कांग्रेसियों ने किया भाजपा को वोट, गहलोत के हाथ से फिसलने लगी सत्ता की डोर
राजस्थान में फिर से चढ़ने लगा है सियासी पारा
राजस्थान में फिर से चढ़ने लगा है सियासी पारा
देश के राजनीतिक परिदृश्य पर नजर डालें तो फिलहाल पंजाब और छत्तीसगढ़ के बाद केवल राजस्थान ही है, जहां कांग्रेस की एक मजबूत सरकार है, लेकिन उसके अपने ही नेता राज्य सरकार के लिए मुसीबत बन रहे हैं। कांग्रेस के स्थानीय एजेंडे के चलते डूंगरपुर के जिला परिषद चुनाव में पार्टी कार्यकर्ताओं ने सहयोगी भारतीय ट्राइबल पार्टी का समर्थन करने के बजाए बीजेपी के प्रत्याशी का समर्थन किया और परिणाम ये हुआ कि सहयोगी पार्टी ने गहलोत सरकार से समर्थन वापस ले लिया है, जो कि कांग्रेस और गहलोत के लिए झटका है।
कांग्रेस की इस कमजोरी की सबसे बड़ी वजह बनी है स्थानीय ईकाई, जिसने राज्य की सरकार तक को मुसीबत में डालने की नींव रख दी है। डूंगरपुर ज़िला परिषद के चुनाव में कांग्रेस की स्थानीय ईकाई चाहती थी कि राज्य सरकार में उसकी सहयोगी पार्टी का प्रत्याशी न जीते, लिहाजा यहां कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने बीजेपी को वोट देने की हवा चलवा दी। नतीजा ये कि बीजेपी का प्रत्याशी जीत गया लेकिन गहलोत सरकार को समर्थन देने वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी ने अपने दो विधायकों का समर्थन वापस ले लिया। बीटीपी के संस्थापक छोटू भाई वसावा ने ट्विटर पर कांग्रेस की तीखी आलोचना की है।
इसके साथ ही अब राजस्थान में सियासी संकट गहरा सकता है। पिछले लंबे वक्त से गहलोत गुट और पायलट गुट में बंटी पार्टी जुलाई में एक टकराव झेल चुकी है। पायलट के रूठने पर इसी बीटीपी ने कांग्रेस की गहलोत सरकार को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस एक पार्टी से समर्थन पाकर कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत में इतनी मानसिक ताकत आ गई थी कि वो पायलट के जाने या रुकने की परवाह तक नहीं कर रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उसी दल को धोखा दे दिया। ऐसे में अब पायलट की बगावत राजस्थान की राजनीति में कांग्रेस पर भारी पड़ेगी, क्योंकि गहलोत के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने ही सारा खेल बिगाड़ा है और वो गहलोत की पकड़ से बाहर हो चुके हैं।
जिला परिषद और पंचायत के चुनावों के नतीजों में पहले ही कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है, जिसकी 21 मेयर की सीटों में कांग्रेस के हिस्से मात्र 5 सीटें आईं हैं, जबकि बीजेपी ने स्वीप करते हुए 15 सीटों पर पकड़ बनाई है। गहलोत और पायलट के बीच फिर खट-पट शुरू हो गई है और ये कांग्रेस को अधिक परेशान कर सकती है क्योंकि दो साल पूरे होने पर गहलोत मंत्रिमंडल विस्तार की योजना बना रहे हैं और खास बात ये है कि उन्होंने पायलट गुट के लोगों को अहम पद देने में दिलचस्पी नहीं दिखाई है जिससे सचिन पायलट भी काफी नाराज ही हैं।
ऐसे में अगर अब सचिन पायलट जैसे कद्दावर नेता नाराज होते हैं तो कांग्रेस के बुरे दिन शुरू हो जाएंगे क्योंकि कांग्रेस के पास अब अहमद पटेल सरीखा नेता भी नहीं है जो पार्टी में सामंजस्य स्थापित रख सके। इसीलिए विश्लेषकों ने ये कहना शुरू कर दिया है कि गहलोत की पकड़ से बाहर जा चुके कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कांग्रेस को तो मुसीबत में डाला ही है साथ ही राजस्थान में गहलोत की सत्ता पर पकड़ कमजोर हो गई है।
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