मेरे जो भी मित्र सनातन धार्मिक आस्था की रीति या परम्परा को दकियानूसी समझते हैं मैं उनका हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ और सदैव उनका कृतज्ञ रहने की भीष्म प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि उनका ये बालसुलभ उपहास मुझे अपने सनातन को और बेहतर तरीके से जानने का अवसर देता है । और आप ये तो मानेंगे कि सनातन के बारे में जिज्ञासा मतलब उस अविनाशी से थोड़ी और नज़दीकी चाहे कुछ पलों के लिये हीं क्यों ना हो। मैथिली में एक कहावत है कि ” साओन में जनमल गिदऽड़ आ भादब में आयेल बाढ़ि, तऽ गिदड़ कहलक जे एहन बाढ़ि हम अइ जनम में नहिं देखलहुँ॥ इसका हिन्दी भावानुवाद है कि सावन में पैदा हुए सियार ने भादो में आई बाढ़ देख कर कहा कि ऐसी बाढ़ मैंने पूरी ज़िन्दगी में नहीं देखी॥
तो जब भी मैं किसी सनातन निन्दक को देखता हूँ तो मुझे थोड़ी सियार वाली महक आती है।
आज जिक्र करूँगा सम्प्रदायों की क्रोनोलॉज़ी का … अधिनायक वाद की तरह हीं क्रोनोलॉज़ी वाम विचारकों का पसन्दीदा शगल है।
तो सबसे नया पन्थ या सम्प्रदाय है सिख जिसके संस्थापक नानक देव १५३९ में पैदा हुए । फिर है इस्लाम … जिसके प्रवर्तक हज़रत मुहम्मद ईसाइयत के अज़ीमोशान शाहकार चर्च हैगिया सोफ़िया के बनने के बाद पैदा हुए थे लगभग १४००-१५०० साल पहले। अब जिक्र होगा ईसाइयत का जिसके पुरोधा ईसा मसीह ४ ईस्वी पूर्व में पैदा हुए। इससे पहले यहूदी जिसके प्रणेता हैं मूसा जो १३९२ ई०पू० पैदा हुए और मिस्र के राजा के घर में पले बढ़े…. ये तीनों मज़हब अब्राहम या इब्राहिम जो २००० ईसा पूर्व पैदा हुए थे , के स्थापित सम्प्रदाय के विभिन्न अध्याय मात्र हैं[ इसके आसपास है पारसी धर्म जिसके संस्थापक जरथुश्त्र १७०० – १५०० ई०पू० के माने जाते हैं। बौद्ध और जैन धर्म भी ५०० ६०० ई०पू के हीं दिखते हैं जिसमें जापान का शिन्टो और चीन का ताओ सम्प्रदाय मिल कर झेन और वज्रयान में बदल गया। पर इन पाँचो वाद की स्थिति आज भी अलग अलग मिल जाती है। बौद्ध, ताओ , शिन्टो , झेन और वज्रयान सभी आज भी अस्तित्व में हैं। १८६८ से लेकर १९१२ के बीच शिन्टो सम्प्रदाय ने खुद को बौद्ध की छाया से अलग कर खुद को जापान का राजधर्म बना लिया। ताओ और शिण्टो दोनो ४००-५०० ई०पू के सम्प्रदाय हैं।
जैन मतावलम्बी अपने धर्म का आरम्भ सृष्टि के साथ मान कर खुद को प्राचीनतम साबित कर लेते हैं पर पार्श्वनाथ से लेकर वर्धमान महावीर २४ तीर्थंकर इसकी सीमा बाँध देते हैं जबकि जातक कथाओं के आधार पर २४ बुद्ध (अवलोकितेश्वर ) लगभग एक दूसरे की कठोर और मृदु संस्करण हीं साबित होते हैं पर सनातन का क्या कहें । एक श्लोक पढ़िये …
यं शैवाः समुपासते शिव इति ब्रह्मेति वेदान्तिनो च
बौद्धा बुद्ध इति प्रमाणपटवः कर्तेति नैयायिकाः ।
अर्हन्नित्यथ जैनशासनरताः कर्मेति मीमांसकाः
सोऽयं वो विदधातु वाञ्छितफलं त्रैलोक्यनाथो हरिः ।।
जिसकी उपासना शैव ‘शिव’ मानकर करते हैं । वेदान्ति जिसे ‘ब्रह्म’ मानकर उपासते हैं, बौद्ध जिसे ‘बुद्ध’ और तर्क-पटु नैयायिक जिसको ‘कर्ता’ मानकर आराधना करते हैं, एवं जैन लोग जिसे ‘अर्हत’ या ” अरिहन्त ” मानकर तथा मीमांसक जिसे ‘कर्म’ बताकर पूजते हैं, वही त्रिलोकी नाथ हरि हमको मनोवाञ्छित फल प्रदान करें ।
मजे की बात ये कि इस विष्णु की भी सनातन में उत्पत्ति होती है और पुनः एक बार उस अविनाशी तत्व में संलयन होता है ।
अब काल गणना देखें –
