हमारा देश भारत जहाँ कई तरह की भाषा है। हिन्दी, तमिल, मलयालम, तेलगु, संस्कृत, मैथिली इत्यादी जैसी सर्वगुण संपन्न भाषा के रहते हुए हम अन्ग्रेजी और अरबी भाषा मे बंधे हुए हैं। क्या ये भारत के लिये शर्मनाक नहीं है?

रूस रुसी भाषा की वजह से महान है। फ्रांस फ्रेंच भाषा की वजह से महान है। जर्मनी जर्मन भाषा की वजह से महान है। और हम भारतवासी बड़े ही बेशर्मी से अन्ग्रेजी को महान बोलते हैं। अरबी लिखते हैं। क्या ये मूर्खता नहीं है? क्या इसके पीछे कोई षडयंत्र है? जहाँ लगभग 80% लोग अन्ग्रेजी और अरबी बोलने या लिखने मे असमर्थ हो वहाँ इन दोनो भाषाओं का रहना ही शर्मनाक है।किसी भी लिबरल और सेकुलर से बात कर के देख लो अंग्रेजी बोलने के हज़ार कारण गिनवा देंगे लेकिन हिंदी और अन्य भारतीय भाषा के बारे में कुछ भी अच्छा नहीं बोलेंगे इसका एक मात्र कारण हमारे मन में डाली गई गुलामी की मानसिकता और और हीन भावना है।

इसाई अन्ग्रेजी जानता है जिससे वो बाईबल पढ़कर उसमे लिखे ज्ञान को प्राप्त करता है। मुसलमान अरबी जानता है जिससे वो कुरान मे लिखे ज्ञान को प्राप्त कर लेता है। और 99% हिन्दु संस्कृत नहीं जानते हैं और वो वेदो, उपनिषद इत्यादी के ज्ञान से दूर है। पढ़ते भी हैं तो षडयंत्रकारियो द्वारा अनुवाद किए गए पुस्तको को जिसमें जान बूझ कर उन पुस्तको मे झूठी और मनगढंत बाते लिखी गई । जैसे 33 कोटि के देवता जिसका अर्थ 33 प्रकार के देवता होता है और उसको 33 करोड़ देवता कहकर प्रचारित किया गया। शिवलिंग यानी “शिव का प्रतीक” जबकि शिवलिंग को शरीर के अंग से जोड़ कर प्रचार प्रसार किया गया।

जिस प्रकार से हिंदुओं को संस्कृत से दूर किया गया , पूरे भारत वासियों को भारतीय भाषा से दूर करना षडयंत्र नहीं तो और क्या है? स्वतंत्रता के 70 साल बाद भी किसी एक भारतीय भाषा को देश की अधिकारिक भाषा क्यूँ नहीं बनाया गया? मोदी सरकार भी 6 सालो से है और वो भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। क्यूँ आज भी सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिक भाषा अन्ग्रेजी है? NCERT की पुस्तको मे या आम बोल चाल की किसी भी भाषा मे जान बूझ कर अन्ग्रेजी और अरबी शब्द क्यूँ घुसेड़े जाते हैं? माना के उर्दू भाषा का जन्म भारत मे हुआ किन्तु उसको अरबी लिपि मे लिखना क्या आवश्यक है? क्या अरबी लिपि का अविष्कार भारत मे हुआ था? क्या अरबी मुगलों की और अन्ग्रेजी अंग्रेजों की गुलामी का प्रतीक नहीं है? क्या सरकार को 8वी अनुसूची में दर्ज 22 भाषाओं में से किसी एक भाषा को भारत की आधिकारिक भाषा नहीं बनानी चाहिए ? जिस भाषा का जन्म भारत में न हुआ हो उसको भारत की आधिकारिक भाषा बनाना बहुत ही शर्मनाक है।

दक्षिण भारत मे जब भी हिन्दी की बात आती है हमारे तमिलनाडु या दूसरे राज्यों के भाईयो को लगता है के उससे उनकी तमिल भाषा खतरे मे आ जायेगी। तो क्या अन्ग्रेजी भाषा से तमिल भाषा को संजीवनी मिलती है? हमारे तमिल भाई तमिल से ज्यादा अन्ग्रेजी बोलते हैं तब क्या उससे तमिल भाषा को खतरा उत्पन्न नहीं होता है? तमिल भाषी के मन मे अन्ग्रेजी के प्रति प्रेम और हिन्दी के प्रति नफ़रत एक षडयंत्र का ही हिस्सा है। यदि तमिल भाषी और हिन्दी भाषी आपस मे प्रेम करने लगे जो करते भी हैं बस उजागर नहीं कर पाते क्यूकि जैसे ही कुछ अच्छा होता है षडयंत्रकारी भड़काने आ जाते हैं, तो अन्ग्रेजी और अरबी को तमिलनाडु से भागना पड़ेगा और उन्का सारा षडयंत्र समाप्त हो जायेगा। जिस प्रकार से हिन्दुओं को जातियों मे बाँट कर कमजोर किया उसी तरह से भारतवासियों को भाषा के आधार पर लड़ा कर कमजोर कर रहे हैं। जम्मू और कश्मीर मे आज तक अधिकारिक भाषा अन्ग्रेजी और उर्दू थी जबकि वहाँ के ज्यादातर लोग कश्मीरी भाषा बोलते हैं ये कितनी शर्मनाक बात है।

हमारे देश मे अन्ग्रेजी और अरबी बोलने वालो को समझदार और ज्ञानी माना जाता है। कालीदास अन्ग्रेजी नहीं जानते थे मतलब समझदार नहीं थे? आर्यभट्ट भी अन्ग्रेजी या अरबी नहीं जानते थे मतलब वो भी ज्ञानी नहीं थे? हिसाब सीधा सा है अन्ग्रेजी और अरबी अपनी बातो को किसी के आगे रखने का माध्यम मात्र है अपने आप मे ज्ञान नहीं। अंग्रेजी या अरबी बोलने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता ये बात प्रत्येक भारतवासी को मानना पड़ेगा। आज भी यदि किसी के ज्ञान की प्रसंशा करनी हो तो उसके अन्ग्रेजी की प्रसंशा करते हैं जो कि एक मूर्खता और गुलामी की निशानी है।

बहुत हुआ षडयंत्र अब हमे जागना होगा और एक होकर सरकार से माँग करनी होगी किसी एक भारतीय भाषा को भारत की सर्वमान्य भाषा बनाया जाये। भारत की अधिकारिक भाषा से अन्ग्रेजी और अरबी को हटाया जाए । एक बात याद रखना भारत मे जब अन्ग्रेजी और अरबी नहीं थी तब भारत विश्वगुरू था। भारत की दुर्गति इन्ही दो भाषाओ के आने के बाद शुरु हुई और आज भी जारी है।

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