हमारे सनातन धर्म की महत्ता और इसकी विशेषता इतनी अद्धभुत है की हमें न जाने कितने वर्ष लग जाएँ इसकी आध्यतमिक शक्ति को जानने में! आज मैं एक विशेष उल्लेख “हरी प्रबोधनी” या “देव उठनी एकादशी” का करना चाहूंगा जिसे आप सभी (जो सनातनी और हिन्दू धर्म में कोटि – कोटि आस्था और विश्वास रखते हैं और इसे अपने जीवन में सहर्ष आत्मसात करते हैं), एक बार इसे पुनः समझने का प्रयास करेंगे|
जैसा की हम सभी जानते हैं ये व्रत कथा हमारे प्रिये श्री विष्णु भगवान के चिर निद्रा से बहार आने का हैं| हमारे श्री हरी आषाढ़ मास की शुक्ल एकदशी को क्षीर सागर में शयन करने चले जाते हैं और आज ही के दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल एकादशी को अपनी चिर निद्रा से बहार आते हैं जिसे हम “देव उठनी एकादशी” के नाम से जानते हैं| आज ही चातुर्मास का समापन होता हैं और देव चौदस का पावन त्यौहार आरम्भ होता है|
ये कार्तिक मास हमारे हिन्दू धर्म में अतयंत शुभ माना जाता है और हमारे शुभ कार्य जैसे की शादी – विवाह और गृह प्रवेश आदि महत्वपूर्ण कार्य लोग आरम्भ करते हैं|
आज के दिन तुलसी विवाह का भी अत्यंत महत्व है| ये तो हम सभी जानते है की हमारे जीवन में “तुलसी” के पौधे की कितनी महत्ता है| पूजा पाठ , धार्मिक कार्य से लेकर औषधि और जब जीव स्वर्ग की ओर प्रस्थान करता हैं तब अंत समय में उसके मुख में तुलसी और गंगा जल ही डाला जाता हैं ऐसा हमारे सनातन धर्म में होते आया है|
हमें ये भी ज्ञात होना चाहिए की “तुलसी” हमारे श्री हरी का बहुत प्रिय है और हरएक धार्मिक और पूजा पाठ के कार्यक्रम में तुलसी पत्र अत्यंत शुभ माना जाता है| देव उठनी एकादशी के दिन ऐसी मान्यता हैं की भगवन श्री विष्णु को तुलसी दल अर्पित किया जाता है और भगवन विष्णु के स्वरुप शालिग्राम के साथ तुलसी का विवाह कराया जाता है| जो व्यक्ति अगर स्वेच्छा से तुलसी विवाह कराता हैं तो ऐसा माना जाता है की श्री हरी उसके सारे कष्ट दूर करते है और उसकी वैवाहिक जीवन को संपूर्ण बनाते है| तुलसी विवाह कराने वाले को कन्यादान करने जैसा फल प्राप्त होता हैं ऐसा हमारे शास्त्रों में वर्णन है|
इस वर्ष तुलसी विवाह की तिथि २६ नवम्बर (गुरुवार) को है जो अपने आप में अद्वितीय है क्योंकि ये दिन(गुरुवार) भी भगवन विष्णु का ही है| आज के दिन से ही हिन्दू धर्म के अनुयायी अपने यहाँ शादी – विवाह जैसे शुभ कार्य की शुरुआत करते हैं|
भगवान विष्णु ने क्यों तुलसी के साथ विवाह किया था, आपको मालूम है?
…आइये जानने का प्रयत्न करते है!
शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी थी वृंदा जो अत्यंत पतिव्रता थी और बिना उसके सतीत्व को भंग किए शंखचूड़ दैत्य को हराना बहुत कठिन था| श्री विष्णु ने छल से अपना रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और तब जाकर शिव जी ने शंखचूड़ का वध किया| वृंदा ने इस छल के लिए श्री विष्णु को शिला रूप में परिवर्तित हो जाने का शाप दिया| श्री हरि तबसे शिला रूप में भी विराजमान रहते हैं और उन्हें शालिग्राम कहा जाता है| हिन्दू घरों में सत्यनारायण व्रत की पूजा जब पूर्णिमा के दिन करते है तो इसी शालिग्राम की पूजा हमारे भगवान श्री हरी विष्णु के रूप में होती है| ऐसी कई कथाएं और सन्दर्भ हैं जिसे अगले अंक में प्रकाशित किया जाएगा|
शंखचूड़ कौन था?
शंखचूड़ दानव अपने पूर्वजन्म में भगवान श्रीकृष्ण का मित्र सुदामा था, जिसे राधा रानी ने दानव योनि में जन्म लेने का शाप दिया था। जब श्रीकृष्ण विरिजा के साथ विहार कर रहे थे, सुदामा भी उनके साथ ही था। राधा को ज्ञात हुआ तो रुष्ट होकर वहाँ पहुँचीं और उन्होंने श्राप दिया की अगले जन्म में तुम दानव के रूप में जन्म लोगे और तुम्हारा वध शिव जी के हाथों होगा….. इसी शापवश सुदामा “शंखचूड़” नामक दानव हुआ|
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