जम्मू: जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) में रोहिंग्या (Rohingya) रिफ्यूजी कब कहां से आए, इसका खुलासा पुलिस रिकॉर्ड से मिलता है कि 1986 में रोहिंग्या रिफ्यूजी का पहला परिवार जम्मू में अवैध तरीके से पाकिस्तान (Pakistan) से बॉर्डर क्रॉस करके आया था. जिसे गिरफ्तार कर उसके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी. लेकिन तात्कालिक सरकारों ने इसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की. बल्कि सरकारों के संरक्षण में रोहिंग्या रिफ्यूजी का नंबर जम्मू में बढ़ता रहा.3 जिलों में रोहिंग्या की संख्या में इजाफाजम्मू-कश्मीर में रही नेशनल कॉन्फ्रेंस, कांग्रेस और मुफ्ती परिवार की सरकारें रोहिंग्या रिफ्यूजी के नंबर को छुपाने में लगी रहीं. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जम्मू के 39 इलाकों में 6583 हजार रोहिंग्या रहते हैं. सूत्रों के अनुसार, इनकी संख्या 25 से 30 हजार के बीच है. जम्मू, सांबा और कठुआ इन 3 जिलों में रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या में बेतहाशा इजाफा 2008 से लेकर 2016 के बीच हुआ.एक रोहिंग्या के परिवार में हैं 57 लोगजम्मू के नरवाल बाला की रोहिंग्या बस्ती में रहने वाले नाजिम 2012 में अपने परिवार के साथ जम्मू आया था. उसके परिवार में इस समय 57 लोग हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोहिंग्या की संख्या कितनी तेजी से बढ़ी है. नाजिम के मुताबिक, उसने जम्मू में शादी की और वो यहां छोटा सा काम धंधा करता है. ऐसे ही सैंकड़ों रोहिंग्या यहां शादी करके बस गए और छोटे-मोटे काम धंधे शुरू कर लिए.रोहिंग्या बसाने के पीछे क्या है साजिश?सूत्रों के मुताबिक, इन रोहिंग्या को जम्मू-कश्मीर या देश के दूसरे हिस्सों में बसाने के पीछे एक गहरी साजिश है. जिसके तहत कुछ गिरोह इनके लिए 10-15 हजार रुपये लेकर UNHRC के फर्जी कार्ड भी बनाते हैं. इसका खुलासा जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के निर्देशानुसार, रोहिंग्या की इसी साल फरवरी, मार्च महीने में करवाई गई सरकार की जांच में हुआ था. जिसके बाद 192 रोहिंग्या को कठुआ जेल में बनाए गए होल्डिंग सेंटर में उनके डिपोर्टेशन के लिए रखा गया है. लेकिन कोविड के चलते वो प्रक्रिया ठप्प हो गई.जम्मू-कश्मीर में रह रहे रोहिंग्या पर ह्यूमन ट्रैफिकिंग, कश्मीर आतंकवादियों के लिए स्लीपर सेल का काम करने और नशा तस्करी जैसे अपराधों में लिप्त होने के केस भी दर्ज हैं. पिछले साल आतंकी मुठभेड़ में कश्मीर में मारे गए एक रोहिंग्या आतंकवादी के संबंध आतंकी संगठन के सरगना हाफिज सईद से भी पाए गए. इनकी बस्तियों में मदरसे मौजूद हैं, जिसकी फंडिंग कश्मीर की कुछ संस्थाएं करती हैं.

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