वीर विनायक सावरकर, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में शायद ही कोई और चेहरा होगा जिनके नाम पर इस देश में इतनी अधिक नकारात्मकता फैलाई गई हो।
वीर सावरकर को अंग्रेजों का एजेंट, माफ़ी मांगने वाले, कायर पता नही क्या क्या इस देश में कहा गया, यहाँ तक कि कुछ निम्न मानसिकता वाले लोगो ने तो उन्हें स्वतंत्रता का नायक मनाने से ही इंकार कर दिया।
लेकिन इस लेख के माध्यम से वीर सावरकर के योगदान को बताने का प्रयास किया गया है, उन्ही वीर सावरकर के बारे में जिनके लिए पूज्य अटलजी कहते थे कि, “यदि मैं कण हूं, तो सावरकर जी पर्वत.मैं बूंद हूं तो सावरकर जी सिंधु”
28 मई 1883 को इस नायक का जन्म हुआ था जब देश में स्वतंत्रता के लिए एक लहर चल रही थी और पूरा देश अंग्रेजों के विरुद्ध एकजुट हो रहा था।
वीर सावरकर भी स्कूल के दिनों से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय हो गए थे। उन्होंने स्थानीय नवयुवकों को संगठित करके “मित्र मेलों” का आयोजन किया। इन मित्र मेलों का प्रभाव ये रहा कि अनेक नवयुवकों में क्रांति की ज्वाला जाग उठी।
1904 में वीर सावरकर द्वारा “अभिनव भारत” संगठन की स्थापना की गई जो अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम का सबसे सशक्त संगठन बना।
वो वीर सावरकर ही थे जिन्होंने सर्वप्रथम ये बताया कि 1857 का विद्रोह सिर्फ एक विद्रोह ना होकर भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था और इसी कारण 10 मई 1907 को इंडिया हाउस, लंदन में वीर सावरकर ने 1857 की क्रांति का “स्वर्ण जयंती उत्सव” कार्यक्रम आयोजित किया।
इस स्वर्ण जयंती उत्सव के मौके पर ही वीर सावरकर ने पूरे प्रमाणों के साथ सिद्ध किया कि 1857 का विद्रोह भारत के स्वातंत्र्य का प्रथम संग्राम था।
जून 1909 में वीर सावरकर की पुस्तक ” द इण्डियन वार ऑफ इण्डिपेण्डेंस : 1857″ तैयार हो गई थी लेकिन अंग्रेज सरकार इनसे इतना डरती थी कि पुस्तक को प्रकाशित नही होने दिया।
अंग्रेज सरकार द्वारा इनसे खौफ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वीर सावरकर को दो बार आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, ऐसा बताते है कि विश्व इतिहास में शायद ही किसी अन्य को ऐसी सजा मिली हो।
लेकिन अपनी बदजुबानी का परिचय देने वाले लोगों को ये समझने की आवश्यकता है कि सावरकर कौन थे?
प्रखर राष्ट्रवादी, महान स्वतंत्रता सेनानी, भारत मां के महान सपूत यानी वीर सावरकर,जिन्होंने 1857 की क्रांति का मतलब समझाया,
वो सावरकर जिन्होंने साल 1857 की क्रांति के गदर पर गर्व करना सिखाया,
वो सावरकर जो अंग्रेजों के लिए खौफ का दूसरा नाम थे, अंग्रेजी सल्तनत की नींव हिलाने वाले शख्स मतलब सावरकर,
एक जीवनकाल में दो दो बार उम्रकैद झेलने वाले महान वीर सावरकर,
83 साल के जीवनकाल में से लगभग 30 साल जेल में गुज़ारने वाले शख्स सावरकर,
10 साल काला पानी की सज़ा अंडमान की पोर्ट ब्लेयर जेल में गुज़ारने वाले महान शख्स मतलब सावरकर।
आजादी के 19 साल बाद यानी 26 फरवरी 1966 को देश के सबसे महान और राष्ट्रवाद के सबसे बड़े नायक वीर सावरकर का निधन हुआ था. हर किसी के मन में इस बात के लिए रोष है कि वो ऐसे पहले क्रान्तिकारी थे जिनके ऊपर स्वतंत्र भारत की सरकार ने एक झूठा मुकदमा चलाया था. हालांकि, बाद में वो निर्दोष भी साबित हो गए, फिर सरकार द्वारा माफी मांग ली गई। उनके ऊपर केस करने की वजह भी यही थी कि उस वक्त की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस को राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व पसंद नही था, लेकिन ये बिल्कुल सत्य है कि राष्ट्रवाद से सबसे बड़े नायक वीर सावरकर के बलिदान को देश कभी नहीं भूल पाएगा।
अंत में लेख की समाप्ति पर पूज्य अटलजी के वीर सावरकर के सम्बन्ध में ये विचार जरूर सुनिए।
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