनी तेजी से सब सीखते है प्रतिभा-कौशल बाहर आता है देश को फायदा है ।
और एक बात जब तुम कोई भी बात मातृभाषा में लिखते हो या बोलते हो तो भारत के ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुचता है सामान्य से सामान्य लोग भी ऊस बात को समज पाते है ।
और एक बात अंग्रेजी ने भारत की मातृभाषा का महत्व इतना कम करदिया है कि लोग मातृभाषा बोलने में शरमाते है और इंग्लिश बोलने में गर्व महसूस करते है । धीरे धीरे मातृभाषा कम होती जा रही है । जैसे संस्कृत खत्म होगयी वैसे एक दिन ये खत्म न होजाये ।

ऐसे कई देश है जो अंग्रेजी को एक विषय की तरह ही लेते है और वहा उनकी मातृभाषा का ही उपयोग होता है । रुस , चीन , जापान , इजराइल , स्पेन ऐसे कई देश है जो विश्व मे उच्च पद पर है वो अपनी अपनी मातृभाषा का ही उपयोग करते है

और एक महत्व की बात ये है की पूरी दुनिया मे एक परीक्षा ली जाती है हर देश के बच्चे उसमे भाग लेते है उसके परिणाम में जो जो देश जो अपनी मातृभाषा में परीक्षा देते है उनके नम्बर अव्वल आये है और भारत का नागरिक अंग्रेजी में परीक्षा देता है उनके नम्बर बहोत पीछे आते है ।

मातृभाषा यानी आत्मनिर्भरता विकास प्रतिभा-कौशल को बाहर लाना सम्मान देना ।

भारत के लोगो को भारतीयों के साथ अंग्रेजी में बात करने की कोई जरुरत नही है क्योंकि हिंदी सब समजते है मातृभाषा को अपनाओ ।
दूसरी इसी विषय मे ये बात है जब आप अपने त्योहार अपने जन्मदिवस यहा तक कि अपने स्वतंत्रता के दिवस पर भी उन अंग्रेजी में बधाई देते हो जिन्होंने तुमको गुलाम बनाया था । हैप्पी दिवाली हैप्पी बर्थ डे हैप्पी इंडिपेंडेंस डे हैपी रामनवमी हैप्पी नवरात्रि ????? ये क्या है ये गुलामी की मानसिकता है । तुम अपने त्योहारों को तो अपनी भाषा मे शुभकामनाए दो । जिन अंग्रेजो ने तुमको गुलाम किया उसी अंग्रेजी से तुम आज़ादी दिवस की बधाई देते हो तो ये मूर्खता नही तो क्या है । ???

आप उन बड़े बड़े लोगो को देखिये जिनकी बात भारत के कोने कोने तक हर सामान्य व्यक्ति तक पहुचती है क्योंकि वो हिंदी में बात करते है ।
नरेन्द्र मोदी , पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ , योगी (शुद्ध हिंदी) ,मोहन भागवत जेसे बड़े बड़े ज्ञानी सब हिंदी में बात करते है तो उनकी बातें हर व्यक्ति तक पहुचती है जिन्हें अंग्रेजी नही आती वो सामान्य जन भी समजते है । अंग्रेजी नही आती उसका अर्थ ये नही के उनमें प्रतिभा-कौशल नही होता । अंग्रेजी एक मात्र भाषा है और कुछ नही ।

