यूनिवर्सिटियां जिसे इस्लामिक आक्रांताओ ने बर्बाद कर दी ,हमारा भारत , आज जैसी स्तिथि है हर तरफ गरीबी है ,लेकिन भारत पहले से ऐसा नहीं था ,ये कभी विश्वगुरु रहा था , यहाँ विश्व की पहली यूनिवर्सिटी थी ,यहाँ का व्यापर समृद्ध था ,यहाँ की GDP किसी अन्य देशो की तुलना में कई गुना था।लेकिन लगातार हो रहे मुस्लिम आक्रमणकारियों ने यहाँ की सभ्यता को कुचल दिया , भारत को धर्म विहीन बना दिया। आईये जानते है मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत के किन शिक्षा केंद्रों को तहस नहस कर दिया |
नालंदा विश्वविद्यालय
जी हाँ नालंदा वो जगह है जो छठी शताब्दी में पूरे वर्ल्ड में नॉलेज का सेंटर थी । हमने इतिहास में इसके बारे में बस कुछ ही अंश पढ़े है लेकिन कोरिया, जापान, चीन, तिब्बत और तुर्की से यहां स्टूडेंट्स और टीचर्स पढ़ने-पढ़ाने आते थे, लेकिन बख्तियार खिलजी नाम के एक सिरफिरे की सनक ने इसको तहस-नहस कर दिया। उसने नालंदा यूनिवर्सिटी में आग लगवा दी, जिससे इसकी लाइब्रेरी में रखीं बेशकीमती किताबें जलकर राख हो गईं। खिलजी ने नालंदा के कई धार्मिक लीडर्स और बौद्ध भिक्षुओं की भी हत्या करवा दी।
हिंदुस्तान सोने की चिडिया कहलाता था।
छठी शताब्दी में हिंदुस्तान सोने की चिडिया कहलाता था। यह सुनकर यहां मुस्लिम आक्रमणकारी आते रहते थे। इन्हीं में से एक था- तुर्की का शासक इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी। उस समय हिंदुस्तान पर खिलजी का ही राज था। नालंदा यूनिवर्सिटी तब राजगीर का एक उपनगर हुआ करती थी। यह राजगीर से पटना को जोड़ने वाली रोड पर स्थित है। यहां पढ़ने वाले ज्यादातर स्टूडेंट्स विदेशी थे। उस वक्त यहां 10 हजार छात्र पढ़ते थे, जिन्हें 2 हजार शिक्षक गाइड करते थे।
महायान बौद्ध धर्म के इस विश्वविद्यालय में हीनयान बौद्ध धर्म के साथ ही दूसरे धर्मों की भी शिक्षा दी जाती थी। मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी यहां साल भर शिक्षा ली थी। यह वर्ल्ड की ऐसी पहली यूनिवर्सिटी थी, जहां रहने के लिए हॉस्टल भी थे।
जाहिल खीलजी का ईगो हर्ट हो गया
कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बुरी तरह बीमार पड़ा। उसने अपने हकीमों से काफी इलाज करवाया, लेकिन कोई असर नहीं हुआ। तब किसी ने उसे नालंदा यूनिवर्सिटी की आयुर्वेद शाखा के हेड (प्रधान) राहुल श्रीभद्र जी से इलाज करवाने की सलाह दी, लेकिन खिलजी किसी हिंदुस्तानी वैद्य (डॉक्टर) से इलाज के लिए तैयार नहीं था। उसे अपने हकीमों पर ज्यादा भरोसा था। उसका मन ये मानने को तैयार नहीं था कि कोई हिंदुस्तानी डॉक्टर उसके हकीमों से भी ज्यादा काबिल हो सकता है।
दरअसल, जब राहुल श्रीभद्र जी ने उन्हें कुछ दवाई लेने को कहा तो खिलजी ने साफ़ इंकार कर दिया और दवाई को फेंक दिया फिर श्रीभद्र जी के दीमक में एक आईडिया आया और उन्होंने खिलजी से कुरान पढ़ने के लिए कहा, तब राहुल श्रीभद्र ने कुरान के कुछ पन्नों पर एक दवा का लेप लगा दिया था। खिलजी थूक के साथ उन पन्नों को पढ़ता गया और इस तरह धीरे-धीरे ठीक होता गया, लेकिन पूरी तरह ठीक होने के बाद उसने हिंदुस्तानी वैद्य के अहसानों को भुला दिया। उसे इस बात से जलन होने लगी कि उसके हकीम फेल हो गए जबकि एक हिंदुस्तानी वैद्य उसका इलाज करने में सफल हो गया। तब खिलजी ने सोचा कि क्यों न ज्ञान की इस पूरी जड़ (नालंदा यूनिवर्सिटी) को ही खत्म कर दिया जाए। इसके बाद उसने जो किया, उसके लिए इतिहास ने उसे कभी माफ नहीं किया।
दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी “तक्षशिला”
तक्षशिला विश्वविद्यालय को दुनिया का सबसे पहला विश्वविद्यालय माना जाता हैं। ये तक्षशिला शहर में था, जो प्राचीन भारत में गांधार जनपद की राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। माना जाता है विश्वविद्यालय छठवीं से सातवीं ईसा पूर्व में तैयार हुआ था। इसके बाद से यहां भारत समेत एशियाभर से विद्वान पढ़ने के लिए आने लगे। इनमें चीन, सीरिया, ग्रीस और बेबीलोनिया भी शामिल था।
ओदंतपुर
ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय / उदंतपुरी विश्वविद्यालय / ओदन्तपुरी विश्वविद्यालय भी नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय की तरह विख्यात था, परन्तु उदन्तपुरी विश्वविद्यालय का उत्खनन कार्य नहीं होने के कारण यह आज भी धरती के गर्भ में दबा है, जिसके कारण बहुत ही कम लोग इस विश्वविद्यालय के इतिहास से परिचित हैं। अरब लेखकों ने इसकी चर्चा ‘अदबंद’ के नाम से की है, वहीं ‘लामा तारानाथ’ ने इस ‘उदंतपुरी महाविहार’ को ‘ओडयंतपुरी महाविद्यालय’ कहा है।
ज्ञानवापी मस्जिद का पूरा मामला
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