भीमा कोरेगांव जिसको कुछ जातीय योद्धाओ ने हिन्दू समाज मे भ्रम फैलाने का हमेशा से उपयोग किया है, क्या हम उस कोरेगांव युद्ध की सच्चाई जानते है? आज हम इस लेख मे यही जानने का प्रयत्न करेंगे|

किसी भी व्यक्ति, समाज या फिर देश को सबसे प्रिय कोई वस्तु है तो वह है आजादी|यूं तो हम 1947 मे ही आजाद हो गए थे लेकिन क्या हम गुलामी के चिन्हों को पूरी तरह छोड़ चुके है? एक तरफ सरकारे इस मानसिकता के साथ शहरों के नाम बदल रही है की वे गुलामी के प्रतीक थे,और आजाद भारत मे ऐसी कोई वस्तु न हो जो गुलामी और विदेशी आक्रान्ताओ द्वारा कीये हमारे शोषण का प्रतीक हो, चाहे फिर वो फैजाबाद को अयोध्या,इलाहाबाद को प्रयागराज या हैदराबाद को भाग्यानगर कहने की बात हो या फिर नए संसद भवन का निर्माण हो| लेकिन एक स्थान जो वास्तविक रूप से गुलामी का प्रतीक है भीमा कोरेगांव लेकिन देश की सरकारों द्वारा मामले को केवल वोट बैंक के लालच के कारण दबाया जाता है|

भीमा कोरेगांव की घटना को हमारे देश के बुद्धिजीवीओ द्वारा,कथित राष्ट्रवादी मीडिया द्वारा अंग्रेजी शासन की महानता का प्रतीक बताया जाता है वही समाज के कथित आईना बॉलीवुड द्वारा उस घटना पर फिल्म बनाकर विदेशी आक्रान्ताओ का महिमामंडन करना, क्या भारत और भारतीयता से देशद्रोह नहीं है?

भीमा कोरेगांव को 202 साल पहले 1 जनवरी 1818 को हिन्दू पेशवाओ के नेत्रत्व वाले मराठा साम्राज्य और अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए युद्ध के लिए जाना जाता है| इस युद्ध मे मराठों की सेना का नेत्रत्व पेशवा बाजीराव और अंग्रेजी सेना का नेत्रत्व कैप्टन फ्रांसिस ने किया था| इस युद्ध मे भारत की ही माहर जाति के लोगों ने विदेशी अंग्रेजों का साथ दिया और मातृ भूमि के साथ धोखा किया|भीमा कोरेगांव का युद्ध अंग्रेजों और मराठों के बीच हुए कई युद्धों मे से एक था लेकिन आज के समय मे जातीय योद्धाओ द्वारा युद्ध को ऐसे दिखाया जाता है जहां दलितों ने ब्राह्मणों के खिलाफ लड़ाई लड़ी|पेशवा की सेना मे भी अन्य समुदायों से साथ तथाकथित दलित समुदाय के भी लोग थे तो ऐसा क्यों नहीं कहा जाता की अंग्रेजों ने यह युद्ध पेशवा की सेना मे शामिल दलित सैनिकों के खिलाफ लड़ था| इस युद्ध मे वामपंथी इतिहासकारों द्वारा अंग्रेजों को विजेता बताया जाता है जबकि वास्तव मे यह मराठा जीत थी, यह बात एक प्रसिद्ध स्कॉटिश इतिहासकार Mountstuart Elphinstone ने कही जो युद्ध के तुरंत बाद युद्ध के मैदान का दौरा करते थे| यहाँ तक किसी भी ब्रिटिश रिकार्ड मे इसे अंग्रेजी जीत नहीं बताया गया है |यह कोरेगांव के स्तम्भ शिलालेख पर लिखा है की यह ‘कोरेगांव की रक्षा’ की स्मृति मे बनाया गया था|

वामपंथी इतिहासकारों द्वारा झूठ फैलाया जाता है की यह लड़ाई 28000 पेशवा और 500 माहरों के बीच हुई जबकि सच्चाई यह की लड़ाई मे केवल एक पेशवा था|क्या मराठा सेना मे केवल उच्च जाती के ब्राह्मण शामिल थे? मराठा सेना मे ज्यादातर अरब सैनिक थे जिनके पास केवल दो बंदुके थी| फिर भी जाति कर नाम पर सवर्णों को हमेशा गलत तरीके से चित्रित किया जाता है|

आज के समय मे खुद को दलितों का मसीहा कहने वाले जिग्नेश मेवनी जैसे नेताओ द्वारा झूठ इतिहास बताकर जाति के नाम पर समाज मे भ्रम फैलाया जाता है, दलित वर्ग को हिन्दुओ से अलग बताया जाता है, लेकिन वे क्यों भूल जाते है की अंबेडकर के पिता जो खुद एक माहर सैनिक थे वे एक सच्चे हिन्दू की भांति रामायण, महाभारत का पाठ करते थे|

अब स्पष्ट हो गया है की युद्ध दलित महारों और ब्राह्मण पेशवाओ के मध्य नहीं बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ स्वदेशी ताकत मराठों के मध्य हुआ था जिसमे मराठों की विजय हुई, हम महार सैनिकों की वीरता को नमन करते है,और चेतावनी देते है उन जातीय योद्धाओ को जो केवल जाति के नाम पर भारतीय समाज का सौहार्द बिगाड़ना चाहते है ,वे अपने नापाक मंसूबों मे कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे|

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