देश में हाल के दिनों में लव जिहाद की दिल को झकझोर देने वाली घटनाएं सामने आयी है जिसकी वजह से हिंदु बेटियों के मां-बाप कहीं न कहीं डरे-सहमे हुए हैं. इसी बीच मध्यप्रदेश के जबलपुर की एक घटना पूरे देश में चर्चा का विषय बनी हुई है. दरअसल जबलपुर में अनामिका दुबे का त्याग करते हुए उसके परिजनों ने उसका पिंडदान कर दिया उन्होंने एक शोक संदेश भी छपवाया था जिसमें अपनी ही बेटी को ‘कुपुत्री’ बता दिया। ऐसा अनामिका के मोहम्मद अयाज से शादी कर उजमा फातिमा बनने की बाद किया गया था। इस घटना को लेकर सोशल मीडिया पर लोग दो धड़े में बंटे हुए हैं। कुछ लोग अनामिका के परिजनों के फैसले का समर्थन कर रहे हैं, वहीं कुछ लोग जीवित बेटी के पिंडदान पर आपत्ति जता रहे हैं।
सोशल मीडिया पर अनामिका के परिजनों से पूछा जा रहा है कि बेटी का पिंडदान कर, शोक संदेश छपवा कर, वे समाज को किस तरह का संदेश दे रहे हैं। दरअसल हम परिवार के निर्णय को लेकर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते क्योंकि ये परिवार का व्यक्तिगत निर्णय है. उनके दुख को केवल वही समझ सकते हैं। लेकिन एक कड़वा सच यह भी है कि यह अंतिम निर्णय नहीं है। यह इस बीमारी का इलाज नहीं है, बल्कि गुस्से और खुद को सांत्वना देने के लिए उठाया गया जज्बाती कदम भर है।
यह निर्णय बताता है कि परिवार लड़की को ही एकमात्र दोषी मान रहा है, जबकि ऐसा है नहीं। आप माने न मानें यह निर्णय उस लड़के और उसके परिवार को बिल्कुल बरी कर देता है। वे आसानी से ही एक लड़की को फंसाने, उसका अश्लील वीडियो बनाने, उसे ब्लैकमेल करने और उसका धर्मपरिवर्तन कराने जैसे जघन्य अपराध से मुक्त हो जाते हैं और इस तरह आगे भी हजारों लड़कियों के जीवन को नरक बनाने का रास्ता खुल जाता है। अगर आप जरा भी इस मसले को गंभीर समझते हैं तो आपको समझना पड़ेगा कि हमारी बेटियां लव जिहाद के मकड़जाल में फंसायी जा रही हैं. उनका इस तरह से ब्रेनवाश किया जा रहा है कि ना तो वो अपना भविष्य, अपनी जिंदगी देख पा रही है न ही अपने परिवार का.
ऐसे समय में परिवार की जिम्मेदारी और बढ़ जाती है, अगर बेटियों को हम सही जानकारी, अपना समय दें तो हमारी बेटियां कभी भी किसी अब्दुल के चक्कर में नहीं फंस सकती. अगर कोई लड़की कहती है कि ‘मेरा वाला ऐसा नहीं है’, तो यकीन मानिए ये उसके शब्द नहीं है बल्कि उसके परिवार के शब्द है . क्योंकि उसने यह सेक्युलरिज्म भी अपने परिवार से ही सीखा होगा। यह उसके परिवार की जिम्मेवारी थी कि उसे समय से पहले यह बताएं सभी अब्दुल एक जैसे होते हैं. ऐसा ना कर के आप अपनी बेटी को ही अपराधी बता रहे हैं और लव जिहाद के शिकारी की मदद कर रहे हैं. जो बहुत बड़ा अपराध है। क्या आप चाहते हैं कि अपराधी बच कर निकल जाय? क्या आप चाहते हैं कि वह अपने शांतिप्रिय समुदाय के और लड़कों के लिए प्रेरणा बनें और कई और हिंदु बेटियां लव जिहाद के चक्कर में फंस जाए? जवाब होगा नहीं इसलिए अपनी बेटी को जीते जी मत मारिये, बेटी का त्याग मत कीजिए, बेटी के जिंदा रहते उसे मरा हुआ मान लेना महापाप है। अगर आपकी बेटी लव जिहाद के जाल में फंस गई है तो उसके लिए घर के दरवाजे बंद मत कीजिए उसके लिए दरवाजे खोलकर रखिए। ताकि कम से कम उसे इस बात की संतुष्टि हो कि मेरे माता-पिता, मेरा परिवार मुझे सहारा देगा.
दरअसल हम भारतीय माता संकोच की वजह से कई मुद्दों पर अपने बच्चों से खुलकर बात ही नहीं कर पाते. लेकिन हमें जरुरत है कि हम बातचीत का रास्ता बंद नहीं करें उनसे संवाद बनाए रखें ताकि कल को कोई अब्दुल आपकी बेटी पर हाथ उठाए तो उसे यह डर हो कि इसके पीछे इसका पूरा परिवार खड़ा है। क्योंकि लव जिहाद के चक्कर में फंस कर हमारी बेटियां परिवार से सारे रिश्ते तोड़ लेती है और इसी का फायदा आफताब और साहिल जैसे हैवान और दरिंदें उठाते हैं. अधिकतर मामलों में अपराधियों को पता होता है कि मैं इसे मारूँगा तो भी कोई इसे बचाने नहीं आएगा। इसके पास कोई भी अपना नहीं है. और बात हत्या तक पहुंच जाती है बेटियाँ कभी सूटकेस तो कभी फ्रिज में मिलती हैं।” हमारे बच्चे कई खतरों से घिरे हैं। इसलिए जरूरी है कि बच्चों से संवाद का चैनल कभी खत्म नहीं करें। उनसे रिश्ते नहीं तोड़ें। उन्हें जब भी अपनी गलती का अहसास हो तो उन्हें पता होना चाहिए कि उनके लिए अपनों के दरवाजे खुले हैं।
आखिर में हम यही कहेंगे कि जबलपुर में एक जीवित बेटी का पिंडदान कर उसका त्याग करना बिल्कुल भी उचित नहीं है ये एक ग़लत शुरुआत है. हमारे समाज में इसका गलत संदेश जाएगा. जिस बेटी को आपने जन्म दिया उसे उसके पैरों पर खड़ा होना सिखाया ऐसे में उसी बेटी को जीते जी मार देना ये कहां का न्याय है?
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