भारतीय कालगणना (Sanatan kaal) के अनुसार इस पृथ्वी के सम्पूर्ण इतिहास की कुंजी मन्वन्तर विज्ञान मे है। इस ग्रह के संपूर्ण इतिहास को 14 भागों अर्थात् मन्वन्तरों में बाँटा गया है। एक मन्वन्तर की आयु 30 करोड़ 67 लाख और 20 हजार वर्ष होती है। इस पृथ्वी का संपूर्ण इतिहास 4 अरब 32 करोड़ वर्ष का है। इसके 6 मन्वन्तर बीत चुके हैं। और सातवाँ वैवस्वत मन्वन्तर चल रहा है।
हमारी वर्तमान नवीन सृष्टि 12 करोड़ 5 लाख 33 हजार 1 सौ 4 वर्ष की है। ऐसा युगों की भारतीय कालगणना बताती है। पृथ्वी पर जैव विकास का संपूर्ण काल 4,32,00,00,00 वर्ष है। इसमें बीते 1 अरब 97 करोड़ 29 लाख 49 हजार 1 सौ 11 वर्षों के दीर्घ काल में 6 मन्वन्तर प्रलय, 447 महायुगी खण्ड प्रलय तथा 1341 लघु युग प्रलय हो चुके हैं।
पृथ्वी व सूर्य की आयु की अगर हम भारतीय कालगणना देखें तो पृथ्वी की शेष आयु 4 अरब 50 करोड़ 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष है तथा पृथ्वी की संपूर्ण आयु 8 अरब 64 करोड़ वर्ष है। सूर्य की शेष आयु 6 अरब 66 करोड़ 70 लाख 50 हजार 9 सौ वर्ष तथा सूर्य की संपूर्ण आयु 12 अरब 96 करोड़ वर्ष है।
भारतीय कालगणना का आरम्भ सूक्ष्मतम् इकाई क्रति से होता है। इसके परिमाप के बारे में कहा गया है कि सूई से कमल के पत्ते में छेद करने में जितना समय लगता है वह क्रति है। यह परिमाप 1 सेकेन्ड का ३४०००वां भाग है। इस प्रकार भारतीय कालगणना परमाणु के सूक्ष्मतम इकाई से प्रारम्भ होकर काल की महानतम इकाई महाकल्प तक पहँचती है।
❀ क्रति = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
❀ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
❀ 2 त्रुटि = 1 लव ,
❀ 1 लव = 1 क्षण
❀ 30 क्षण = 1 विपल ,
❀ 60 विपल = 1 पल
❀ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
❀ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
❀ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
❀ 7 दिवस = 1 सप्ताह
❀ 4 सप्ताह = 1 माह ,
❀ 2 माह = 1 ऋतु
❀ 6 ऋतु = 1 वर्ष ,
❀ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
❀ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
❀ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
❀ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
❀ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
❀ 4 युग = सतयुग
❀ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
❀ 76 महायुग = मनवन्तर ,
❀ 1000 महायुग = 1 कल्प
❀ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
❀ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
❀ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्रह्मा का अन्त और जन्म )
जहाँ हमारे बुद्धिजीवी इतिहासकार जहाँ सनातन की उत्पत्ति का काल ४५०० ई०पू० बताकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं वहीं लगभग ६००० साल प्राचीन श्रीराम और हनुमान के भित्ति चित्र सिलेमानिया ईराक में प्राप्त हुए हैं ( 17 जुलाई 2019 वेबैक मशीन. पत्रिका समाचार) और कल्प विग्रह सबसे पुरानी भगवान शिव की मूर्ति ( २६४५० बीसी , 20 अप्रैल 2019 , वेबैक मशीन. बुक्सफैक्ट) की घटनायें सनातन को इन बुद्धिजीवी पत्रकारों की सोच से कहीं ऊपर लेकर चली जाती है। कल्प विग्रह प्रतिमा तिब्बत के किसी बौद्ध ने सीआइए को प्रदान की जिसकी कारबन डेटिंग की गई और आज उस प्रतिमा की आयु २८००० साल होगी। यह मूर्ति आपको पाषाण काल और धातु काल की कुहेलिका प्रहेलिका से कहीं दूर लेकर चली जायेगी।
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