भारत में UPA की सरकार के दौरान ऐसा कम ही हुआ है कि दबे-पिछड़े लोगों को अपनी आवाज बुलंद करने का मौका मिला हो . लेकिन पीएम मोदी के 2014 में सत्ता में आने के बाद बहुत हद तक ये सोच और परिपाटी बदली है .  लेकिन इस बीच दलितों की राजनीति करने वाले तबके को सबसे बड़ा सदमा लगा था जब रामनाथ कोविंद का चयन भारत के राष्ट्रपति के तौर पर एनडीए ने किया।

एक बार फिर उसी तरह से NDA की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को लेकर वर्ग विशेष तिलमिलाया हुआ है जैसे रामनाथ कोविंद के नाम के आते ही विधवाविलाप शुरू हो गये थे. एक तरफ जहां द्रौपदी मुर्मू के जीतने के दावे किये जा रहे हैं तो वहीं एक धड़ा ऐसा भी है जो उनकी जाति और उनकी निपुणता पर सवाल उठा रहा है। क्योंकि जाहिर सी बात है इस चयन में पीएम मोदी का सबसे बड़ा योगदान है तो विरोधी गुट कोई एजेंडा न चलाए, इस निर्णय की निंदा न करे ऐसा हो ही नहीं सकता है।

18 जुलाई को मतदान होना है। 21 जुलाई 2022 को देश को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा। लेकिन जहां विपक्षी खेमे को चुनाव की तैयारी करनी चाहिए वहीं मतदान से पहले ही विपक्षी दल तिलमिला गया है. इसी वजह से कई नेता शायद बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देते हैं जहां शब्दों की मर्यादा का भी उन्हें फर्क नहीं पड़ता. दरअसल कांग्रेस नेता अजय कुमार ने द्रौपदी मुर्मू को ‘बुरे पक्ष का प्रतिनिधि’ बता दिया। इस दौरान उन्होंने मुर्मू की अनुसूचित जनजाति पहचान पर भी सवाल उठाए।

इस बीच झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बाबूलाल मरांडी ने कांग्रेस नेता को जवाब देते हुए सवाल पूछा है कि “कांग्रेस के शासन में आदिवासियों को क्या मिला? पहली बार जब NDA ने आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति के लिए नामित किया तब कांग्रेस के पेट में दर्द हो रहा है क्योंकि इन्होंने कभी ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे आदिवासियों को नाम और सम्मान मिले”

जाहिर है जिस तरह से विपक्षी दल राष्ट्रपति चुनाव की सुगबुगाहट के शुरूआत से ही सिरफुटव्वल कर रहा है इससे साफ लगता है कि विपक्ष के टकराव ने बीजेपी के लिए आसान रास्ता तैयार कर दिया है.

 

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