सोए सिंह भारत के जागों
माता तुम्हें पुकार रही
खड़ी द्वार पर शत्रु सेना
युद्ध के लिए ललकार रही

देख द्वार पर खड़ा है दुश्मन
हमारे दुर्ग को हथियाने को
काट केसरी ध्वजा तुंग पर
अपना परचम लहराने को
हय-मस्तक सब गरज रहे हैं
भीषण विध्वंस मचाने को

वीर गई अब बात प्रीत की 
बीत गई वो रीत प्रीत की
जैसे ताड़न के बिना कोई
ढोल देता नहीं हैं संगीत
और छंदों में बंधकर ही
बनता है एक सुंदर गीत
वैसे ही अब भीत बिन यहां
लगाता नहीं कोई भी प्रीत
वजन जो बराबर उठाते हैं
वो हाथ ही बनते अब मीत

तजो तंद्रा वीर और काटो
आदर्शों की जंजीरों को
पछताओगे पीछे फिर तुम
जो भेद दिया प्राचीरों को
वक़्त न जाया करो व्यर्थ में
अब निकाल लो शमशीरो को

कितने समय से ये गांडीव
वीर तुमने नहीं उठाया हैं
राणा प्रताप का भाला भी
पड़े पड़े ही जंग खाया हैं
चौहान के बाण वीर देखो
करते अब तुम्हारा आव्हान
और मृत पुरखो के आत्मा में
रक्त से अपने डालो तुम प्राण

परशुराम का परशु हैं प्यासा
क्षण में काटने अरि दल को
और इन्द्र भी छिड़क रहा है
इस रण-भूमि पर गंगा जल को
शिव शम्भू के डमरू से कंपित
देखो तुम नभ औ जल थल को
यही समय है उचित वीर अब
तुम त्याग करो इस मखमल को

रण भेरी से गूंजित चौदिश 
सुनो इन बादलों की दहाड़
और युद्ध के वेश में निकला
सूरज आज चीर कर पहाड़
उठा ले रे शस्त्र अभी वर्ना
दुर्ग ये बन न जाए उजाड़

केशव का पांचजन्य पुकारे
वीरो अब ना तुम देर करो
जो भी आए चीर हरण को
सबको हाथों से ढेर करो
हाथो में लो गंगाजल और
अब तुम भीष्म प्रतीज्ञा लो 
आंच नहीं मां के आंचल पर
आए जब तक धड पर सर हो

राणा का स्वाभिमान बचा लो
और वीर शिवाजी का स्वराज
पदमिनी का जौहर बचा लो
और लक्ष्मीबाई का ताज
देश के लिए बाली उमर में
फांसी के फंदे को चूमे
उन भगतसिंह औ राजगुरु का
आजाद भारत बचा लो आज

काट काट कर नर मुण्डों को
इन पशुओं का संहार करो
और फिर उन्हीं नर मुण्डों से
मां काली का श्रृंगार करो
पदचापों से हो झंकृत रण
तुम जोरो से हुंकार भरो
रक्त पिपासु धरा पर रक्त की
बौछार तुम धुआंधार करो

वीर अगर अब देर हुई तो
मां को बेड़ियों में पाओगे
और मिटे मां के सुहाग का
बोझ क्या सर पर ले पाओगे 

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