पाकिस्तान में अल्पसंख्यक होना किसी पाप से कम नहीं है। इसी का हाल ही में एक उदाहरण देखने को मिला जब खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में एक मौलवी के उकसाने पर एक प्राचीन हिन्दू मंदिर को कट्टरपंथी मुसलमानों ने ध्वस्त कर दिया।

आम तौर पर ऐसे घटनाओं पर कार्रवाई तक नहीं होती थी, न्याय मिलना तो दूर की बात। लेकिन एक अप्रत्याशित निर्णय में पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय लिया है कि ध्वस्त हिन्दू मंदिर को तत्काल प्रभाव से पुनरनिर्मित करने का निर्देश दिया है।

पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गुलजार अहमद ने एक सख्त निर्देश में कहा कि पाकिस्तान की Evacuee Property Trust Board (EPTB) को मंदिर को पुनः निर्मित करे, क्योंकि इसके विध्वंस से पूरे पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बेइज्जती हुई है

परंतु पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट वहीं पे नहीं रुका। उन्होंने निर्देश में आगे कहा, “EPTB को कोर्ट बंटवारे के दौरान हिंदुओं और सिखों द्वारा त्यागे गए सभी प्रकार के मंदिर, गुरुद्वारे और उनसे जुड़ी संपत्तियों का ब्योरा देने का निर्देश देती है। यदि इन जगहों पर किसी ने अतिक्रमण किया है, तो उसे भी तत्काल प्रभाव से हटाया जाए और उक्त अफसरों के विरुद्ध अतिक्रमण होने देने के लिए कार्रवाई भी किया जाए।”

कहा जा रहा है कि एक मौलवी मोहम्मद शरीफ के निर्देश पर डेढ़ हजार से अधिक कट्टरपंथी मुसलमानों ने खैबर पख्तूनख्वा में स्थित एक प्राचीन मंदिर पे धावा बोला, और उसे ध्वस्त कर दिया। इस हमले को जमीयत उलेमा ए इस्लाम की ओर से पूरा समर्थन मिला। इसीलिए इस मामले को संज्ञान में लेते हुए पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विध्वंस और पुनर्निर्माण में लगने वाली लागत का पूरा हिसाब इसी मौलवी और उसके चेलों से ही वसूला जाए।

लेकिन पाकिस्तान में यह कायाकल्प कैसे हुआ? दरअसल इन दिनों भारत का अंतर्राष्ट्रीय कद दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, और पाकिस्तान ऐसा कुछ नहीं करना चाहता जिससे वह पूर्ण रूप से दिवालिया हो जाए। आतंक को बढ़ावा देने के लिए वह पहले से ही वैश्विक संस्थाओं के कोपभाजन का शिकार है, और उसकी कट्टरपंथी नीतियों के कारण अरब देश तक उसे भाव देने को तैयार नहीं है।

इसके अलावा सिंध हाई कोर्ट ने हाल ही में डेनियल पर्ल की हत्या के आरोप में जेल में बंद उसके 4 हत्यारों को रिहा करने का जो निर्देश दिया है, उससे पाकिस्तान के लिए स्थिति बद से बदतर हो सकती है। अब इसे अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई का खौफ कहिए या फिर अंतरात्मा की आवाज, परंतु हिन्दू मंदिरों को पुनरनिर्मित करने के लिए पाकिस्तान आखिरकार दबाव में ही सही, पर काम कर रहा है, और ये दबाव बना रहना चाहिए।

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