मुहम्मद बुस्तान, मुहम्मद आसिफ, आशिक, सुहैल, पुल्लारा, बाबू….ये वो नाम हैं जिन्होंने एक बार फिर साबित किया है कि जानवर कई जन्म बाद इंसान बन पाता है मगर इंसान एक पल में ही जानवर बन सकता है। आर्गेनाइजर अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक ये वो नाम हैं जिन्होंने एक भैंस की मिलकर हत्या की और फिर उस भैंस के गर्भ में पल रहे भ्रूण को भी मिलकर खा गए। 

केरल के मलप्पुरम जिले कि इस घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। इससे पहले भी केरल मेंं गर्भवती हथिनी को अनानास मेंं पटाखे भरकर खिला दिए गए थे, तब उस हथिनी की मौत के बाद देेेेेश में प्रदर्शन हुए थे। अभी कुछ दिन पहले ईद के मौके पर पाकिस्तान में गाय को क्रेन से लटका कर हत्या कर दी गई थी, तब उन तस्वीरोंं से मजहबी क्रूरता का पता चला था। हैरत, हैरानी और गुस्से की बात यह है की न तब कोई PETA ,  न कोई NGO, ना कोई संस्था, ना कोई संगठन बोला था और ना अब बोले हैं। इन मजहबी क्रूरता के मुद्दे पर  इन सभी संगठनों  के  प्रगतिशील मुंह पर पट्टी चढ़ जाती है। जो हथिनी की क्रूर हत्या पर कुछ ना बोले, जिनका दिल क्रेन से लटकती गाय को देखकर ना पसीजा, जो अब इस गर्भवती भैंस की निर्मम हत्या पर मौन हैं समय उनकी इस कायर चुप्पी से सवाल पूछेगा। 

इन आरोपियों की जघन्य मानसिकता का अंदाजा इसी बात से लग सकता है कि इन्होंने पहले तो भैंस की मिलकर हत्या की और फिर उसके गर्भ में पल रहे भ्रूण की क्रूर हत्या कर उसे भी खा गए। समय है कि अब विचार किया जाए कि आखिर क्यों मोहम्मद बुस्तान, मोहम्मद आसिफ जैसे लोग समाज में बढ़ते जा रहे हैं जो ना हथिनी की हत्या पर रुकते हैं ना गाय को क्रेन से लटकाने पर हिचकते हैं और ना ही गर्भवती भैंस के भ्रूण को खाने में शर्माते हैं। फिलहाल यह आरोपी सलाखों के पीछे हैं, हम और आप जैसे मानवीय लोग इस मुद्दे पर मुखर हैं और PETA जैसे दोगले संगठन बिल्कुल चुप। मोहम्मद बुस्तान, मुहम्मद आसिफ, सोहेल की जगह अगर यहां कोई और धर्म के नाम होते तो शायद तब इस समय देश में मार्च निकल रहे होते, PETA जैसे संगठन सरकार को पत्र लिख रहे होते, मुख्यधारा का बिकाऊ मीडिया टीवी डिबेट में टीआरपी बटोर रहा होता मगर फिलहाल सुहैल, आसिफ, बुस्तान के नामों पर ये सब कायर चुप्पी की दोगली चादर ओढ़े हुए हैं।

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