एकादशी के दिन उपवास – महत्त्व
एकादशी अवश्य करें एवं अपने स्नेहीजनों को स्नेह पूर्वक करवाएं।
एकादशी अवश्य करें एवं अपने स्नेहीजनों को स्नेह पूर्वक करवाएं।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति एकादशी के दिन उपवास करता है वह सारे पापों से मुक्त हो जाता है और पवित्र जीवन में अग्रसर होता है।
मूल सिद्धान्त मात्र उपवास करना नहीं है, अपितु गोविन्द या कृष्ण के प्रति श्रद्धा तथा प्रेम बढ़ाना है।
एकादशी के दिन उपवास करने का असली कारण है-
शरीर की आवश्यकताओं को कम करना और कीर्तन या अन्य ऐसे ही कार्य द्वारा अपने समय को भगवान् की सेवा में लगाना।
उपवास के दिन गोविन्द की लीलाओं का स्मरण करना और उनके दिव्य नाम का निरन्तर जप और श्रवण करना सर्वश्रेष्ठ होता है।
स्रोत: श्रील प्रभुपाद की पुस्तक “भक्तिरसामृतसिंधु, अध्याय -7”
एकादशी के दिन अन्न वर्जित क्यों ?
एक दिन मातार पदे करिया प्रणाम।
प्रभु कहे,-माता , मोरे देह एक दान॥8॥
अनुवाद – एक दिन श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपनी माता के चरणकमलों पर गिरकर उनसे प्रार्थना की कि वे उन्हें एक वस्तु का दान दें।
माता बले,-ताइ दिब, य़ा तुमि मागिबे।
प्रभ कहे,-एकादशीते अन्न ना खाइबे॥9॥
अनुवाद – उनकी माता ने कहा “मेरे प्रिय पुत्र, जो तुम माँगोगे वही मैं दूंगी।” तब महाप्रभु बोले, “प्रिय माता, कृपया आप एकादशी के दिन अन्न न खायें।”
तात्पर्य – श्री चैतन्य महाप्रभु ने अपने बाल्यकाल से ही एकादशी के दिन उपवास रखने की प्रथा अपना ली। श्रील जीव गोस्वामी कृत भक्ति-सन्दर्भ में स्कन्द-पुराण से एक उद्धरण आया है, जिसमें यह बतलाया गया है कि जो एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह अपने माता, पिता, भाई तथा गुरु का हत्यारा बनता है और वैकुण्ठ-लोक प्राप्त होने पर भी वह नीचे गिर जाता हैं।
एकादशी के दिन हर वस्तु, जिसमें अन्न तथा दाल सम्मिलित हैं, विष्णु के लिए बनाई जाती हैं, किन्तु वैष्णवों के लिए आदेश है कि वे एकादशी के दिन विष्णु-प्रसाद ग्रहण न करें। कहा जाता है कि वैष्णव भगवान् विष्णु को अर्पित किए बिना कोई खाद्य ग्रहण नहीं करते। एकादशी के दिन कोई भी अन्न ग्रहण करना मना है, भले ही वह भगवान् विष्णु को अर्पित क्यों न किया गया हो।
शची कहे,-ना खाइब, भाल-इ कहिला।
सेइ हैते एकादशी करिते लागिला॥10॥
अनुवाद – माता शची ने कहा, “तुमने बहुत अच्छा कहा। मैं एकादशी के दिन अन्न नहीं खाऊँगी।” उस दिन से वे एकादशी के दिन उपवास रखने लगीं।
तात्पर्य – स्मार्त ब्राह्मण इस पक्ष के हैं कि विधवा को तो एकादशी व्रत रखना चाहिए, किन्तु सधवा को नहीं। ऐसा लगता है कि चैतन्य महाप्रभु के अनुरोध के पूर्व शचीमाता एकादशी व्रत नहीं रखतीं थीं, क्योंकि वे सधवा थीं। किन्तु चैतन्य महाप्रभु ने ऐसी प्रथा का सूत्रपात किया कि विधवा न होने पर भी स्त्री को एकादशी व्रत रखना चाहिए और उस दिन कोई अन्न नहीं ग्रहण करना चाहिए, भले ही वह विष्णु को अर्पित प्रसाद ही क्यों न हों।
स्रोत : श्री चैतन्य -चरितामृत, भाग- आदि लीला, अध्याय – 15 महाप्रभु की पौगण्ड-लीलाएँ
एकादशी अवश्य करें एवं अपने स्नेहीजनों को स्नेह पूर्वक करवाएं।
जय हरि
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