लखबीर सिंह -एक गरीब ,निर्दोष , निरपराध सिक्ख जो किस्मत से दलित भी था उसे शायद ही ये कभी अनुमान होगा कि जिन लोगों की सेवा , जिन गुरु साहब की अरदास प्रार्थना में लगे हुए लोगों के साथ वो रह रहा है लगा हुआ है वही लोग , सिर्फ धर्म ग्रन्थ के उसके द्वारा छू भर जाने के लिए उसे मौत के घाट तक उतार देंगे। और कारण बताया जाएगा कि – उस व्यक्ति ने धर्म ग्रन्थ के साथ बेदबी की -इत्तेफाकन उसका कोई सबूत कहीं भी नहीं है।

लोगों ने एक दलित द्वारा किसी धर्म ग्रन्थ को छूने पर उसकी बेअदबी मान कर उसकी ह्त्या कर देने को घोर जातिवाद से जुड़ा अपराध बताया है और इस बात को अब लोगों द्वारा विभिन्न माध्यमों में उठाया जा रहा है। नहीं नहीं – दलितों के मसीहा बन कर घूमने वाले -चंद्रशेखर रावण , मायावती , उदित राज जैसों ने नहीं -इन सबके लिए लखबीर का ज़िंदा रहना या उसका क़त्ल -दोनों के ही कोई सियासी फायदे नहीं हैं इसलिए लखबीर भी एजेंडे में नहीं है।

सोशल नेटवर्किग साइट्स पर तमाम अम्बेडकरवादी लोगों ने एक गरीब दलित के साथ इतनी क्रूरता दिखाने वाले समाज को अब निशाने पर लेकर उनसे सवाल पूछने शुरू कर दिए हैं। अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग ने भी इस घटना का संज्ञान लेकर राज्य सरकार व प्रशासन को नोटिस जारी किया है।

जिन निहंगों ने मिल कर गुरु ग्रन्थ साहब की बेअदबी करने की कोशिश का आरोप लगा कर निर्दयता और नृशंसता से एक गरीब दलित को तलवार और भालों से काट काट कर कोंच कोंच कर तड़पा तड़पा कर क़त्ल कर दिया है , क्या वे बता सकते हैं कि -उस गरीब दलित ने ऐसी क्या बेअदबी कर दी थी , जिसका कोई भी प्रमाण नहीं है ?

क्या गुरु गोविन्द सिंह साहिब ने इसी दिन के लिए सिक्ख निहंगों को तैयार किया था कि एक दिन वे गरीब मजलूमों के हाथ पॉंव काट कर उनका क़त्ल करते फिरेंगे। याद रहे कि कोरोना काल में भी अभी पिछले दिनों ही निहंगों के एक जत्थे ने पंजाब पुलिस के एक सब इन्स्पेक्टर पर हमला कर उसका हाथ ही धड़ से अलग कर दिया था।

असल में तो निहंग को गुरु गोविन्द सिंह ने उन मुगलों और मुगल सेना से लड़ने के लिए तैयार किया था जो जबरन धर्म परिवर्तन करवाने के लिए हिन्दू और सिक्खों पर तरह तरह के अत्याचार करते थे , इनके धर्म ग्रंथों और धार्मिक स्थलों पर हमले कर उन्हें नष्ट करते थे अपमानित करते थे। मुगलों को रोकने के लिए तैयार किया गया ये जत्था कब आततायी कातिलों में बदल गया इसका पता भी नहीं चला।

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि , इस इन तथाकथित किसानों के आंदोलन या प्रदर्शन स्थल के पास , गुरु ग्रन्थ साहब जैसे पवित्र प्रतीक को रखना क्यों आवश्यक समझा गया ?? किसान /आढ़तियों, राजनेताओं और सरकार के बीच किसी मुद्दे , वाद विवाद -इन सबमें आखिर निहंग कहाँ से और क्यों आए और पिछले एक साल से डटे हुए हैं ??

जो भी हो , कुछ घंटों दिनों में ही ये बर्बर क़त्ल भी उन्ही कत्लों की तरह भुला मिटा दिया जाएगा जैसे पालघर में ऐसी ही बर्बर भीड़ ने अकारण ही दो बूढ़े साधुओं की निर्मम ह्त्या कर डाली थी। और ऐसी हत्याएं इस समाज के चहरे पर हमेशा एक कलंक की तरह लगी रहेंगी।

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