हाथरस काँड और इन जैसे बहुत अन्य मामलों की ओछी द्वेषपूर्ण और निम्न स्तरीय पत्रकारिता या पत्रकार सम्पादक अर्नब गोस्वामी की अवैध गिरफ्तारी के विरूद्ध एक शब्द भी नहीं बोलने वाला एडिटर्स गिल्ड भी इन दिनों , हमेशा ही देश विरोधियों के साथ ठीक उसी तरह खड़ा दिखाई देता है जैसे कभी एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया मानवाधिकार की रक्षा के नाम पर आतंकियों और अपराधियों के साथ खड़ा दिखता था।

पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से पहले किसान विरोध के नाम पर , पंजाब के कांग्रेसी किसानों का भेष धर के दो राज्यों को पार करते हुए राजधानी दिल्ली में अराजकता फैलाने के उद्देश्य से उसे बंधक बनाए हुए हैं , उसमें धीरे धीरे कभी भगवा चोला धारण किये हुए तो कभी कोई किसी भीम आर्मी के झंडे लिए , और कोई खालिस्तान ,पाकिस्तान के समर्थन की तख्तियां लिए हुए तमाम राष्ट्रविरोधी लोग एक षड्यंत्र के तहत एकत्रित हो गए। सरकार द्वारा बातचीत के लिए बुलाए जाने और लगातार वार्ता चलने के बावजूद भी इन सब छद्द्म वेश धारी किसानों ने इस प्रदर्शन को समाप्त नहीं किया है।

पाकिस्तान /खालिस्तान वालों की माँग को आगे बढ़ाते हुए तथाकथित किसान

ये तो महज़ एक छोटी सी बानगी भर है असल जहर और किसानों के भेष में अपने भीतर सरकार , मोदी ,भाजपा और अब तो हिन्दुओं के विरूद्ध क्या और कितना घिनौना किस किस के द्वारा कहा जा रहा है वो सब धीरे धीरे मीडिया और सोशल मीडिया में दिखाई सुनाई दे रहा है।

इस तरह के तमाम वीडियोज़ , और फोटो सोशल मीडिया पर पसरे हुए हैं जो इस तथाकथित किसान विरोध प्रदर्शन की सारी पोल खोल रहे हैं और केंचुली के भीतर असली सर्प मानसिकता को बाहर ला रहे हैं।

हिन्दुओं को गाली और मारने काटने की धमकी देने वाली किसान जी

लेकिन खबरदार मीडिया /सोशल मीडिया जो ये सब दिखाया ,सुनाया तो। उन्हें पाकिस्तान खालिस्तान समर्थक और देशी विरोधी कहने की बजाय सिर्फ सरकार विरोधी ,मोदी विरोधी ,भाजपा विरोधी और हिन्दुओं के विरोधी समाचार ही दिखाने हैं -ऐसा फतवा जारी किया गया है। और ये भी नसीहत दी गई है कि सिर्फ ऐसा करने से ही पत्रकारिता की निष्पक्षता और संतुलन बना रहेगा।

और आखिर में अब ये भी जान लीजिए की इन छद्म धारी किसानों के लिए ऐसा प्रेम एडिटर्स गिल्ड के मन में क्यों जग गया है तो ये देखिये , आगे आप खुद समझ जाएंगे।

अब आप समझ ही गए होंगे कि मैंने शीर्षक में क्यों इसे एडिटर्स गिल्ड का फतवा कहा है वैसे भी जब दस सालों तक उपराष्ट्रपति बने मुग़ल हामिद अंसारी अपना मुगलिया एजेंडा चला सकते हैं तो फिर मैडम गुलाम ए मुस्तफा क्यूँ नहीं चला सकतीं।

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