राजा जनक की सभा जिससे रहती थी गुंजायमान,
वे शब्द थे अतुलनीय,अकल्पनीय,महान,
ब्रह्मसभा का होता था नित आयोजन,
रहते थे सम्मिलित सभी विद्वान् इस प्रयोजन!!
कौन है ब्रह्म का सर्वश्रेष्ठ ज्ञाता,
यही प्रश्न सिद्ध करता था विद्वता,
याज्ञवल्क्य थे अविवाद्य विवेकी,
असंभव था देना उन्हें चुनौती,
परन्तु एक समय ब्रह्मसभा बनी साक्षी,
जब हुआ शाश्त्रार्थ, जो था अभूतपूर्व एवमविशेषी!!
जनक का था यह उदघोषण,
जो है सर्वोत्कृष्ट ब्रह्मज्ञानी,
वह पायेगा सहस्त्र गाय,
सींगो पर लगे दस दस स्वर्ण!!
याज्ञवल्क्य ने आरंभ किया शाश्त्रार्थ,
सभी सुप्रसिद्ध ब्रह्मनिष्ठ न समझ सके जिसका अर्थ,
तभी आगे आयीं ब्रह्मवादिनी वाचक्नवी गार्गी,
था अपिरिमित ज्ञान, थी पूर्णतया वेदिकमार्गी!!
गार्गी के प्रश्नों का ना था कोई सानी,
परन्तु याज्ञवल्क्य भी थे असीम ज्ञानी,
प्रश्नोत्रो का था अथाह वेग,
अंततः दिया गार्गी को वेदांत तत्त्व का विवेक!!
गार्गी हुई परम संतुष्ट, समझ गयी ब्रह्म का यथार्थ,
स्वीकारी याज्ञवल्क्य की विजय, तथा किया संवाद समाप्त!
अद्भुत कथा है यह ब्रहदआरण्यक उपनिषद् की,
जो दर्शाती सनातनी संवाद परंपरा है महती!!
- निधि मिश्रा
DISCLAIMER: The author is solely responsible for the views expressed in this article. The author carries the responsibility for citing and/or licensing of images utilized within the text.