बेअदबी…. क्या कहीं नहीं हो रही है ? मानवता मर रही है और सब चुप ?
बेअदबी, बड़ा नया शब्द है शायद ज्यादातर ने आज ही सुना होगा, जैसे असहिष्णुता सुना था…. जैसे मी टू सुना था, पर इन शब्दों के भी मायने बहुत अलग अलग है पड़ौसी नापाक और वहेंशी मुल्कों से लाए गए इस शब्द बेअदबी का मतलब अपमान, रब का अपमान, गुरुनानक का अपमान, भगवान का अपमान !!
पर क्या ये अपमान पहली बार हुआ है या पहली बार हो रहा है कल लखबीर सिंह (सिंह लगाकर पाघ लगाने वाले सरदार ही मानते है हम तो) जिसकी तीन बेटियां थी पत्नी और ना जाने और कौन कौन होगा जिसकी जिम्मेदारी लखबीर सिंह के नाम थी बीच चौराहे पर काटा गया, रक्त की एक एक बूंद टपक रही थी और नीले कपड़ों में पास खड़े (सभी उन्हे निहंगे कह रहे है) निर्लज्ज देख रहे है और मानवता उन्हे देखकर खुदकुशी करने का मन बना चुकी है इस तरफ रोते बिलखते पीड़ित जिसका एक हाथ काट दिया है जो पास में गिरा हुआ पड़ा है वो रो रहा है बिलख रहा है धर्म की दुहाई दे रहा है अपने बच्चों की दुहाई दे रहा है उसके मुंह से निकले हर शब्द का अटहास उड़ाने वाले ना तो किसी धर्म के अनुयाई हो सकते है और ना ही कोई इंसान, नशे को प्रोत्साहन देने वाले कभी किसी धर्म के नहीं हो सकते !
बीकानेर (राजस्थान) में एक हॉस्पिटल है नाम है पीबीएम (प्रिंस बिजॉय मेमोरियल) अस्पताल, जिसमे रोज हजारों की संख्या में कैंसर पीड़ित आते है और सब पंजाब से, नशे ने ना केवल उनका जीवन बिगाड़ा बल्कि उनके परिवार और उनकी आने वाली नस्लों को खत्म कर दिया, पंजाब से रोज एक ट्रेन बीकानेर आती है जिसका नाम ही केंसर एक्सप्रेस रख दिया है लोगो ने, इसको रोकने का काम किया किसी तथाकथित ने, कभी नही, क्योंकि ये तो खुद इसकी सप्लाई देखते है
क्या यहां किसी की बेअदबी नही हो रही है ?
क्या यहां कोई रब नही रूठ रहा है ये हाल देखकर ?
रोज हजारों युवा और पंजाब की नस्ल को खराब किया जा रहा है नशे की आड़ में और जब क्रूरता को अंजाम देना हो तो धर्म को ढाल बनाकर बेअदबी का नाम दे दिया, आज लखबीर सिंह है और कल कोई भी हो सकता है आप भी और मैं भी, कानून कहीं दूर दूर तक इनको नही लगता, अगर लगता होता तो पिछले डेढ़ दो साल से किसानों के नाम पर नंगा नाच करने वाले ये अपराधी किस्म के लोगो की इतनी हिम्मत नही होती कि राज्य की सीमा को रोककर आम लोगो को परेशान करते, प्रधानमंत्री और मंत्री तो हवाई यात्रा से और नेता वीआईपी मूवमेंट से निकल जाते है पीड़ित कौन है आम आदमी, भुगत कौन रहा है आम आदमी ।
अब तो नोबेल पुरस्कार भी पत्रकारों को मिल गया अब कौनसी शांति रखकर हम कौनसा नोबेल पुरस्कार लेना चाहते हैं समझ नही आ रहा, और इस शांति की कीमत आखिर आम लोग कब तक चुकाएंगे, शाहीन बाग, जेएनयू कैंपस व अन्य राज्यों में हुई हिंसा से लेकर दिल्ली दंगो तक में चुप रहकर आखिर केंद्र सरकार ने क्या हासिल कर लिया, किस बात का दवाब है जो पलटकर जवाब नही दिया जा रहा, हर बार घटना के बाद गृहमंत्री या प्रधानमंत्री की गुस्से वाली फोटो डालकर अंधभक्त कहते है कि इस बार जवाब बहुत खतरनाक होगा पर इस जवाब से लखबीर सिंह के परिवार का क्या हित होगा ये नही समझ आ रहा ।
अब जागने का समय है जब कानून से ऊपर उठकर ये निहंगें जब खुलेआम नरसंहार कर सकते है तो फिर आप कल्पना करे कि ये गुरुनानक, तेग बहादुर, बंदा बैरागी या सिख समुदाय के हितकारी तो नही हो सकते, इनके पीछे कोई छुपा एजेंडा है जो खुलकर सामने नही आकर सिख पाघ़ की आड़ में देश को बरबाद करना चाहता है और कानून और राष्ट्र की खुलेआम मजाक उड़ाना चाहता है अब नही संभले तो आखिर कब संभलेंगे ? नेताओं और तथकथित क्रांतिकारियों को मानवता के साथ नंगा नाच नाचने की खुली छूट दे रखी है कभी लखीमपुर खीरी तो कभी छत्तीसगढ़, रोज रोज नए नए नंगे नाच देखने को मिल रहे है जो कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की पोल खोल रहे है
उपहास मनमोहन सिंह का उड़ाते थे कि वो मौन रहते थे पर पिछले 7 वर्षों से हमने भी देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को चुनावी सभा या मन की बात के अलावा कहीं बोलते नही सुना, देश आपको जनता ने सौंपा है और आप देश को इन निहंगो या टिकैत जैसे गुंडों के हाथ में सोंप दोगे ये मंजूर नहीं, प्रधानमंत्री जी शायद आपको पता नही, आप खुद को भगवान मान बैठे पर जनता के पास आपके विकल्प बहुत है नितिन गडकरी, योगी आदित्यनाथ, हेमंत बिसवा शर्मा जैसे कई नेता है जो देश की कमान संभाल सकते है आप खुद को देश से ऊपर समझना बंद करे और मानवता और हिंदुस्तानी को बचाने का कार्य करे, रोज रोज नई नई योजनाओं में फंसाकर जनता को बेवकूफ बनाना बंद करे ।
उम्मीद है लखबीर सिंह मानवता की हत्या का अंतिम शिकार होगा, और सरकार चेतकर आगे आएगी और तमाम नराधमों को सबक सिखाएगी, अपने और तंत्र के हाथ खोलेगी और कड़ी से कड़ी कार्यवाही करेगी ।
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