आप डॉलर कमाने की बात करने से अच्छा ये बात करो के अपने देश को आत्मनिर्भर बनाकर उस उच्चई तक लेजाए जिसमे हमारा रुपिया डॉलर के मुकाबले मजबूत हो 1 रुपया = 75 डॉलर हो यहाँ तक भारत को लेजाना है कम से कम 1 रुपया = 1 डॉलर तक तो ले ही जाना है । और ये तभी सम्भव होगा जब तुमलोग अपने देश को महत्व दोगे गुलामी को छोड़कर अपने देश को आगे लेजाने के लिये काम करोगे । IIM और IIT से विदेश हँमारे प्रतिभा-कौशल(TALENT) को ले जाते है वहा, तो यहाँ भारत को वो प्रतिभा-कौशल(TALENT) नही मिलता तो वो आगे ही नही बढ़ता । तो इसका अर्थ यही हुवा के भारत के लोग विदेश में गुलामी ही करते रहेंगे पर कभी अपना देश आगे नही आएगा अपने देश को आगे बढाने के लिये वो व्यक्ति काम नही करेगा ।
भारत मे कुछ कुछ लोग है जो NASA जैसी जगह छोड़ कर भारत आये है और कहते है हमे भारत को आगे बढ़ाने के लिये काम करना है पैसे नही कमाने हमे देश को आगे बढाना है हमारा देश आगे आएगा तो हम अपने आप आगे आएंगे । हम हँमारे देश को ऊपर तक लेजाएँगे तो हमारे देश के लोगो को अपने परिवार को छोड़ कर अपने देश को छोड़ कर अपन देश के संस्कृति को छोड़ कर वहाँ विदेश में गुलामी करने जाना न पड़े । हँमारे देश को उस ऊँचाई तक लेजाना है । और वो मातृभाषा और मॉतृभूमि के लिये समर्पण भाव हो तभी हो सकता है ।

हम ये चाहते है के पूरा भारत अपनी मातृभाषा को ज्यादा महत्व दे नाकी अंग्रेजी को अपने त्योहारो की बधाई में सुबह में साम में अपनी आदतों में जन्मदिन में धन्यवाद में हरेक व्यक्ति के साथ मातृभाषा का उपयोग करे ।

और अगर मातृभाषा में लिखने बोलने में शर्म आती है तो इसका अर्थ यही है की आप अंग्रेजी भाषा को महान और अपनी मातृभाषा को कम समजते है और ये तो सोचते ही नही के आप मानसिक रूप से उन अंग्रेजो के गुलाम है जिन्होंने हमारा देश बरबाद करदिया तररकी रोक दी संस्कृति और गरुकुल बरबाद करदिया फिर भी हम इतने बेशर्म है की मजबूरी न होने पर भी हम निजी आदतों में अपने त्योहारों में भी उन अंग्रेजो की भाषा का उपयोग करते है । ये मूर्खता नही तो क्या है ।

हर बार आपको अपनी भाषा बोलने में शर्म आती है तो ये बहोत ही शर्मजनक बात है । क्या अंग्रेज कभी हैप्पी क्रिसमस हैप्पी न्यू यर को हिंदी में बोलेंगे ?? उनकी आदतों में लाएंगे ? नही । भाषा से प्रतिभा या कौशल नहीं आ जाता कोई अंग्रेज अमेरिका इंग्लैंड में संडास साफ़ करने वाला भी अंग्रेजी बोल लेता हे तो उसका अर्थ ये नहीं के वो होशियार या ज्यादा कौशल वाला हे इस लिए अंग्रेजी भाषा का जो हमारे देश में लोगो को बड़ी बड़ी कंपनियों को वहम हे की अंग्रेजी आने वाला ज्यादा होशियार और ज्यादा प्रतिभा कौशल वाला होगा तो वो मानसिकता निकाल फेकनी चाहिए | पर भारत के लोग कभी इस बात को नही समज सकते की मातृभाषा सबसे पहले आचरण में होनी चाहिये ।

