कहा जाता हैं इंदिरा गांधी की आत्मा अभी भी भटकती हैं इस कब्र के आसपास। कई बार लोगो को कब्र के पास से किसी महिला के रोने की आवाज़ें आती हैं।
नेहरू के दामाद, इंदिरा के पति, राजीव के पिता, सोनिया के ससुर, राहुल प्रियंका के दादा की आज पुण्यतिथि हैं
हर साल की तरह इस साल भी प्रयागराज में उनकी कब्र सूनी पड़ी रही। परिवार से कोई इस कब्र पर माथा टेकने नहीं आता। एक फूल नहीं चढ़ाया जाता। परिवार के पालतू कुत्तों के आगे भी लेट जाने वाले कांग्रेसी भी फिरोज़ खान की कब्र पर जाने से बचते हैं।
1980 में मेनका गांधी यहां आई थीं। उसके बाद परिवार का कोई सदस्य इस कब्रिस्तान में नहीं आया। इस कब्रिस्तान की देखभाल एक चौकीदार करता है। कब्रिस्तान में कुआं और एक मकान के अलावा चौकीदार के रहने के लिए दो कमरे भी बने हुए हैं। देखभाल के अभाव में फिरोज गांधी सहित उनके पूर्वजों की कब्र जर्जर हो चुकी हैं।
फिरोज़ पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अपनी पत्नी के ऑथेरीटेटिव प्रवृत्ति को पहचान लिया था.
साल 1959 में जब इंदिरा गांधी कांग्रेस की अध्यक्ष थीं उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि केरल में चुनी हुई पहली कम्यूनिस्ट सरकार को पलट कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए.
आनंद भवन में नाश्ते की मेज़ पर फिरोज़ ने इसके लिए इंदिरा को फ़ासीवादी कहा. उस वक्त नेहरू भी वहीं मौजूद थे. इसके बाद एक स्पीच में उन्होंने लगभग आपातकाल के संकेत दे दिए थे.
फ़िरोज़ गांधी अभिव्यक्ति की आज़ादी के बड़े समर्थक थे. उस दौर में संसद के भीतर कुछ भी कहा जा सकता था लेकिन अगर किसी पत्रकार ने इसके बारे में कुछ कहा या लिखा तो उन्हें इसकी सज़ा दी जा सकती थी.
इस मुश्किल को ख़त्म करने के लिए फिरोज़ ने एक प्राइवेट बिल पेश किया. ये बिल बाद में कानून बना जिसे फिरोज़ गांधी प्रेस लॉ के नाम से जाना जाता है. इस कानून के बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है.
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