अभी कुछ दिनों पहले कनाडा के अपने लोकल ‘पप्पू’ ने भारत में पंजाब के किसानों के आंदोलन में हस्तक्षेप करने की हिमाकत की. ये  कनाडा के राजनीतिक रूप से मजबूत जाट सिखों को खुश करने की एक कवायद थी. इस हिमाकत  के जवाब में भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय के जरिए उन्हें उनके कद के बराबर नाप दिया। ये पहली बार नहीं है की कनाडियन पीएम की मोदी जी ने भरपूर बेइज्जती की. कुछ साल पहले जब वह अपने पत्नी और बच्चों के साथ भारत घूमने आए थे तो भी सरकार ने उनके साथ ऐसा ही बर्ताव किया था. जगराता के कपड़े पहन अपने को भारतीय दिखने के लिए उनकी फैमिली जगह-जगह भारत में घूम रही थी, नाच रही थी लेकिन इज्जत के नाम पर बेज्जती ही मिली. प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने भी उनके कार्यक्रमों में जाना मुनासिब नहीं समझा. इतनी बेज्जती होने के बावजूद ‘पप्पू ‘आज भी अगर हमारी अंदरूनी समस्या में हाथ डालना चाहते हैं तो यह उनकी पप्पू बुद्धि का नतीजा है. उनको भी राजनीति विरासत मे मिली है। जस्टिन ट्रूडो के पिता भी कनाडा के प्रधानमंत्री रह चुके हैं।  

ये वही कनाडा है जो भारत के आत्मनिर्भर होने से परेशान है क्योंकि भारत द्वारा हजारों करोड़ खर्च कर उनकी फसलों को खरीदने का सिलसिला इस सरकार में रोकने का प्रयास किया जा रहा है. उनके यहां बैठे हुए बड़े किसानों और व्यापारियों जिसमें जाट सिख भी शामिल हैं, उन्होंने पप्पू पर दबाव डाला है इसमें हस्तक्षेप डालने के लिए। इससे यह बात तो साफ हो जाती है कि मोदी जी ने किसी कमजोर नस पर हाथ रख दिया है. इस मामले पर कनाडा का दोगलापन भी साफ दिखाई दे जाता है. यह वही कनाडा है जो हर एक अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन की मीटिंग में भारत का यह कहकर विरोध करता है कि भारत सरकार किसानों को उनकी फसल खरीद कर सहयोग नहीं कर सकते हैं, क्योंकि इससे और देशों के किसानों को नुकसान होता है. आज वो ही किसानों को MSPऔर AMCL का समर्थन करते हुए दिख रहे हैं.  ये दोगलपन ऐसा है की आने वाले हर अंतरराष्टीय व्यापार सम्मेलनों  में उनकी नाक पकड़ कर रगड़ा जा सकता है और यही विदेश मंत्रालय ने किया है.

आप तो बताते चलें कि आंदोलनकारियों को किसान की आवाज कह देना बाकी किसानों के अपमान जैसा है. उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्,र हरियाणा जैसे बड़े कृषि प्रधान राज्यों में से किसी बड़े संगठन का इनके साथ ना जोड़ना ही इस बात का संकेत है कि यह केवल जाट सिख बिचौलियों का आंदोलन है. बिहार में 2006 में ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म कर दिया गया था. देश के ज्यादातर किसानों को यह मूल्य नहीं मिलता है तो फिर इसके लिए इतना हो हल्ला क्यों मचाया जा रहा है. अगर आज की जो व्यवस्था है वह इतनी अच्छी है तो हजारों किसान, चाहे वह विदर्भ में हो या आंध्र प्रदेश में या कुछ उत्तर भारत के भागों में – आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? अगर आप आज की व्यवस्था को ही आगे बढ़ाना चाहते हैं क्या आप इस आत्महत्या के समर्थक नहीं है? क्या आम आदमी पार्टी, मेधा पाटकर, योगेंद्र यादव सरीखे अर्बन नक्सल इन आत्महत्याओं की जिम्मेदारी लेंगे? इन लोगों को केवल मोदी विरोध करना है चाहे इसका मतलब पाकिस्तान, चाइना या अल कायदा का ही समर्थन करना क्यों ना हो. The Print इस बार इसका अपवाद है। ज्ञात हो की मोदी के प्रखर विरोधी  शेखर गुप्ता ने इन बिलों का समर्थन किया है। बेचारे को अब शायद अर्बन नक्सल अपने व्हाट्सप्प ग्रुप से बाहर ना निकाल दें।  

इस पूरे मामले में सबसे बड़े गिद्ध आम आदमी पार्टी के अर्बन नक्सल हैं. इनको भारत को तोड़ने, जलाने में कोई गुरेज नहीं है, महज कुछ वोटों से मिलने के बदले. जो देशद्रोही ताकतें किसान का इच्छाधारी वेश धर के आंदोलन में शामिल है वह इनके समर्थन से ही ताकत पाती हैं. मुझे लगता है कि कैप्टन अमरिंदर को इस खतरे का आभास हो गया है और वह अमित शाह के पास कोई समझौता करने के लिए गए थे. पर आप अर्बन नक्सल आम आदमी से यह उम्मीद नहीं रख सकते हैं. उनके और मेधा पाटकर, स्वरा भास्कर, योगेंद्र यादव जैसे लोग हर भारत विरोधी आंदोलन में कपड़े बदल कर नहीं तो कपड़े उतार कर शामिल हो जाते हैं. यह भी अच्छा हुआ कि कंगना ने दिलीप दोसांज का भारत विरोधी चेहरा बेनकाब कर दिया. अब आगे से उसे देखने वालों की संख्या काफी कम हो जाएगी. देश को आग लगाने के लिए जेब में पेट्रोल और लाइटर लेकर घूमने वाले अर्बन नक्सल इस मौके का भी फायदा उठाना चाहते हैं. हमें यह देखना है कि इनका यह घृणित और कुत्सित प्रयास सफल ना हो.

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