हिंदी भाषा /भारत की कोई भी राज्य की भाषा व्याकरण में भी अंग्रेजी से बहेतर है । हर भारतीय जब एक बात अपने मन मे ठान ले की हम केवल सीखने और जहा मजबूर हो वहाँ ही अंग्रेजी उपयोग करेंगे बाकी हर जगह अपनी मातृभाषा का उपयोग करेंगे तो फिर इस देश को कोई रोक नही पायेगा ।
जिस देश मे अपनी मातृभाषा में पढ़ाया जाता है उन देशो के बच्चे जल्दी से और आसानी से सबकुछ सिख लेते है । (इजराइल , जापान , चीन , रूस )
जब की जो देश अपनी मातृभाषा को छोड़कर विदेशी भाषा को ज्यादा उपयोग में लाता है तो उस देश के बच्चे उतनी जल्दी नही सीखेंगे जितनी वो देश सिखता है जो अपनी मातृभाषा का उपयोग करता है । देश मे हजारो लाखो करोडो बच्चो की प्रतिभा कौशल्य धरे के धरे रहजाते है जिस देश मे अपनी मातृभाषा का उपयोग नही होता । और फिर देश को उन प्रतिभाशाली लोगों की कमी लगती है वो बच्चा कितना पढ़ले वो नयी खोज नई सोच और जो तररकी प्रोडक्टिविटी चाहिये वो नही देपायेगा । जिस से देश हर दिन बस दूसरे देशों के मुकाबले पीछे चला जाता रहता है ।

इजराइल , जापान, चीन, रूस ऐसे कई देश हे जिनकी सबसे खास बात ये लोग कभी अपनी मातृभाषा को बोलने लिखने में शरमाते नही है पर गर्व महसूस करते है । और भारत के लोग ?? शर्माते हे हिन्दी बोलने में और भारत की कंपनिया भी हिन्दी बोलने वालो को कम प्रतिभा कम कौशल वाला कम होशियार समजता हे ये इनकी मानसिकता हे मूर्खो वाली जिन्हें बदलना जरुरी हे |

जिस दिन भारत के लोग अपनी मातृभाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देने लग जाएंगे उस दिन से ये भारत सो गुनी रफतार से आगे बढ़ेगा । अगर आचार्य चाणक्य भी आज जीवित होते तो सबसे पहले संस्कृत और फिर हिन्दी को हर जगह फरजियात करदेते ।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
जैसे माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान होती है
.….
बस वैसे ही मातृभाषा भी माँ की तरह महान होती है | जो देश अपनी संस्कृति और मूल्यों की रक्षा करता हे वो राष्ट्र कभी नहीं हारता – आचार्य चाणक्य |

अगर हमने अपने संस्कृति और मूल्यों की रक्षा नही की मातृभाषा की रक्षा नहीं की तो हमारा देश हार जाएगा |कुछ भी असंभव नही | मातृभाषा को पुनः जीवित करने हेतु सभी भारतीय आज प्रण ले के हम आज से हर छोटी बात में हर जगह अपने त्योहारो की बधाई और अपने आचरण में हमेशा अपनी मातृभाषा हिन्दी को रखेंगे या राज्य की भाषा को रखेंगे | पर जब बात एकता की आती हे तो पूरा देश हिन्दी समजता हे इसीलिए अभी ये एकता की भाषा हे | संस्कृत भी हम फिरसे लायेंगे पर इस से पहले हम हिन्दी जो अधमरी हो चुकी हे उसे पुनः जीवित करे |

जो लोग ये कहते हे की अब english को छोड़ना और हिन्दी को आगे लाना इस ज़माने में संभव नही तो सुनो ..

असंभव दिखने वाला निर्णय आखिर होता क्या हे एक ऐसा कठिन निर्णय जो लिया जा सके इसलिए जितना संभव हो निर्णय लो ,क्योकि समस्या को अनिर्णय से खिचोगे तो समस्या तुम्हे खाजाएगी , निर्णय लेने में साहस करो फिर देखो इतिहास तुम्हे अमर बनादेगा , समस्या तुम्हे समाप्त करे उससे पहले समस्या को समाप्त करदो – आचार्य चाणक्य

इसलिए आइये एकसाथ खड़े होते हे हम सब भारतीय और मातृभाषा राष्ट्रभाषा को पुरे देश में शिक्षण में कानून में , अपने घर में ओफ़ीस में , लोकसभा में ,कोर्ट में , हर जगह उसका उपयोग करे और भारत को आगे लाये |

हर हर महादेव ?? जय श्री राम , वन्दे मातरम्

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