जैसी की आशंका थी और इस बात की भी पूरी संभावना थी कि देर सवेर ही सही , इस तरह की संदेहास्पद घटनाओं /दुर्घटनाओं /अपराधों में इस बात की भरपूर गुंजाईश होती है कि ,इन सबके लिए जिम्मेदार कारकों में एक सबसे बड़ी और मुख्य वजह रही है -नशे का सेवन | शराब और सिगरेट तो अब पिछड़े जमाने की नशाखोरी साबित हो चुकी है | आज बड़े लोगों के द्वारा नशा करने के लिए उपलब्ध और उपभोग किए जा रही वस्तुएं ड्रग्स हैं | ये तरल द्रव्य ,पावडर ,इंजेक्शन , सिगरेट ,हुक्का और जाने कितनी शक्लों और सूरत में न सिर्फ सिनेमा जगत की पार्टियों का हिस्सा बन चुके हैं बल्कि धीरे धीरे इस ज़हर का सबको अभ्यस्त बनाया जा रहा है लगातार बनाया जा रहा है |

देश में आए दिन आयोजित किये जाने वाले रेव पार्टियों में न सिर्फ ड्रग्स का खुलेआम सेवन किया जाता है बल्कि ,यौन उन्मुक्तता का भौंडा प्रदर्शन करके मानो समाज को ये सन्देश दिया जाता है कि उनके लिए समाज और उसकी स्थापित मान्यताओं को मानने की कोई विवशता नहीं है ,क्यूंकि ये और इन जैसे तमाम वर्ग के लोग स्वयं को समाज से ऊपर समझते हैं |

हिंदी सिनेमा आज उससे भी कहीं अधिक गंदा , दूषित , घृणित , नशाखोर ,लालची और स्वार्थी हो चुका है वास्तव में जितना आजकल खुद इन सबके द्वारा बनाई जाने वाली पिक्चरें , वेब सीरीज, धारावाहिक अभी नहीं हो पाई हैं | हालांकि दिन रात चरस गांजा फूंक कर एलाईट क्लास बन कर फिरने वाले इन लोगों की नकारात्मकता इन पर इतनी अधिक हावी रहती है कि उसका सारा प्रभाव इनकी बनाई फूहड़ द्विअर्थी , देश , सरकार , समाज , सेना , सबको अपमानित करने वाली पिक्चरों के रूप में सामने आ रहा है |

इस सारे गंजेड़ीमय गैंग की तरफ से एक और ज्यादा खतरनाक अपराध साजिशन किया जा रहा है वो है आधी आबादी यानि नारी जगत को भी बेतहाशा नशे का आदी बनाया जा रहा है ताकि फिर ज़िन्दगी भर समाज और सिनेमा के लिए एक उत्पाद बने रहने , यौन उन्मुक्तता की सजाई जा रही मंडी का सबसे जरूरी वस्तु भर बने रहने के बावजूद कोई प्रतिरोध का स्वर बाहर न आए |

कहते हैं हराम का पैसा हराम की आदतें भी डलवाता है | सोच के देखिये हिन्दुस्तान में ही एक गैर हिन्दू अभिनेता खुलेआम हिन्दू ,देवी देवताओं , मान्यताओं और संस्थानों को अपमानित करता है , मजाक उडाता है और इसके बदले में में हिन्दू शहर नहीं जलाते , थाने नहीं फूंकते बल्कि उलटा ही |उसे 700 करोड़ रूपए कमा कर देते हैं | सात सौ करोड़ |

ये एक उदाहरण भर है , सलमान ,शाहरुख ,सैफ सरीखे हिंदी सिनेमा के स्वघोषित डॉन अगर हिंदी सिनेमा के सर्वेसर्वा होंगे तो , ऐसा इसलिए कहा है क्यूंकि , सबके सब ,एक से अधिक बार ,बहुत अधिक नशे में सार्वजिक रूप से दुर्व्यवहार और कई अपराध तक के आरोपी रहे हैं , तो ऐसे में स्वाभाविक ही है कि , पूरा सिनेमा जगत जो इनका गुर्गा बना फिर रहा है वो भी हद दर्जे का नशेड़ी और चरसी ही निकले |

सुशांत सिंह राजपूत की संदेहास्पद मृत्यु की जांच में हिंदी सिनेमा का जो भी जैसा भी चेहरा निकल कर सामने आ रहा है वो निश्चित रूप से किसी को भी बहुत हैरान करने वाला नहीं है , आम लोग बस देख और समझ ये रहे हैं की ,जिन कलाकारों को वे देश और समाज का नायक मान कर अपने आदर्श मान कर उनका अनुसरण कर रहे हैं असल में उनका ज़मीर और उनका सच कितना काला है ?

इसमें रत्ती भर भी संदेह नहीं कि , बड़े बड़े आदर्शं , सामाजिक घटनाओं , सामयिक परिवर्तनों और सबसे अधिक संवेदनाओं को अलग अलग रूप में भावनात्मक रूप से अपने पैसे नाम और लोकप्रियता के लिए इस्तेमाल करने में शातिर हिंदी सिनेमा अपने बाहरी आवरण की चमक दमक के आभामंडल में सबको भ्रमित किए रहा | और वास्तविकता में जब भी देश समाज को इस जगत की जरूरत होती है ,जब भी इनसे अग्रिम पंक्ति में आकर प्रतिक्रया देने की अपेक्षा होती है ,ये कछुए की तरह अपने खोलों में घुस जाते हैं |

इससे अधिक विडम्बना और अधिक क्या हो सकती है कि एक तरफ एक अभिनेता सिर्फ एकल प्रयास से पिछले तीन चार महीनों से लोगों की जरूरत के समय उनकी मदद के लिए अपना सर्वस्व लेकर जुटा हुआ है , वहीँ दूसरी तरफ एक अभिनेता जो अपने कार्यक्रम “सत्यमेव जयते ” में देश ,समाज ,कानून की बेहतरी की चिंता ज़ाहिर करता है आज विकट काल में भी ,भारत के धुर विरोधी और कट्टरपंथी देश तुर्की के साथ अपनी दोस्ती का एलान दुनिया के सामने करता है |

दोहरे चरित्र वाला ये हिंदी सिनेमा , अभिव्यक्ति और कला के नाम पर हिन्दू और हिन्दुस्तान के प्रतीकों के अपमान के एक ढके छुपे एजेंडे के साथ एक आपराधिक गुट की तरह से व्यव्हार करने के कारण , उसकी हर गंदगी , नशाखोरी ,यौन शोषण , पैसों का लेनदेन ,हवाला , आदि में लिप्त एक बदबूदार दलदल की तरह हो गया है |

कंगना रानौत जैसे बाग़ी विरले ही हुआ करते हैं और उनका तेवर और उस तेवर में उगला हुआ हर सच आज हिंदी सिनेमा के कान में पिघले शीशे की तरह उतर रहा है , वे सब कुछ चाक चाक कर रही हैं |

अब समय आ गया है कि लोग खुद फैसला करें ,अपना फैसला , अब वो चाहे पिछले दिनों कामेडियनों को सीधे जूतम पैजार से समझाने वाला तरीका हो या फिर , हिंदी सिनेमा के पिस्सू निर्देशक महेश भट्ट की हाल ही में रिलीज सड़क को लोगों द्वारा लात मार कर धूल धूसरित करने में लोगों को बहुत थोड़ा सा ही समय लगा था |

अब लोगबाग कतई माफ़ करने के मूड में नहीं हैं ,किसी को भी नहीं

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